किसानो ! घर लौट जाओ ! !

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राकेश अचल

देश का सबसे लंबा किसान आंदोलन चलने के लिए किसानों का अभिनंदन होना चाहिए ,लेकिन अब मेरा मत है की किसानों को अपना आंदोलन समाप्त कर घरों को वापस लौट जाना चाहिए,क्योंकि सरकार किसी भी सूरत में किसानों की मांग स्वीकार करने को राजी नहीं है.केंद्र सरकार ने किसान आंदोलन के चलते देश के 9.75 करोड़ किसानों को दो-दो हजार रूपये की सम्मान निधि भेज दी है ,इस रकम से किसान अपना सम्मान आप कर सकते हैं
..मैंने आजतक किसी ऊँट को जीरा खाते नहीं देता ,किन्तु बचपन से सुनता आ रहा हूँ की ‘यदि किसी को उसकी जरूरत से कम दिया जाये तो कहा जाता है की- ये तो ऊँट के मुंह में जीरे जैसा है “.किसान सम्मान निधि भी मुझे ऊँट के मुंह में जीरे जैसे लगती है ,क्योंकि इन दो हजार रुपयों से तो किसान की जरूरतों में न छोंक लग सकता है और न बघार .किसान सरकारी क़ानून का भी मारा है और कुदरत का भी मारा है. सरकार ने जटिल क़ानून बना दिए और कुदरत ने बाढ़ के जरिये किसानों का सब कुछ छीन लिया ,सरकार की और से दिए गए रुपयों में से तो आंदोलन के कहते मारे गए किसानों के अंतिम संस्कार का ही कर्ज नहीं पत्नी वाला .
हैरानी की बात ये है की जो संसद पिछड़ वर्ग के लिए बनाये गए क़ानून को आम सहमति से पास करा लेती है वो ही संसद किसान विरोधी कानून को वापस नहीं करा पाती .किसानों के मुद्दे पर सत्तारूढ़ दल विपक्ष के साथ खड़ा नहीं हो सकती .आखिर ये सत्ता और विपक्ष का कौन सा चरित्र है ?मुझे तो लगता है की ये सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं.किसानो के मुद्दे पर इनके भीतर कोई आम सहमति है .ऐसी विषम स्थिति में किसानों को सरकार से निबटने के लिए अपनी तान्निति में जरूरी तब्दीली करना चाहिए .
किसान आंदोलन को चलने वाले लोगों ने अब तक जैसे-तैसे किसान एकता को बनाये रखने की कोशिश की है ,हालाँकि इस बीच अनेक किसान नेता या तो घर बैठ गए या उन्होंने सरकार का साथ देना शुरू कर दिया है .जो किसान नेता हैं वे अब बंगाल के बाद यूपी विधानसभा चुनाव में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाटते हैं ,लेकिन ये बहुत प्रभावी तरीका नहीं है. बंगाल के चुनाव भाजपा किसानों की वजह से नहीं हारी ,वहां भाजपा को तृण मूल कांग्रेस ने अपनी रणनीति से हराया .उत्तर प्रदेश में स्थितियां भिन्न हैं यूपी में लड़ाई का स्वरूप बंगाल जैसा नहीं है .यहां विपक्ष बंगाल की तरह आक्रामक नहीं है .यूपी में विपक्ष बिखरा हुआ है .हर मुद्दे पर बिखरा है .
किसानों को अपने आंदोलन के आठ भीतरघात करने और अपने स्वाभिमान की अनदेखी का बदला लेना है तो उन्हें अपने वोट की ताकत को मजबूती के साथ इस्तेमाल करना होगा किसान आज भी इस देश की तकदीर लिख सकते हैं और अगर किसानों ने अपनी एकता का प्रदर्शन यूपी में कर दिखाया तो मान लीजिये की किसानों की मेहनत कामयाब हो जाएगी ,अन्यथा ये आंदोलन बिना किसी नफा -नुकसान के समाप्त हो जाएगा और ऐसा होना नहीं चाहिए .
