मध्यप्रदेश विधानसभा में इन दिनों बजट सत्र चल रहा है। विभागवार बजट चर्चा में मंत्रियों में कसावट के साथ अधिकारियों की उपस्थिति को लेकर अध्यक्ष एनपी प्रजापति की वाकपटुता और विपक्ष को संरक्षण देने की नीति ने सबको सुखद आश्चर्य में डाल दिया है। हालांकि अभी कमलनाथ सरकार को छह महिने ही हुए हैं लेकिन इस अल्प अवधि में खट्टे मीठे संवाद और दृश्यों में अध्यक्ष की भूमिका खासी सकारात्मक नजर आई। पहले तो उन्होंने नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के सामने से शिवराज सिंह द्वारा माईक लेने पर उन्हें जिस तरह रोका उससे सदन में अध्यक्ष की धमक पैदा हुई। ऐसा असर पहले कभी तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी का हुआ करता था। हालांकि उनसे तुलना करना जल्दबाजी हो सकती है मगर एनपी के तेवर सदन संचालन में उम्मीद है दिन ब दिन निखरते जाएंगे। उम्मीद करते हैं आने वाले दिनों में अध्यक्ष की आलोचना के अवसर नहीं आएंगे।
जबलपुर में सूदखोरी की घटना पर बद्रीलाल प्रजापति की आत्महत्या से जुड़े एक सवाल को लेकर विधानसभा में गृहमंत्री बाला बच्चन ने कहा कि आज ही एसआईटी गठित कर कार्रवाई की जाएगी। कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक के सवाल पर गृहमंत्री के उत्तर से विधानसभा अध्यक्ष ने नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा विधानसभा में सवाल आने पर तीन माह बाद चहल कदमी करते हुए कार्यवाही शुरु की जा रही है। विधायक पाठक का कहना था यह आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है। गंभीर मामले में मंत्री की लापरवाही पर अध्यक्ष की तल्खी मंत्री और अफसरों को सक्रिय होने की तरफ ताकीद करती है। सदन में एक और अच्छा संकेत यह दिखा कि विभागवार बजट चर्चा के दौरान संबंधित महकमें के अफसरों की गैर हाजिरी पर भी अध्यक्ष का रुख काफी सख्त नजर आया। गृह विभाग की चर्चा के दौरान डीजीपी की अनुपस्थिति को उन्होंने बेहद आपत्तिजनक माना और इसके बाद सदन में उन्हें हाजिर होने के निर्देश दिए। यद्पि विभागीय अधिकारियों की उपस्थिति सुनिश्चित कराना सरकार का काम होता है। लेकिन सदन को लेकर नौकरशाही की लापरवाही पिछले कुछ सालों से लक्ष्मण रेखा को पार कर रही थी। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद भी इस मामले में जब कुछ खास नहीं हुआ तो एनपी प्रजापति का रुख विधानसभा की गरिमा की वापसी में एक प्रयास माना जा सकता है।
इसके अलावा सवर्ण आरक्षण के मामले में वरिष्ठ अधिकारियों को यह हिदायत कि अधीनस्थ अधिकारियों कर्मचारियों को सवर्ण आरक्षण का लाभ दिलाएं। क्योंकि वरिष्ठ अधिकारी खुद तो लाभ उठा रहे हैं और मातहतों को लेकर अभी तक कोई नीति नहीं बना पाए हैं। सबको पता है कि सदन में एक बार जब नेता प्रतिपक्ष भार्गव वक्तव्य दे रहे थे तब उनके पास बैठे शिवराज सिंह चौहान ने अपनी बात कहने के लिए भार्गव के सामने से माईक लेकर बोलना शुरू किया लेकिन तभी अध्यक्ष ने उन्हें रोकते हुए कहा ऐसा हस्तक्षेप करना उचित नहीं है और उन्हें अपनी बात कहने से रोक दिया। ऐसी किसी को अपेक्षा नहीं थी।गोपाल भार्गव और खुद शिवराज सिंह को भी। असल में सब कुछ सहज भाव से हुआ था लेकिन सवाल सदन में नेता प्रतिपक्ष की गरिमा का था और इसका ध्यान अध्यक्ष ने शिवराज को रोककर दिलाया।
दिग्विजय सरकार में मंत्री रहे एनपी प्रजापति ने अध्यक्षीय दायित्व का अभी तक उचित निर्वहन किया है। वैसे भी अध्यक्ष का पद दुधारी तलवार और कांटों भरे ताज की तरह है। इसमें सत्ता और प्रतिपक्ष दोनों की आलोचना का शिकार होना पड़ता है। फर्क इतना है सत्ता के सदस्य कक्ष में अपनी शिकायत करते हैं और प्रतिपक्ष कई बार सदन में अध्यक्ष पर भेदभाव के आरोप लगाते हैं। इससे पहले स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी और ईश्वरदास रोहाणी,सीतासरण शर्मा को इस तरह की आलोचना का शिकार होना पड़ा था। अभी नई सरकार को छह महिने हुए हैं साढ़े चार साल बाकी हैं। एनपी प्रजापति ने छह महिने में जो कमाया है उसे साढ़े चार साल में भले ही कम बढ़ा पाएं लेकिन उस प्रतिष्ठा को बचा के रखना चुनौति पूर्ण काम होगा।
एक बात और है अध्यक्ष की सजगता और सक्रियता से सत्ता और प्रतिपक्ष को लाभ मिलता है साथ ही नौकरशाही भी सदन के सवालों को लेकर सतर्क रहती है। कोई चतुर अध्यक्ष अपनी शक्तियों का उपयोग सजगता से करे तो उनका रुतबा प्रभाव किसी मुख्यमंत्री से कमतर नहीं होता।श्रीनिवास तिवारी ने अपने कार्यकाल में यह साबित भी किया था। बाद में उनके कार्यकाल में उपाध्यक्ष रहे श्री रोहाणी अध्यक्ष बने तो उनकी भी धमक और गमक तिवारी के बराबर भले ही न रही हो लेकिन कम भी नहीं लगती थी।
सदन चलाने में सस्ती लोकप्रियता
विधानसभा में शनिवार और इतवार अवकाश के दिन रहते हैं। लेकिन इस बार कमलनाथ की सरकार ने इन दो दिनों में काम कर इतिहास बना दिया। यह सिक्के का एक पहलू है। इसका दूसरा पक्ष ये है कि सरकार ने कामकाज के दिनों में अवकाश रखा और फिर अवकाश के दिनों में सदन चलाकर वाहवाही लूट ली। यह अच्छी बात है लेकिन असली प्रशंसा के हकदार सरकार तब होगी जब नियमित दिनों के अलावा छुट्टी के दिनों में भी जनहित के मुद्दों पर सदन को चलाया जाए। फिर भी छुट्टी के दिनों में सदन चला उसके लिए सत्ता और विपक्ष दोनों को बधाई। अपेक्षा है आने वाले दिनों में इस तरह के फैसले खास नहीं बल्कि आम हो जाएं तो अच्छा है।