चमचा जिस बर्तन में रहता है उसे खाली कर देता है…

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राघवेंद्र सिंह

मध्यप्रदेश में सत्ता बदले हुए अभी महीनाभर ही बीता है, किसान से लेकर कानून व्यवस्था और नौकरशाही ने ‘वक्त है बदलाव का’ का जुमला खूब चर्चाओं में है। हो भी क्यों न, इसी नारे ने तो 15 साल की भाजपा सरकार को सत्ता से बेदखल करने में अहम भूमिका निभाई है। मुख्यमंत्री कमलनाथ अक्सर ‘वक्त है बदलाव का’ नारे का जनता, कार्यकर्ता और नौकरशाही के सामने उपयोग करते हैं। सरकारें किसी की भी हों, मगर सत्ता का चरित्र एक जैसा ही होता है। लंबे समय तक हुकूमत करने वाली कांग्रेस से बेहतर यह कौन समझता होगा। सरकार याने गुड़ की भेली और इसमें चींटे-चींटियां, बरैया, ततैया के साथ बर्तनों में इस्तेमाल होने वाले चमचे भी खूब नजर आते हैं। इन्हें रोकना टोकना अभी तक किसी के वश का नहीं रहा। हमें पता है कि आगे भी नहीं रहेगा। भूमिका थोड़ी लंबी हो गई है, लेकिन सरकार में बर्तन खाली करने वाले चमचों से चमकने और बचने की कवायद भी दिख रही है। मसलन भाजपा छोड़कर आने वालों को मंच पर कुर्सियां नहीं मिलेंगी।
Empties the vessel that spit in …
अब भला चमचों को कुर्सियों से कहां मतलब है। वह तो बर्तन खाली करने के लिए होते हैं। सो उन्हें रोकने की कवायद एक मंत्री से हुई बातचीत के कुछ अंश आपसे साझा कर रहे हैं। अपने प्रभार के जिले से कुछ कार्यकर्ता स्वागत करने आना चाहते हैं। यह बात सुनते ही माननीय फरमाते हैं कि मैं खुद ही क्षेत्र में आऊंगा तब मिल लें। इसके बाद भी आना चाहते हैं तो ब्लॉक और जिलाध्यक्ष के साथ आएं। यह एहतियात शायद इसलिए बरता जा रहा है ताकि सत्ता की चाशनी चाटने के लिए मौकापरस्त चमचे कढ़ाई खाली करने न आ जाएं। यह बहुत अच्छी बात है मगर जिन माननीय ने यह फरमाया है उनके प्रभार के जिले और कार्यकर्ता की डिमांड वाले इलाके में पहुंचने की संभावना बहुत कम है। आगे देखते हैं कि इसका कितना पॉजिटिव और नेगेटिव असर होता है।

कांग्रेस और जनता के बीच एक बात इन िदनों चर्चा का सबब बनी हुई है वह यह कि जो नौकरशाह शिव के साथ राज कर रहे थे वह नाथ के कमल बने हुए हैं। हो सकता है कि शुरुआती दौर में एक दम से बदलाव न करना मजबूरी हो मगर एक कहावत है कि ‘फर्स्ट इम्प्रेशन इज द लास्ट इम्प्रेशन।’परिवर्तन की स्थितियां नजर कम ही आ रही हैं। रेत माफिया और अवैध खनन को लेकर भी हम देखें तो हालात सुधरे कम दिखाई देते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बुधनी विधानसभा क्षेत्र की बात करें जो अवैध रेत परिवहन के लिए बदनाम था, आज भी इस गोरखधंधे में कोई कमी नहीं आई है। पहले रात में रेत चोरी होती थी अब डंपरों के समूह दिनदहाड़े रेत ढोने मेें लगे हैं। वक्त है बदलाव का नारा सुनने वाले मतदाता देख रहे हैं कि सत्ता की चाशनी में आज भी माफिया तरबतर हैं जिसे कल तक कांग्रेसी पानी पी-पीकर कोसते थे। लोकसभा के चुनाव सामने हैं नर्मदा मैया से लेकर छोटी-बड़ी नदियों की छाती चीरकर पोकलेन और जेसीबी मशीन अभी भी रेत के धंधे को मंदा नहीं हो दे रही है। इसके साथ कमलनाथ सरकार बिजली को लेकर भी कसौटी पर है। चूंकि सरकार बदली है इसलिए जैसे ही बिजली जाती है लोग 2003 के दिग्विजय शासनकाल की याद करने लगते हैं। अलग बात है कि पहले भाजपा शासनकाल में ऐसा थोड़ा बहुत होता था।

नौकरशाही में मुख्य सचिव सुधिरंजन मोहंती की ताजपोशी के अलावा कोई बड़े बदलाव नजर नहीं आ रहे हैं। जिलों में अलबत्ता कलेक्टर एसपी को इधर उधर किया गया है। एक बात और है कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कहते रहे हैं कि उनकी सरकार में पैसे लेकर पोस्टिंग नहीं होती थी। भाजपा में जिले और थानों की बोली लगाई जाती थी इसलिए प्रशासन और कानून व्यवस्था कमजोर थी साथ ही नौकरशाही बेलगाम। लेकिन एक बात बहुत कम समय में सामने आ रही है कि कमलनाथ सरकार में भी बिचौलिए मलाईदार पोस्टिंग कराने के लिए अफसरों से संपर्क करने लगे हैं। बहुत संभव है कि जल्द ही इस तरह की चर्चाएं सुर्खियां बनना शुरू हो जाएं।

कमलनाथ सरकार के बारे में यह चर्चा भी आम है कि उनके फैसलों के पीछे राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मंत्रिमंडल गठन से लेकर विभाग वितरण और अफसरों की पोस्टिंग तक में दिग्विजय की छाप नजर आती है। सीएस के रूप में मोहंती और दिग्विजय सरकार में अहम रहे अफसर अब वजनदार औहदों से नवाजे जा रहे हैं। एसीएस गोपालरेड्डी को जनसंपर्क की कमान देना भी इन्हीं चर्चाओं का हिस्सा है। इसके अलावा कमलनाथ के सलाहकार व ओएसडी की नियुक्ति के मामलों पर भी सियासी पंडित पैनी नजर रखे हुए हैं। टैक्नोक्रेट भूपेंद्र गुप्ता और कई वर्षों से कमलनाथ के आंख कान बने हुए आरके मिगलानी की नियुक्ति आने वाले दिनों में महत्वपूर्ण साबित होने वाली है। नौकरशाही सियासी ओएसडियों को कितनी अहमियत देगी, मिगलानी और गुप्ता की जोड़ी सरकार और सीएम की दिक्कतों को कितना कम करेंगी यह सब आने वाले दिनों में कसौटी पर कसा जाएगा। आमतौर से ओएसडी के पदों पर नौकरशाह ज्यादा नजर आए हैं। ऐसे में नई पदस्थापना पाने वालों की कार्यक्षमता उनका भविष्य तय करेगी। नए सत्ताधीशों के लिए एक शेर बड़ा मुफीद लगता है…
बुलंदी की उड़ान पर हो तो जरा सब्र रखो। परिंदे बताते हैं कि आसमान में ठिकाने नहीं होते।
(लेखक IND24 न्यूज समूह के प्रबन्ध संपादक हैं)