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को पीएम किसान सम्मान निधि योजना के 9.75 करोड़ लाभार्थी किसानों के खाते में 19,509 करोड़ रुपये ट्रांसफर किया। इस योजना की यह 9वीं किस्त है। इस स्कीम के तहत सरकार की तरफ से प्रत्येक वर्ष किसानों के खाते में 2 हजार रुपये की तीन किस्त जमा कराई जाती है।कहने को ये एक बड़ी अच्छी और उदार योजना है.किसानों को इस योजना के तहत मिलने वाली इस सम्मान निधि से देश के किसी किसान का भला नहीं होता .दो हजार में तो तीन महीने की चाय का खर्च भी नहीं निकलता
किसानों को समझना चाहिए की सरकार और तमाम राजनितिक दल जहां आरक्षण के मामले में एकजुट हैं .वहीं किसानों के मुद्दे पर विभाजित .यदि ऐसा न होता तो केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉक्टर वीरेंद्र कुमार द्वारा लोकसभा में पेश किया गया संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021 सर्वसम्मति से पास न हो गया होता ।  विपक्षी पार्टियों ने भी इस विधेयक का समर्थन किया है। ये बिल राज्य सरकारों को ओबीसी लिस्ट तैयार करने का अधिकार देगा।  हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में केंद्रीय कैबिनेट ने इसपर मुहर लगाई थी।  
केंद्र ने आंदोलनरत किसानों को लुभाने के लिए नौ वीं क़िस्त के रूप में 19500 करोड़ रूपये डाले हैं किसानों को इतनी कम कीमत पर बिकना नहीं चाहिए किसानों के सम्मान की ये न्यूनतम से भी कम कीमत है .लेकिन सरकारों को तो किसानों की कीमत इससे ज्यादा समझ में आती ही नहीं है किसानों को जो चाहिए वो सरकार देने को तैयार नहीं है और जो नहीं चाहिए उसे सरकार अपना बताकर कर किसानों पर जबरन थोप रही है .गौरतलब है की पीएम किसान सम्मान निधि के तहत अब तक 11 करोड़ से अधिक किसानों को एक लाख 37 हजार करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं।किसान आंदोलन को समेटने के लिए ये कीमत कम तो नहीं है .
आपको ध्यान रखना होगा की हमारी सरकारें आप जो चाहते हों वो तो कभी नहीं कर सकतीं.आप रोजगार चाहते हैं नहीं दे सकतीं.आप सद्भाव चाहते हैं ,सरकारें नहीं चाहतीं.वे आदमी तो छोड़िये राज्यों को आपस में लड़ाने की कूबत रखतीं हैं.आप अस्पताल,स्कूल चाहते हैं,सरकार मंदिर-मस्जिद बनाने की सोचती है .आप विवादों से बचना चाहते हैं लेकिन सरकार रोज नए विवाद पैदा कर देती है. आप क़ानून बनाकर दलबदल रोजना चाहते हैं,सरार इसे प्रोत्साहित करती है.आप स्थितर सरकार चाहते हैं,सरकार सरकारों को अस्थिर करने में भिड़ जाती है .आप मेहनत से कमाना-खाना चाहते हैं सरकार आपको मुफ्त में अन्न देने में पुण्य समझती है .किसान को सम्मान से जीने के लिए खाद,पानी,बिजली,डीजल सस्ता चाहिए लेकिन सरकार इन सबके दाम बढाकर आपको दो हजार रूपये की सम्मान राशि टिका देती है .आप अच्छे दिन चाहते हैं,सरकार दिनों को बुरा बना देती है .कुल मिलकर आप सरकार से जित नहीं सकते .
बहरहाल मै किसानों की वंश बेल से आता हूँ इसलिए फिर कहता हों की किसानों को अपना आंदोलन समेत कर घर लौट जाना चाहिए .उसे यदि अपने मन का क़ानून चाहिए तो पहले अपने सूबे में,अपने मुल्क में अपने मन की सरकार बनाये ,,आंदोलन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी .अभी आंदोलन इसलिए करना पद रहा है क्योंकि जो सरकार है वो किसानों की है ही नहीं .किसानों की सरकार खलिहानों से होकर निकलती है चाय के ठेलों से नहीं .15 अगस्त को झंडा उन्हें ही फहराने दो जिन्हें आपने जनादेश दिया था .आप तिरंगा खेतों-खलिहानों में फहराओ .