सरकारों की उपलब्धियों के बीच दम तोड़ता किसान… नियति की विडंबना…

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कौशल किशोर चतुर्वेदी

मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार में 2004 से 2016 के बीच 13 साल में 15,129 किसानों और खेतिहर मज़दूरों ने आत्महत्या की थी। मध्य प्रदेश विधानसभा में भाजपा सरकार ने ही यह जानकारी दी थी। आंकडों के अनुसार, वर्ष 2004 में 1638 किसानों और खेतिहर मज़दूरों ने ख़ुदकुशी की, जबकि वर्ष 2005 में 1248, वर्ष 2006 में 1375, वर्ष 2007 में 1263, वर्ष 2008 में 1379, वर्ष 2009 में 1395 और वर्ष 2010 में 1237 ,वर्ष 2011 में 1326, वर्ष 2012 में 1172, वर्ष 2013 में 1090, वर्ष 2014 में 826, वर्ष 2015 में 581 और वर्ष 2016 में 599 किसानों और खेतिहर मज़दूरों ने आत्महत्या की।
राज्य अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आकड़ों के मुताबिक, 2010 से 2015 तक 6 सालों में मध्य प्रदेश में 6594 किसानों ने आत्महत्या की। इससे भी ज्यादा चौंका देने वाला तथ्य यह था कि इन 6,594 किसानों में से 80 प्रतिशत (5300 के आसपास) किसानों ने इसलिए आत्महत्या की क्योंकि वह साहूकारों से लिया लोन का भुगतान करने में असमर्थ थे। राज्य अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आकड़ों के मुताबिक, साल 2010 और 2015 के बीच, औसतन, रोज़ाना करीबन 3 किसानों ने आत्महत्या की। सीमांत किसान, जिनके पास बहुत ही छोटी ज़मीन है, वह आत्महत्या को ज़्यादा मजबूर हुए। दिलचस्प बात यह है कि साल 2015 में राज्य में सूखे से ज्यादा प्रभावित होने के बाद भी आत्महत्या की घटनाएं करीबन आधी रहीं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद 11 दिसंबर से 21 फ़रवरी 2019 तक सात किसानों ने आत्महत्या की थी। यह जानकारी भी विधानसभा में दी गई थी।
किसानों की आत्महत्या के ये आंकड़े सिर्फ़ एक बानगी हैं।इनसे यह भी साबित होता है कि किसानों की आत्महत्या का सिलसिला कभी भी रुका नहीं है। सरकार चाहे भाजपा की रही हो या फिर कांग्रेस की, आंकड़ों के आधार पर सिर्फ़ यही वाहवाही लूटी जा सकती है कि किसके समय में किसानों की आत्महत्याओं की दर कम या ज़्यादा रही है।पर किसानों की क़िस्मत में आत्महत्या नियति बनकर उन्हें मौत को गले लगाने मजबूर करती रही है। यह सिलसिला लगातार जारी है।
मध्य प्रदेश में किसानों की आत्महत्या की घटनाएं ज्यादा शर्मसार करने वाली हैं क्योंकि पिछले कई सालों से कृषि कर्मण अवार्ड का तमग़ा हासिल कर सरकारें वाहवाही लूटने में आगे रही हैं।अब प्रदेश ने गेहूं उत्पादन और गेहूं ख़रीदी में भी सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।कांग्रेस का दावा है कि किसान कल्याण के बेहतर काम उसके समय 15 माह में हुए हैं तो भाजपा सरकार कृषि क्षेत्र में पिछले पंद्रह साल की सरकार के बाद अब नई पारी के 5 माह में उपलब्धियों का ताज अपने सिर पर बाँधने में कोताही नहीं कर रही। पर किसान है कि अकाल मौत के साथ चोली-दामन का साथ निभाने को अभिशप्त है। सरकारों की उपलब्धियों के बीच किसान दम तोड़ रहा है। नियति की यही विडंबना है।सीहोर , निवाड़ी , विदिशा के बाद अब छिन्दवाड़ा में भी एक किसान की आत्महत्या शायद यही दर्द बयां कर रही है। सरकार ने किसानों को एक बार फिर आय दोगुनी करने और आत्मनिर्भर बनाने का लॉलीपॉप दिया है…हो सकता है कि इसी उम्मीद में किसान आत्महत्या से तौबा कर सरकारों की उपलब्धियों पर मुहर लगा दें।