पुष्पेन्द्र वैद्य
खाली पेट नींद नहीं आती साहेब…मजदूरी मिल गई तो रोटी नसीब हो जाती है, नहीं मिली तो करवटे बदल कर रात गुजारना पड़ती है। सिर छुपाने के लिए झोपडे पर टूटी खपरेलों वाली छत है। बारिश होती है तो छत से पानी की धार बगैर रुके मिट्टी के फर्श को कीचड में बदल देती है। चूल्हे की आग ठंडी पड जाती है। फिर कई दिनों तक चूल्हे की ठंडी आग पेट की आग को भडका देती है। बूढी हो चुकी नानी के हाथ भी अब कांपने लगे हैं।
Empty stomach does not sleep. Patlapani’s orphan children demanding their rights for the government
पिता का साया 9 बरस पहले ही उठ गया। मां भी 7 बरस पहले एक रात छोटे-छोटे तीनों भाई बहनों को सोता छोड़कर दुनिया से चली गई। मां जिंदा थी तब तक रेल्वे से पिता की पेंशन के रुपए मिल जाते थे। कम से कम पेट आराम से भर जाता था। मां की मौत के बाद तीनों बच्चे अनाथ हो गए। पेंशन के लिए बच्चों को ले जाकर नानी ने कई बार रेल्वे अफसरों से गुहार लगाई मगर भूख से तड़पते इन मासूमों पर किसी को रहम नहीं आया। इनके रोते-बिलखते चेहरों पर किसी का दिल नहीं पसीजा। हैरानी इस बात की है कि मां के मरने के 8 बरस बाद आज भी रेल्वे ने परिवार पेंशन के नाम पर इन बेसहारा बच्चों को फूटी कोडी तक नहीं दी।
मध्यप्रदेश का स्वर्ग कहे जाने वाले प्राकृतिक वैविध्य के भरे पातालपानी गांव में रहने वाले अनाथ बच्चों की जिंदगी किसी नर्क से कम नहीं है। परिवार का मुखिया राजू भील अपने भरे पूरे परिवार के साथ स्टेशन के पास जिंदगी बसर कर रहा था। राजू रेल्वे में काम करता था। 25 अप्रैल 2009 को राजू की हार्ट अटैक से मौत हो गई। मां लीला पर 10-12 साल के तीनों बच्चों को पालने की जिम्मेदारी का बोझ पड़ चुका था। राजू की पेंशन से घर चल जाता था।
पेंशन की रकम से तीनों बच्चों का पेट भर जाता था। साल 2011 में मां लीला बाई भी तीनों बच्चों को अकेला छोड चल बसी। इसके बाद इस परिवार में तीनों नाबालिग बच्चे ही घर में बिलखते रहे। बूढ़ी नानी मजदूरी कर बच्चों को रोटी देती रही। धीरे-धीरे नानी के हाथ भी कांपने लगे। बच्चों को लेकर नानी पेंशनर संघ के अध्यक्ष जीएल जांचपुरे के पास जाकर अपने हक-हकून की लडाई लडती रही। जांचपुरे ने अनाथ बच्चों के लिए अपने जेब का पैसा खर्च कर कोर्ट कचहरी से लेकर डीआरएम दफ्तर तक खूब लडाई लडी।
जांचपूरे के मुताबिक पेंशनर्स के बच्चे जब तक 25 बरस के नहीं हो जाते, तब तक उन्हें परिवार पेंशन की पात्रता होती है। नाबालिगों के संरक्षक के लिए कोर्ट ने भी फैसला दिया और नानी को संरक्षक करार दिया। बच्चों के नाम का खाता भी खुलवा दिया बावजूद इसके आज तक पेंशन की रकम नसीब नहीं हुई।
नानी ने जैसे-तैसे बडी बेटी पूजा के हाथ पीले कर दिए। बेटा 17 साल का प्रताप और 18 साल की कविता अब मजदूरी कर दो वक्त की रोटी का जुगाड करते हैं। जिस दिन मजदूरी नहीं मिलती उस दिन भूखे पेट ही सोना पडता है। तीनों बच्चों ने स्कूल जाना कई सालों से बंद कर दिया है। स्कूल जाएंगे तो मजदूरी कब करेंगे। स्कूल गए तो खाली पेट रहना पडेगा। आम मजदूरों के मुकाबले उन्हें मजदूरी भी आधी ही मिलती है भले ही दूसरों से ज्यादा काम करो।