शिवराज मंत्रिमंडल को लेकर माथा पच्ची…

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राघवेंद्र सिंह

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंत्रीमंडल विस्तार को लेकर सबसे ज्यादा कठिन दौर से गुजर रहे हैं।पिछले ढाई महीने में कोरोना संकट के साथ सबसे मुश्किल काम मन्त्रियों के सिलेक्शन का है। इतनी दिक्कत तो शिवराज सिंह को तब भी नही आयी जब भाजपा के विधायक 165 हुआ करते थे। विंध्य, महाकौशल, मालवा से मंत्री चुनना रेत में सुई खोजने जैसा काम होगा। सब बार दिल्ली से भोपाल तक पार्टी में कई पॉवर सेंटर बन रहे हैं । यही सबसे बड़ी दिक्कत है। ऐसे सीएम अपनी पसन्द के मंत्रियों के लिए वीटो का इस्तेमाल कर सकते हैं।
       कांग्रेस के बागी 22 पूर्व विधायकों में से 14 को मंत्री बनाने के संकेत हैं। इनमे दो तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत पहले ही शपथ ले चुके हैं। संभवत: 2 जून को 23 नेता मंत्री पद की शपथ लेंगे। इनमें कांग्रेस से भाजपा मे आए लगभग 12 पूर्व विधायक के साथ भाजपा के 11 विधायक मंत्री पद की शपथ लेंगे। शिवराज सिंह की दिक्कत भाजपा में मंत्री चुनने की है।विंध्य क्षेत्र से भाजपा को चुनाव में सर्वाधिक सफलता मिली थी। इसलिए वहां मंत्री पद के दावेदार पद ना मिलने पर बागी मूड में दिख रहे हैं।राजेन्द्र शुक्ला, गिरीश गौतम,नागेन्द्र सिंह और केदार शुक्ला का शपथ लेना तय माना जा रहा है।राजेन्द्र शुक्ल शिवराज की पसंद में सबसे ऊपर हैं।इसी तरह बुन्देलखण्ड से गोपाल भार्गव और भूपेन्द्र सिंह का मंत्री बनना तय माना जा रहा है। यहां से हरिशंकर खटीक और प्रदीप लारिया भी चर्चा में है। पन्ना से ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह भी दौड़ में बने हुए हैं। महाकौशल से बड़े नेता अजय विश्नोई और बालाघाट से गौरीशंकर बिसेन का पत्ता कट सकता है। विश्नोई की जगह अरुण रोहाणी का के कैबिनेट में जगह मिल सकती है। पूर्व मंत्री विश्वास सारंग और रामेश्वर शर्मा दमदार दावेदार हैं। खींचतान को देखते हुए भोपाल शहर से एक भी मंत्री नही बनाया जाए। पहले इंदौर के साथ भी ऐसा हो चुका है। ताई और भाई के चक्कर में शिवराज सरकार में इंदौर से कोई भी मंत्री नही बना था। सेसे में भोपाल ग्रामीण की बैरसिया सीट से आरक्षित वर्ग में विष्णु खत्री को मंत्री बनाया जा सकता है।
इंदौर से रमेश मेंदोला और मऊ सीट से ऊषा ठाकुर को शपथ दिलाई जा सकती है। इन दोनों के नाम पर सहमति नही होने पर मालिनी गौड़ भी मंत्री बनाई जा सकती हैं। शिवराज सिंह की मंशा के बाद भी सुरेंद्र पटवा इस बार शायद शपथ का अवसर न मिल पाए। ऐसे में  रतलाम और जावद से चेतन्य कश्यप के साथ ओमप्रकाश सखलेचा में से कोई एक मंत्री बन सकते हैं।
लेबर रूम में कैबिनेट विस्तार…
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का मन्त्रिमण्डल विस्तार का मामला प्रसव वेदना के अतिरेक पर जा रहा है। उप चुनाव में जीत का प्रेशर और पहले की तरह फ्री हैंड न मिलना मुश्किल बढ़ा रहा है। सबको साथ लेकर चलने वाले शिवराज सिंह के लिए भी अबकी बार सरकार चलाना दिक्कत भरा लग रहा है। कई दौर की बैठकों के बाद भी उचित समाधान नही मिल पा रहे हैं। लेकिन
