उम्‍मीद जगाती अफसरों की लीक से हटकर संवाद शैली!

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पंकज शुक्ला
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है

सोशल मीडिया के दौर में स्टिंग ऑपरेशन के साथ शिकायतों, समस्‍याओं और सुझावों का हर स्‍तर पर प्रसार बहुत आसान हो गया है। थोकबंद मिलते संदेशों की भीड़ के बीच में अकसर जरूरी संदेश अनचीन्‍हे रह जाते हैं। प्रशासनिक जिम्‍मेदारी निभा रहे अफसरों के साथ ऐसा अकसर होता है। मगर, लोकसभा चुनाव प्रक्रिया और कार्यों की लंबी फेहरिस्‍त के बीच अलग-अलग कैडर के दो अफसरों की कार्यशैली ने उम्‍मीद जगाई है कि बड़ी समस्‍याओं का आसान हल भी होता है। देवास कलेक्‍टर डॉ. श्रीकांत पाण्‍डेय ने संवाद की चिट्ठी पत्री वाली शैली को आजमाया है तो खेल संचालक आईपीएस एसएल थाउसेन ने एक सामान्‍य से मगर बेहद महत्‍वपूर्ण संदेश पर तुरंत कार्रवाई कर चौंका दिया है।

देवास कलेक्टर डॉ. पाण्डेय ने दिसंबर में विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव कार्य में जुटे अपने अधीनस्थ सभी कर्मचारियों को एक पत्र लिखा था। भावुक अंदाज में लिखा गया यह पत्र कर्मचारियों के दिल को छू गया था। डॉ. पाण्डेय ने इस ‘सिद्ध’ तरीके को इस बार मतदाताओं पर आजमाया है। मतदाता भी आम नहीं खास। इस बार डॉ. पाण्‍डेय ने अपने क्षेत्र के सभी 9158 दिव्‍यांग मतदाताओं को पत्र लिखा है। बतौर, जिला निर्वाचन अधिकारी डॉ. पाण्‍डेय चाहते हैं कि उनका क्षेत्र 100 फीसदी मतदान के लक्ष्‍य के करीब पहुंचे। इसके लिए आवश्‍यक है कि दिव्‍यांग मतदाता भी उत्‍साह के साथ मतदान करें। चुनाव आयोग ने दिव्‍यांग मतदाताओं के लिए विशिष्‍ट सुविधाएं जुटाई हैं। मतदान केन्‍द्रों पर संकेतक, व्‍हील चेयर, सहायक आदि के इंतजाम व्‍यर्थ होंगे यदि दिव्‍यांग मतदाताओं को इनकी जानकारी न होगी या वे मतदान करने नहीं आएंगे। शायद, इसी तथ्‍य को समझ डॉ. पाण्‍डेय ने दिव्‍यांग मतदाताओं तक अपना खास संदेश पहुंचाया है। उन्‍होंने लिखा है कि दिव्‍यांगों को मतदान के लिए कतार में नहीं लगना होगा। उन्‍हें हर तरह की आवश्‍यक सुविधा मिलेगी। वे यह संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं कि दिव्‍यांग निश्चिंत हो कर मतदान करने आएं और लोकतंत्र में सहभागी बनें। उम्‍मीद की जानी चाहिए कि चिट्ठी के रूप में भेजा गया डॉ. पाण्‍डेय का संदेश उतनी ही सकारात्‍मकता के साथ मतदाताओं तक पहुंचेगा।

डॉ. पाण्‍डेय ने सार्वजनिक रूप से व्‍यक्तिगत संवाद की शैली को अपनाया तो इसके उलट मप्र खेल विभाग के संचालक आईपीएस एसएल थाउसेन ने व्‍यक्तिगत रूप से मिले एक संदेश पर गौर कर बड़े वर्ग की समस्‍या का समाधान किया। मामला खेल अकादमी में चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता से जुड़ा है। प्रदेश की एथलेटिक्स अकादेमी के लिए 6-7 मई को खिलाडि़यों का चयन होना है। प्रदेश भर से चुने गए प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को खेल अकादमी में प्रवेश के लिए यह फाइनल ट्रायल है। विभाग में अब तक परंपरा रही है कि ट्रायल होने के कुछ दिनों बाद परिणाम आता है। चयन ट्रायल और रिजल्‍ट में देरी पर दावेदार खिलाडि़यों, उनके अभिभावकों और कोच को प्रक्रिया की पारदर्शिता पर संदेह रहता है। भोपाल से बाहर के खिलाड़ी चयन पर उपजे अपने संदेह को दूर करने बार-बार भोपाल भी नहीं आ सकते। आ भी जाएं तो उन्‍हें यकीं नहीं रहता कि उनकी सुनवाई भी होगी या नहीं। खेल विभाग में जारी इस प्रक्रियागत खामी पर बातें कई बार हुईं मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। ऐसे में इस असंतोष की जानकारी खेल संचालक थाउसेन के पास एक अज्ञात से संदेश के माध्‍यम से पहुंची। खिलाडि़यों की आपत्ति को जायज मानते हुए खेल संचालक ने संदेश मिलने के तीन घंटे अंदर प्रक्रिया बदल दी। अब फाइनल ट्रायल के दिन ही रिजल्‍ट घोषित होगा। यदि किसी को शिकायत है तो उसे तुरंत उसे दर्ज करवाने का मौका मिलेगा। सुखद आश्‍चर्य इस बात का है कि इस मांग को मनवाने के लिए न कोई प्रतिनिधि मंडल खेल संचालक से मिला, न ज्ञापन दिया गया। न कोई बैठक हुई न अधीनस्‍थों से सलाह मांगी गई।

लोकतंत्र में कार्यपालिका का कार्य ही क्रियान्‍वयन को सरल, सहज और सुचारू बनाना है। मप्र के इन दो अफसरों ने मामूली सी लगने वाली गैरमामूली प्रक्रिया अपना कर अचरज में ही डाला है।