पंकज शुक्ला
कुछ माह पहले तक सूने-सूने रहने वाले प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में रंगत लौट आई है। यह रंगत सत्ता में वापसी की ही नहीं है बल्कि उससे कुछ पहले कद्दावर नेताओं की सक्रियता के कारण दिखाई देनी लगी थी। जब से मुख्यमंत्री कमलनाथ के निर्देश पर मंत्रियों को प्रदेश कार्यालय आना शुरू किया है, कार्यकर्ताओं में अच्छा संदेश जाने लगा है। इस तरह, गुटों में बंटी, बंगलों से चल रही कांग्रेस की कार्यप्रणाली पटरी पर आने लगी है मगर तभी अचानक प्रदेश के प्रभारी दीपक बावरिया ने प्रदेश के नेताओं पर निशाना साध कर फूट को सतह पर ला दिया। समन्वय के लिए दिल्ली से भेजे गए नेता बावरिया का सामाजिक कार्यक्रम में अपनी व्यक्तिगत बातों को कहना एक तरह से जातीय ध्रुवीकरण करने का प्रयत्न महसूस हुआ।
deepak bavariya : pataree par laut rahee kaangres mein phoot ka pench kyon phansa rahe?
मध्य प्रदेश में कांग्रेस का वनवास ख़त्म करने के लिए राहुल गांधी ने अपने करीबी बावरिया को प्रदेश प्रभारी बनाकर भेजा था लेकिन अपनी प्रथम यात्रा से ही बावरिया अपने बयानों और फैसलों को लेकर सुर्खियों में रहे। आलम ये रहा कि बावरिया को कहीं कार्यकर्ताओं के गुस्से का सामना करना पड़ा तो कई बार अपने फैसलों को वापस भी लेना पड़ा। प्रदेश का प्रभार मिलते ही तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव एवं तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को पीछे कर वो खुद फ्रंट लाइन पर आ गए। बहुत कम समय में दीपक बावरिया ने मप्र में अपना नया गुट बना लिया। साठ पार वाले नेताओं को टिकट नहीं देने का बयान दिया जिस पर बाद में यू टर्न लेना पड़ा। फिर कहा कि दो बार लगातार चुनाव हारने वाले नेताओं को पार्टी टिकट नहीं देगी। विवाद हुआ तो यह फैसला पलटा गया। टिकट के दावेदारों से 50-50 हजार रुपए भी जमा कराए। शिकायत हुई तो बावरिया बैकफुट पर आ गए। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के क्षेत्र में जाकर बयान दिया कि मप्र में सीएम पद के दावेदार केवल दो ही हैं। इस तरह उन्होंने नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के क्षेत्र में उनका कद छोटा बताने का कार्य किया। जिसकी प्रतिक्रिया में विंध्य में बावरिया के साथ मारपीट हुई। पीसीसी में भी बावरिया के खिलाफ नारेबाज़ी हुई।
विधानसभा चुनाव के बाद भी ये विवाद खत्म नहीं हुए हैं। बावरिया ने विधानसभा चुनाव हारने वालों को लोकसभा का टिकट नहीं देने का बयान दे दिया। इसी बात से नाराज होकर विदिशा विधायक शशांक भार्गव ने कहा था कि ‘बावरिया माहौल खराब करते हैं, वो गुजरात चले जाएं।’ हालांकि बवाल मचने के बाद बावरिया ने अपना बयान बदल लिया। इन विवादों के बीच मुख्यमंत्री कमलनाथ की मौजूदगी में ओबीसी सम्मेलन को संबोधित करते हुए बावरिया भावुक जरूर हुआ लेकिन तब भी उन्होंने फूट ही उजागर की। उन्होंने कहा कि आप लोग क्या मुझे वापस भेजेंगे, मैं खुद ही गुजरात वापस चला जाऊंगा। चुनाव जीतने के बाद मैंने गुजरात वापस जाने का अनुरोध किया था। लेकिन राहुलजी ने लोकसभा तक मप्र रुकने का कहा है। मैं खुद ही चला जाऊंगा, मुझे लोग वापस क्या भेजेंगे।
ऐसे कहते हुए वे प्रदेश के नेताओं को राहुल के नाम पर संदेश देते हुए प्रतीत हुए, जबकि सभी जानते हैं कि राहुल की मर्जी के बिना किसी का भी प्रभारी बने रहना संभव नहीं है। ओबीसी सम्मेलन में प्रदेश के बड़े नेताओं की ओर किया गया संकेत पार्टी में जातीय राजनीति की फसल काटने का उपक्रम भी महसूस हुआ। बावरिया ने अपनी पहली भोपाल यात्रा में कहा था कि वे नेता कम, एक्टिविस्ट अधिक हैं। उनके ऐसे बयानों में एक्टिविस्ट का रूप कम नेता की बाजीगरी अधिक दिखाई देती है। शायद, वे खुद भी जानते होंगे कि ऐसे बयान पार्टी को मजबूत नहीं करेंगे बल्कि विभाजित ही करेंगे।