राघवेन्द्र सिंह
हरेक दल और उसके नेताओं का दर्शन शास्त्र होता है। उस शास्त्र के दर्शन उनके आहार – व्यवहार से लेकर आचार – विचारों में दिखलाई पड़ते हैं। इससे कुल परिवार और घराने के साथ भविष्य के अनुमान भी लगाए जाते हैं। सरकार के संचालन पर शिवराजसिंह चौहान व संगठन में टीम गठन के मामले में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा पर सबकी नजर लगी हुई है। उनकी कार्यशैली से तय होगा कि वे भाजपा को कहां तक ले जाएंगे और स्वयं भाजपा में कहां तक जाएंगे। आने वाले समय में 24 विधानसभा के उप चुनाव से शिव और विष्णु की लीलाओं का भविष्य तय होगा। ये चुनाव राज्य में कांग्रेस के नेताओं खासकर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की भी भूमिका सुनिश्चित करेंगे।
शिवराजसिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रशासन के मामले में बदले बदले से नजर आ रहे हैं। उन्होंने शपथ लेने के पहले ही ऐसे संकेत देने शुरू कर दिए थे। वे जनता के बीच तो स्वभावनुसार सहज व उदार दिखेंगे। लेकिन वे पिछले तीन कार्यकाल की तुलना में लिहाजी और लचर प्रशासक के स्थान पर कठोरता लिए नजर आएंगे। एक तरह से यह पिंड बदलने जैसी कठिन ही सही मगर कोशिश तो है। उनके विरोधियों के साथ शुभचिंतक भी सम्भावित परिवर्तन पर दूरबीन से नजर बनाए हुए हैं।
एक दिन पहले ही 9 मई को उन्होंने 50 आईएस अफसरों के तबादले कर यह बात दिया है कि अफसरों से रिजल्ट चाहते हैं।स्वास्थ विभाग की प्रमुख सचिव रही पल्लवी जैन गोविल को उन्होंने कोरोना पीड़ित होने के बाद विभाग से मुक्त कर दिया था।अपनी पिछली सरकार से कमलनाथ सरकार और फिर वर्तमान में जनसम्पर्क आयुक्त रहे पी नरहरि की विदाई कर उन्होंने भोपाल कलेक्टर रहे डॉक्टर सुदामा खाड़े को आयुक्त जनसम्पर्क बनाया।अशोक शाह को महिला बालविकास, मलय श्रीवास्तव को पीएचई पर्यावरण, मनोज गोविल को वाणिज्यकर और डीपी आहूजा को प्रमुख सचिव जल संसाधन बनाया है। ये एक तरह से प्रशासन में शिवराज सरकार के नए चेहरे होंगे।आगे भी रिजल्ट देने वाले अफसरों को महत्वपूर्ण कार्य सौपे जाएंगे। इकबाल सिंह बैस को मुख्य सचिव बनाने के साथ ही शिवराज ने सख्ती के संकेत दे दिए थे। मगर भोपाल संभाग आयुक्त के पद पर कल्पना श्रीवास्तव की जगह कवींद्र कियावत का चयन जरूर चर्चा में रहा है।राजधानी में जिस तरह की दक्षता लिए कठोर कमिश्नर की ज़रूरत थी, कियावत थोड़े उसमे नर्म और समझौतावादी नज़र आ सकते हैं।
कोरोना वायरस के नियंत्रण के लिये लॉक डाउन के मुद्दे पर पुलिस और प्रशासन के छोटे कर्मचारी और अफसर नज़र आ रहे हैं।इस महामारी को काबू में करने के लिए लॉक डाउन की सफलता ही महत्वपूर्ण है और इस मुद्दे पर इंदौर भोपाल बुरी तरह पिछड़ गए हैं। इनमें पुलिस और प्रशासन की खामी इसलिए भी नज़र आती है क्योंकि वे राजनैतिक दल और समाज सेवियों का अनुशासित सहयोग नही ले पाए।प्रशासन पुलिस के सहयोग से राशन और खाना बाटने का काम समाज सेवियों से करा सकता था लेकिन यह काम जब पुलिस और प्रशासन करेंगे तो जाहिर है उसमें सेवा का भाव काम सरकारी अंदाज़ ज़्यादा होगा। हो भी ऐसा ही रहा है। रेड ज़ोन, टोटल लॉक डाउन का पालन नही होने से वायरस विस्तार के खतरे बढ़ गए हैं। सरकार को इस पर रणनीति बदल विपक्ष को भी साथ लेने पर सोचना चाहिए।
भाजपा के 24 जिला अध्यक्षों में भविष्य के सपने …
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने भोपाल इंदौर और ग्वालियर सहित 24 जिलों में नएं अध्यक्ष घोषित कर दिए हैं।यह ऐसे मौके पर हुआ है जब पार्टी 24 विधानसभा मे उपचुनाव लड़ने जयि तैयारी कर रही है। कहा जाता है युद्ध के समय घोड़े और सेनापति नही बदले जाते लेकिन विष्णु शर्मा ने खींचतान के बीच जोखिम भरा फैसला कर ही लिया है।
