“”किसान आत्महत्या””

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 प्रमिला कुमार

मंदसौर में किसानों पर हुई गोलीबारी की पहली बरसी पर पिपलियामंडी में आयोजित श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए कॉंग्रेस के नेताओं ने पीएम मोदी और बी जे पी की राज्य सरकारों पर हमला बोला। बीते साल इसी दिन पुलिस की गोलीबारी में छह किसानों की मौत हुई थी जबकि पुलिस की पिटाई से एक किसान ने दम तोड़ दिया था। पुलिस गोलीबारी में जान गंवाने वाले छह किसानों के परिजनों को भले ही नौकरी मिल गई हो, मुआवजा मिल गया हो, मगर न्याय नहीं मिला है। जांच रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है। इतना ही नहीं पुलिस की गोली से मारे गए किसानों को शहीद का दर्जा भी नहीं मिला, वहीं आरोपियों पर कार्रवाई नहीं हुई और प्रशासन द्वारा प्रभावित परिवारों को पहली बरसी मनाने तक से रोका गया ।
लेकिन एक सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा अछूता रह गया….. “किसान आत्महत्या”

किसान आत्महत्या में मध्य प्रदेश का स्थान देश में चौथे नम्बर पर है।  मध्य प्रदेश में पिछले 13 वर्षों में 15 हजार किसानों ने आत्महत्या की है। आत्महत्या करने वाले सभी किसान खेती-बाड़ी से जुड़े थें। विधानसभा में राज्य सरकार द्वारा ये आंकड़े पेश किए गये । मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन के बीच आठ जून से अब तक किसानों की खुदकुशी की सबसे अधिक घटनाएं हुई। नीमच, मंदसौर के बाद छतरपुर, सागर, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, सीहोर आदि जिलों से ऐसी खबरें मिली। मध्यप्रदेश में जून 2017 के आंकड़े सभी को चौंकाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक जून में 50 से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली लेकिन राज्य सरकार किसानों के प्रति संवेदनहीन बनी रही।

गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने पिछले दिनों विधानसभा में जवाब दिया था कि एक फरवरी 2016 से 15 नवंबर 2016 के बीच 1685 किसानों ने जान दी। इनमें डिंडोरी में सबसे ज्यादा 68 किसानों ने आत्महत्या कर ली। वहीं सागर में 45, झाबुआ में 33, अलीराजपुर में 32, खरगौन में 30 किसानों ने खुदकुशी की। देश के विभिन्न प्रदेशों में किसान खुदकुशी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता व्यक्त की है।

कोर्ट का कहना है कि सिर्फ मुआवजा देना ही इस परेशानी का हल नहीं होगा किसानों के लिए चलाई गई योजनाओं को जमीन पर लाना होगा। कोर्ट ने कहा कि सरकार को लोन के असर को कम करने की पहल करना चाहिए। कोर्ट ने किसानों के कर्ज पर कहा कि ‘यदि किसी भी किसान को लोन दिया जाता है तो पहले उसका फसल बीमा होता है। फिर किसान लोन डिफॉल्टर कैसे हो सकता है? यदि फसल बर्बाद हो गई है तो लोन चुकाने का जिम्मा बीमा कंपनियों का होता है।

मध्य प्रदेश में कुल 258 कृषि उपज मंडीयाँ हैं जहाँ किसान अपनी उपज को बेच सकता है और ये मंडियाँ किसान के लिये एक तरह से ए टी एम की ही तरह हुआ करती थी , जहाँ किसान समय समय पर अपनी उपज बेच कर नगद भुगतान प्राप्त कर लिया करता था। कॉंग्रेस शासन काल में कृषि उपज को आयकर से मुक्त रखा गया। जब उपज आय की श्रेणी में ही नही है तो उसपर नोटबंदी का असर नही होना चाहिये परंतु ऐसा नही हो रहा। किसान को उपज मंडियों में अपनी उपज का नगद भुगतान ना दिया जाकर चेक या RTGS द्वारा भुगतान किया जा रहा है जो की किसानों के रोजमर्रा के जीवनयापन के लिये कठिन परिस्थितियाँ पैदा कर रहा है।

इसका एक महत्वपूर्ण उदहारण अखातीज पर किसानों द्वारा बड़ी संख्या में अपने बच्चों की शादियां किया जाना है। अखातीज पर अधिकांशत:उपज आ चुकी होती है और अगली फसल की बुआई में काफी समय होता है और इस समय तक वह आर्थिक रूप से और कृषि कार्य ना होने के कारण सुवीधापूर्वक अपने बच्चों की शादी कर पाता है। चूंकि ये जिम्मेदारी ऐसी है की इसे विलम्बित किया जाना सम्भव नही होता ऐसी स्थिति में जबकि उसे अपनी उपज का नगद भुगतान नही मिल रहा होता तब उसे मजबूरी में बैंक से या अन्य जगह से ऋण लेना पड़ता है।

बैंक से ऋण लेने की स्थिति में जैसे ही उसके खाते में चेक या RTGS से कोई राशि अगर जमा होती है तब सबसे पहले outstanding राशि कट जाती है और उसके हाथ कुछ नही लगता इसके अलावा उसे ऋण राशि पर भारी ब्याज भी चुकाना पड़ता हैं ऐसी स्थिति मे उसपर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जाता है और उसे उतारने में वह दिन ब दिन अक्षम होता जाता है। कालांतर में यही कर्ज उसके लिये जानलेवा बन जाता है। किसानों की आत्महत्या का मुख्य कारण उसका कर्ज में दबते जाना और कर्ज से मुक्ति ना मिल पाना है। ऐसे में आज आवश्यकता है की नियमों को बदला जाये या नये नियम बनाये जाये। प्रदेश की सभी उपज मंडियों में किसानों को उनकी उपज का नगद भुगतान करने की व्यवस्था की जाये।

लेखिका भू . पू . सदस्य म.प्र. राज्य उपभोक्ता आयोग भोपाल