- दिल्ली विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है
- 8 फरवरी को वोटिंग और 11 फरवरी को नतीजे आ जाएंगे
- AAP, कांग्रेस और बीजेपी तीनों दल अब चुनावी चौसर पर गोटियां बिछाने में लग गए हैं
- केजरीवाल के सामने अभी तक बीजेपी और कांग्रेस ने सीएम चेहरा नहीं किया है घोषित
नई दिल्ली
दिल्ली विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है और दिल्ली का मंच त्रिकोणीय मुकाबले के लिए तैयार है। सीएम अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (AAP), बीजेपी और कांग्रेस दिल्ली के रण में ताल ठोक रहे हैं। 8 फरवरी को होने वाली वोटिंग के लिए अब सभी दल चुनावी चौसर पर मोहरे बिछाने लगे हैं। इस चुनाव में नागरिकता संशोधन ऐक्ट (CAA), जामिया मिलिया हिंसा और जेएनयू कांड की छाया पड़नी तय मानी जा रही है।
हालांकि राज्य के चुनावों में राष्ट्रीय महत्व के विषयों को ज्यादा तवज्जो नहीं मिलती है पर देश की राजनीति का केंद्र होने कारण यहां इन मुद्दों का असर जरूर होगा।
ऐसे में सवाल उठता है कि दिल्ली के दंगल में कौन पार्टी कितनी मजबूत और कितनी कमजोर है। किसके तरकश में कौन से तीर हैं यह भी देखना दिलचस्प होगा। AAP केजरीवाल के नेतृत्व में खम ठोक रहा है तो बीजेपी और कांग्रेस ने अभीतक सीएम फेस ही घोषित नहीं किया है। AAP दोनों विपक्षी दल पर इसे लेकर तंज भी कस रही है। बीजेपी जहां पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनावों में जाती दिख रही है तो वहीं, कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व की बात कर रही है।
आम आदमी पार्टी
मजबूती
अरविंद केजरीवाल के रूप में स्थापित, करिश्माई और वोट खींचने वाला नेता। हालांकि केजरीवाल को जरूर कुछ मध्य वर्ग का वोट खोना पड़ा है लेकिन उन्हें उनकी सरकार द्वारा गरीबों के लिए किए गए काम और लोकप्रिय स्कीमों जैसे पानी और बिजली पर सब्सिडी से फायदा होने की उम्मीद है।
कमजोरी
AAP अब खास पार्टी नहीं रही। यह भी दूसरी राजनीतिक पार्टियों की तरह है। इस पार्टी में भी विवाद हुए और लोकसभा चुनावों में यह तीसरे स्थान पर आ गई, जो इसके लिए चिंता की बात है।
AAP के लिए अवसर
AAP ‘स्थानीय’ पसंद के रूप में उतर सकती है। हाल के दिनों में कुछ राज्यों में स्थानीय दलों ने बेहतर प्रदर्शन किया है तो ऐसे में इसे भी दिल्ली में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद होगी। कांग्रेस के पास शीला दीक्षित के बाद उनके जैसा कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं है। ऐसे में AAP बीजेपी के खिलाफ सबसे मजबूत ताकत के रूप में खुद को पेश कर सकती है।
खतरा भी कम नहीं
AAP के इन विधानसभा चुनावों में टिकट का बंटवारा भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगा। 2015 में पार्टी ने दिल्ली में 67 सीटें जीती थीं। ऐसे अगर किसी सीटिंग विधायक का टिकट कटता है तो पार्टी को बागियों का भी सामना करना पड़ सकता है।
भारतीय जनता पार्टी
मजबूती
दिल्ली के 2013 और 2015 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर बरकरार रहना। इसके अलावा 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनावों में सभी सीटों पर जीत। पीएम नरेंद्र मोदी के तौर पर एक बड़ा और मजबूत चुनावी चेहरा। केंद्र में बीजेपी की सरकार होने से बीजेपी राज्य में विकास के वादों के साथ उतर सकती है।
कमजोरी
बीजेपी ने अभी तक सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया है। दिल्ली में पार्टी के कद्दावर नेताओं में मनमुटाव। इसके अलावा केजरीवाल जैसे दिग्गज नेता और उनकी योजनाओं की काट खोजने की जरूरत। केजरीवाल की शिक्षा, मोहल्ला क्लिनिक और सस्ता बिजली, पानी जैसी योजनाओं को लेकर बीजेपी को मजबूत तर्कों के साथ उतरना होगा।
क्या हैं बीजेपी के लिए अवसर
CAA और जामिया में हिंसा के मुद्दे को पार्टी इन चुनावों में उठा सकती है। इसके अलावा मेट्रो के काम में देरी, AAP के मंत्रियों का इस्तीफा और राज्य सरकार का अधिकारियों से एवं MCD में झड़प जैसे मुद्दों को अवसर के तौर भुनाने की कोशिश।
बीजेपी के लिए यहां खतरा
अगर कांग्रेस का प्रदर्शन इस विधानसभा चुनाव में खराब रहा तो यह चुनाव द्विपक्षीय हो जाएगा और इससे बीजेपी को नुकसान हो सकता है। ऐसे में उसे लोकसभा चुनावों में मिले 56% वोट शेयर बरकरार रखने की चुनौती होगी।
कांग्रेस के लिए कैसा मौका
मजबूती
कांग्रेस 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में सबको चौंकाते हुए 22.5% वोट शेयर के साथ दूसरे नंबर पर पहुंच गई थी। 2014 में पार्टी को केवल 15% वोट मिले थे। पार्टी को अपने बेस वोट बैंक अल्पसंख्यकों और गरीबों का मिला था साथ।
कमजोरी
करिश्माई नेता शीला दीक्षित के निधन के बाद पार्टी पुराने चेहरे सुभाष चोपड़ा को अध्यक्ष बनाकर चुनावी जंग जीतने की कोशिश में लगी है। पार्टी में एकजुटता का अभाव। राज्य के नेताओं के बीच मनमुटाव।
अवसर की भी कमी नहीं
कांग्रेस सत्तारूढ़ AAP के वोटों में कमी का फायदा उठा सकती है और उन वोटरों को अपने पाले में कर सकती है। इसके अलावा महाराष्ट्र (चुनावों के बाद) और झारखंड एवं हरियाणा में बेहतर परिणाम ने पार्टी के हौसले को मजबूत किया है।
खतरे भी कम नहीं
अगर दिल्ली विधानसभा चुनावों में ध्रुवीकरण हुआ तो कांग्रेस को नुकसान झेलना पड़ सकता है। ध्रुवीकरण होने की स्थिति में वोटर्स AAP और बीजेपी में बंट सकते हैं।