नये अध्यक्षों में युवाओं को महत्व दिया गया है।लेकिन वे कित्ने सफल होंगे यह भविष्य ही बतायेगा। हम भोपाल इंदौर के जिला अध्यक्ष को लिटमस टेस्ट पर रखेंगे। भोपाल नगर का अध्यक्ष सुमित पचौरी को बनाया है। नगर भाजपा में उपाध्यक्ष रहे पचौरी के खाते में अभी तक पुरुषार्थ, पराक्रम और समन्वय का कोई बड़ा काम नही है। समन्वय का दुष्कर कार्य जैसे कि महापौर व मंत्री रहे उमाशंकर गुप्ता से लेकर पूर्व विधायक सुरेन्द्रनाथ सिंह, महापौर रहे आलोक शर्मा और विकास वीरानी तक रहा है।
अध्यक्ष बनने की योग्यता में शालीन सुमित के युवा होने के साथ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष से उनकी गहरी निकटता भी है। लेकिन इस बिना पर भोपाल के दिग्गजों के बीच वे कितने सफल होंगे इसे लेकर विश्वास कम सन्देह ज्यादा है। भोपाल भाजपा के जिला अध्यक्ष की सूची में विदा हो रहे अध्यक्ष विकास वीरानी से लेकर आलोक शर्मा, सुरेन्द्रनाथ सिंह और उमाशंकर गुप्ता तक को वरिष्ठों से समन्वय करने और सहयोग लेने में पसीने छूट जाते थे। भोपाल- इंदौर समेत सभी जिलों में विधायक-सांसदों के अपने अखाड़े और इलाके हैं । जिनके अपने कायदे कानून और अपनी हदबंदी है। जिला अध्यक्ष तक उसमें कम ही दखल देते हैं। यहां तक कि विधानसभा क्षेत्र में प्रवेश और उनके इलाके में होर्डिंग- बैनर में फोटो भी विधायकों की इजाजत के बिना सम्भव नही है।वार्ड मंडल से लेकर जिला अध्यक्ष का निर्वाचन/चयन उनकी सहमति के बिना कठिन होता था। ऐसा क्यों होता था ? इस प्रश्न का अलग अध्याय है।
नैतिकता, योग्यता, शालीनता, समन्वय गुणों में क्षरण प्रमुख कारण रहे। कार्यकर्ताओं व जनता के बीच स्वीकार्यता की जगह गणेश परिक्रमा करने वाले नेताओं ने ले ली। छोटा दिखने वाला ये बड़ा मामला है। इस पर फिर कभी चर्चा करेंगे।
इसी तरह इंदौर में गौरव रणदिवे को वरिष्ठ नेता ताई सुमित्रा महाजन और भाई कैलाश विजय्वर्गीय के बीच तालमेल कर काम करना कठिन होगा। इन दिग्गजों के बीच सहमति – समन्वय नही होने की वजह से शिवराज सिंह की पिछली सरकार में इंदौर के विधायकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। ताई-भाई में असहमति के चलते इंदौर से कोई मन्त्री नही बन सका था। दिग्गजो के शहर से गौरव का अध्यक्ष बनना गौरव की बात है। लेकिन “गौरव” बचेगा या बढ़ेगा बहुत कुछ कार्यशैली पर निर्भर करेगा।पूरे मामले में अति उत्साह या बचपने का उदाहरण इस बात से भी मिलता है कि वे अपने नाम की घोषणा होते ही रेड ज़ोन में शामिल इंदौर से खुशी के मारे भागे – भागे भोपाल आए ताकि प्रदेश अध्यक्ष को अपनी नियुक्ति पर फोटो खिचाएं और आशीर्वाद ले सके। अभी तो इस तरह भावातिरेक में हुई गलतियों की अनदेखी करना ही उचित है। लेकिन इन्हें रोका नही गया तो संगठन को नुकसान होने का अंदेशा ज्यादा रहेगा।
सिर पर आए उपचुनावों के बीच नए नवेले 24 जिला अध्यक्ष को साबित करना होगा कि इस महाभारत में उन पर लगाया दांव सही है । नए अध्यक्ष और निर्णय करने वाले नेतागणों का जोहरीपन, चाणक्यों की चतुराई भी दांव पर है। हमारी सभी नवनियुक्त 24 जिला अध्यक्ष को बधाई और शुभकामनाएं कि उनका कार्यकाल यशस्वी हो।
उपचुनाव में कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी…
कांग्रेस 24 विधान सभाओं के उपचुनाव की रणनीति बना रही है, इसमे मुख्य भूमिका कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की होगी। मैदानी सूत्र दिग्विजय संभालेंगे और समन्वय का काम कमलनथ देखेंगे। चम्बल सम्भाग में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक उम्मीदवारों को हराने के लिए पूर्व मंत्री गोविंद सिंह और केपी सिंह की जोड़ी काम करेगी।इसके लिए भाजपा के बागियों पर भी दिग्विजय और कमलनाथ डोरे डाल रहे हैं। उपचुनावो के परिणाम प्रदेश में दिग्विजय और कमलनाथ की जोड़ी का भविष्य तय करेंगे।चुनाव में बढत के लिए कांग्रेस के भीतर डॉक्टर गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाना भी तय हो गया है।