शिवराज सिंह संगठन से निकले हुए घुटे घुटाए नेता हैं। इसलिए आलाकमान को उनकी काबिलियत पर भरोसा है। असंतुष्टों के अखाड़े में वे आश्वासनों का तेल लगा कर उतरते हैं इसलिए हाथ से फिसल भी जाते हैं और छुड़ा कर निकल भी जाते हैं। उनकी इस अदा पर बुरा मानने वालों को मनाने की कला में पारंगत भी है।
सीएम की पहली प्राथमिकता 24 उप चुनाव जीतने की है। नाराज विधायकों को उप चुनावों के बाद के विस्तार में एडजस्ट करने का आश्वासन देकर शांत किया जा सकता है। इसके बाद ज्यादा ऊर्जावान  नेताओं की सेवाएं प्रदेश भाजपा में भी ली जा सकती हैं।
डीजीपी विवेक का विकल्प कौन..?
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चौथी दफा सत्ता संभालने के बाद अपने कड़े और गतिशील रुख का अहसास करा दिया था। कुछ ही घण्टों में मुख्य सचिव के पद पर इकबाल सिंह बैंस की तैनाती आक्रमक शिवराज के बदलते तेवर की तस्दीक भी कर रही थी। इस बार की सत्ता मुश्किल वक्त में मिली थी सो इस सियासी लीडर के सख्त होने और दिखने की रस्म भी जरूरी है।  लेकिन बदलाव का यह दौर सीएस के बाद दूसरी अहम पोस्टिंग डीजीपी तक आते आते ठिठक सा गया। पुलिस महानिदेशक का पद खासा महत्वपूर्ण होता है। मगर अभी तक विवादित तरीके से डीजीपी बने विवेक जौहरी का विकल्प मुख्यमंत्री घोषित नही कर पाए हैं। जिस हड़बड़ी में नियम कायदों को ताक पर रख जौहरी का चयन हुआ सबको पता है। पांच मार्च 2020 को तत्कालीन डीजीपी वीके सिंह को आनन फानन में हटाया गया। उनके स्थान पर केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर रहे विवेक जौहरी को प्रदेश का डीजीपी बनाया गया। साथ ही उनके कार्यभार ग्रहण करने तक प्रभारी के तौर पर राजेन्द्र कुमार को डीजीपी की कमान सौंपी गई। तब तक तेजी से घटित हुई घटनाक्रम कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई थी। अनिश्चितता के मध्य जौहरी ने आठ मार्च को डीजीपी का पद संभाल लिया। वीके सिंह के हटने से लेकर दिग्विजय सिंह के खास रहे जौहरी के डीजी बनने और अवकाश के दिन दो साल का सेवाकाल देने का आदेश दे दिया।यह सब तब हुआ जब कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ चुकी थी और राज्यपाल ने सदन में बहुमत साबित करने के लिए कहा था।  कानून के जानकार नियुक्ति और सेवाकाल में दो साल की बढ़ोत्तरी को विधि विरुद्ध व परम्परा के विपरीत मानते हैं। विवेक के   विकल्प के रूप में बहुत संभव है संजय चौधरी और विजय यादव मजबूत दावेदार हैं। वरिष्ठता, अनुभव और मुख्यमंत्री से निकटता के नाते  चौधरी चयन के काफी नजदीक लगते हैं। इसके साथ ही दूसरे क्रम पर विजय यादव भी वजनदार नाम है। अगले बरस रिटायर होने वाले चौधरी के छह माह बाद यादव भी रिटायर हो रहे है। शिवराजसिंह के परिवहन आयुक्त रहे संजय बहुत संभव है विवेक के विकल्प बन जाएं..