हर पल घटता जीवन

0
472
बून्द-बून्द सी  टपक रही है जिंदगी।
हर पल हर दम रिश रही है जिंदगी।।
चट्टानों सा खुद को समझने वालों,
छोटे कंकरों में बिखर रही है जिंदगी।
रिश्तों का  बांध  टूट कर  बह  रहा  है।
शैलाबो के बहाव में बह रही है जिंदगी।।
घर की नींव में  छलावों की रेत भरी है।
दर्द के झटकों से पूरी नींव हिल रही है।।
आकांक्षाओ के शिकंजे में हरेक आगे बढ़ रहा है।
हर पल घट रहा है जीवन,ये इंसान नही समझ रहा है।।
  नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).