खलनायक तो नहीं हैं फारुख अब्दुल्ला

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पूरे ८१ साल का कोई शख्स आम जनता की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है ,ये असम्भव तो नहीं लेकिन बहुत सम्भव भी नहीं है लेकिन जब कोई सरकार ऐसा तय कर ले तो सब कुछ सम्भव है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ फारुख अब्दुल्ला के साथ ऐसा ही हो रहा है। केंद्र सरकार ने उन्हें पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत गिरफ्तार किया हुआ है ।डॉ अब्दुल्ला की गिरफ्तारी पर उंगलियां उठाने वाले हम जैसे लोगों से कहा जा सकता है की आपातकाल के दौरान भी तो जेपी समेत अनेक लोग जेलों में ठूंसे गए थे !

डॉ फारूख अब्दुल्ला देश के नहीं तो कम से कम जम्मू-कश्मीर के नायक तो रहे हैं ,और अपनी  दम पर रहे हैं ,वे एक मुखर वक्ता हैं,कला प्रेमी हैं मुस्लिम होते हुए भी प्रगतिशील हैं ,राम-श्याम के भजन गाते हैं लेकिन वे पब्लिक की सेफ्टी के लिए खतरनाक भी हैं ये दुनिया ने अब जाना जब उन्हें सरकार ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत गिरफ्तार किया ।सवाल ये है की क्या केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में आपातकाल लगा है जो किसी राजनेता को बिना अपील,वकील और दलील वाले क़ानून के तहत जेल में डाला गया है ,या फिर इसके पीछे वैसी ही छुद्र राजनीति है जो 25  जून 1974  को देश में इस्तेमाल की गयी थी।

केंद्र सरकार के लिए डॉ फारुख अब्दुल्ला भले ही खतरनाक व्यक्ति हों लेकिन जाती तौर पर मै उनका मुरीद हों।मेरे मित्र होने के नाते आप भी उनके मुरीद हों ये आवश्यक नहीं है ।डॉ फारुख अब्दुल्ला अगर चाहते तो विभाजन के वक्त ही अपना डोरी-डंगा सम्हाल कर पाकिसातन चले जाते लेकिन वे नहीं गए,उनके पुरखे भी नहीं गए ,उनके बच्चे भी नहीं गए । वे तीन मर्तबा अपने सूबे के मुख्य मंत्री भी रहे और दो मर्तबा राज्य सभा तथा दो मर्तबा लोकसभा के सदस्य भी रहे।केंद्र में मंत्री के रूप में भी उन्होंने काम किया और उस संविधान की शपथ लेकर किया जिसके तहत और लोग भी काम करते हैं ,फिर वे अचानक पब्लिक सेफ्टी के लिए खतरा कैसे बन गए ?क्योंकि पब्लिक सेफ्टी के लिए जो लोग सचमुच खतरा हैं वे तो खुले घूम रहे हैं और पूरे देश में धमाचौकड़ी मचाये हैं। कोई बलात्कार का आरोपी है तो कोई भूतपूर्व तड़ीपार।

पीएसए के तहत बंदी बनाए जाने वाले वह राज्य पहले पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद हैं। इसके अलावा उन्हें जहां रखा गया है,उसे अस्थायी जेल का दर्जा दिया गया है। डा फारुक अब्दुल्ला अपने ही मकान में बंद हैं। पीएसए को राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री स्व शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने वर्ष 1978 में लागू किया था। उस समय उन्होंने यह कानून जंगलों के अवैध कटान में लिप्त तत्वों को रोकने के लिए बनाया था, बाद में इसे उन लोगों पर भी लागू किया जाने लगा था,जिन्हें कानून व्यवस्था के लिए संकट माना जाता है। तो डॉ फारुख साहब जंगलों के लिए तो संकट नहीं हैं लेकिन कानून और व्यवस्था के लिए संकट जरूर मान लिए गए हैं ।

केंद्र की नजर में जनता की सुरक्षा के लिए खतरनाक  फारूक अब्दुल्ला ने अपने समय में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। कांग्रेस के साथ उनकी पार्टी का गठबंधन कई बार अलग हुआ और कांग्रेस समर्थक राज्यपाल सरकार भी भंग की गई। जब उनकी पार्टी ने 1987 में चुनाव जीता तब धांधली की भी कई अफवाहें उड़ीं थीं। 1980 और 1990 के दशक में उनके प्रशासन के दौरान जम्मू कश्मीर राज्य में बेरोजगारी बढ़ी और राज्य उग्रवाद से ग्रस्त रहा, इस कारण हजारों कश्मीरियों को जान गंवानी पड़ी। इस अवधि में कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़कर अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह जीवन गुजारना पड़ा। फारूक अब्दुल्ला कश्मीर मसले पर अपना नजरिया भारत समर्थक के साथ-साथ स्वायत्त समर्थक के तौर पर स्पष्ट करते हैं। वे अपनी  धर्मनिरपेक्षतावादी की छवि पेश करते हैं।

आज की तारीख में पूरे दस हजार फ़ौक़ियों को जम्मू-कश्मीर में तैनात कर वहां से धारा ३७० हटाने के बाद भी यदि डॉ फारुख अब्दुल्ला सरकार की नजर में खतरनाक हैं तो फिर कुछ भी कहना बेकार है ।लोकतंत्र में सियासत साधने के लिए हर कदम छम्य और सार्थक होता है लेकिन जनता सब समझती है और समय रहने पर उत्तर देती है जैसा की १९७७ में देश की जनता ने आपातकाल लादने वाली शक्तियों को दिया था ।जम्मू -कश्मीर से न सिर्फ उसका राज्य का दर्जा छीना जाना एक अछम्य अपराध है बल्कि फारुख जैसे राष्ट्रीय मेताओं की गिरफ्तारी भी वैसा ही अछम्य अपराध है। क़ानून की नजर में मुमकिन है की ये विधि सम्मत कार्रवाई हो किन्तु लोकदृष्टि में इसे उचित नहीं माना जा सकता ,लेकिन जब सत्ता मदांध हो जाए तो सब मुमकिन है ।यदि इस प्रवृत्ति की मुखालफत नहीं की गयी तो देश एक बार फिर उस अंधी सुरंग में जा घुसेगा जहां अन्धेरा ही अन्धेरा है।

राकेश अचल