श्रुति कुशवाहा
अच्छे मियां को बेगम से बिल्कुल डर नहीं लगता… आजकल वो ख़ुद को इस बात का यक़ीन दिलाने में जुटे हैं…हुआ यूं कि पिछली जुमेरात अच्छे मियां को टहलते हुए अचानक शकीर भाई मिल गये। अरसे बाद मुलाक़ात हुई, पता चला कि वो उन्हीं के पास वाले नए मोहल्ले में शिफ्ट हो गए हैं। रास्ते पे हुई मुलाक़ात में ही शकीर साहब ने अच्छे मियां को तुरंत ही घर चलने का न्योता दे दिया। रात के साढ़े आठ बज रहे थे लिहाजा मियां जी ने टालमटोल की लेकिन शकीर साहब कहाँ मानने वाले थे, ले ही गए घेरकर…
कसम से क्या खूबसूरत आशियाना बनाया है शकीर साहब ने। बड़े सा हॉल रोशनी से जगमगा रहा है, संगमरमर की फ़र्श पर रोशनी की झिलमिलाहट पड़ रही और दीवार पर बड़ा टीवी लगा हुआ है। लकड़ी की अलमारी में तरह तरह के सुंदर शो पीस सजे हुए हैं। अच्छे मियां इन सारी खूबसूरती में डूबने ही वाले थे कि यकायक शकीर मियां की बुलंद आवाज़ से चौंक उठे। शकीर साहब ने अपनी बेगम साहिब की आवाज़ दी और ये क्या, एक ही आवाज़ में उनकी बेगम दौड़ी चली आईं। न सिर्फ आईं बल्कि उनके सामने आकर यूँ खड़ी हो गईं ज्यों कि हुकुम की तामील को बेक़रार हों। शकीर मियां ने कहा कि हमारे दोस्त आए हैं तो कुछ ख़ातिरदारी की जाए, बस इतना सुनना था कि वो ये गई वो गई। अच्छे मियां टोकते ही रह गए कि उन्हें कुछ न चाहिए, लेकिन तब तक तो मेज़ सज चुकी थी…
सेब, अनार और अनानास कटे रखे थे, तीन तरह केक थे, नमकपारे और आलू के सेव, साथ में दो कटोरियों में सेवई भी। अच्छे मियां की आंखें फटी रह गयी, मेज़ देखकर नहीं..शकीर मियां का रुआब देखकर। हैरत से उनके मुंह मे लफ्ज़ की जम गए, क्या ऐसा भी हो सकता है कि बगैर बेगम कि इजाज़त के किसी को इतनी रात घर लाया जा सकता है, न सिर्फ घर ले आना बल्कि बड़े ही ताब के साथ हुकुम चला देना…
आख़िर पूछ ही लिया अच्छे मियां ने हौले से, शकीर साहब बड़े जलवे हैं आपके तो घर में, भाभी साहिबा भी बड़ी ही फरमाबरदार हैं। तब शकीर साहब ने उन्हें गहरी बात बताई, बोले, पहले मैं भी बहुत खौफ़ में रहता था लेकिन एक दफ़े हालात कुछ ऐसे बने कि ससुराल में ही बेगम से मेरी लड़ाई हो गई। उस वक़्त अपनी इज़्ज़त की खातिर पहली बार मैंने बेगम के आगे घुटने नहीं टेके, और शायद वही मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी बाज़ी थी। बस उस दिन ससुराल में मेरी जो जीत हुई तो वो जलवा आज तक कायम है…
अच्छे मियां अपने दोस्त के घर से एक रामबाण नुस्खा लेकर आए हैं, अब वो खुद को बार बार ये यक़ीन दिलाने पर जुटे हैं कि उन्हें बेगम से डर नहीं लगता। ये बात अब उन्हें साबित भी करनी है…
आज अच्छे मियां के साले साहब आए हुए हैं। बेगम का मूड बहुत अच्छा है, उन्होंने भाई की पसंद के चार खाने बन हैं तो साथ में मियां जी के शौक का भी ख़याल रखा है। खुशबुओं से घर महक रहा है लेकिन अच्छे मियां को तो मौक़े की तलाश है, वो बार बार कोशिश कर रहे हैं कि कुछ ऐसा हो जो नोकझोंक का कारण बने। लेकिन आज बेगम साहिबा उन्हें मौक़ा ही नहीं दे रहीं…
खाने के लिए सब बैठ चुके हैं, थाली में इतनी चीजें हैं कि जगह नहीं बची। अचानक अच्छे मियां ने कटहल का अचार मांग लिया, उन्हें मालूम है पिछले हफ्ते ही अचार ख़त्म हो चुका है। जैसे ही बेगम ने कहा कि अचार नहीं है अच्छे मियां भड़क गए, साले साहब के सामने ही बेगम को दो तीखी बात सुना दी, इन दो बातों की प्रैक्टिस वो पिछले चार दिन से कर रहे हैं। उन्हें पूरी उम्मीद है कि आज इस किस्से के बाद से घर पर उनका राज होने वाला है…
बेगम ने मियां जी की बात सुनी और एकदम उठ खड़ी हुई, भाई को भी हाथ पकड़कर उठाया, अपने कमरे में ले गईं और दस मिनिट बात मय सामान के दोनों बाहर निकले। बेगम घर छोड़कर जा रही है मैके, और इस बार तो उनके साले साहब भी मियां जी की बदमिज़ाजी के गवाह हैं…
बेगम जा चुकी हैं, अच्छे मियां हक्के बक्के खड़े हैं, उनका पांसा उल्टा पड़ गया है। अच्छे मियां ने शकीर साहब को फोन लगाकर सारा वाक़या बताया, उन्हें उम्मीद है कि इस नए हालात के लिए भी उनके पास कोई न कोई हल होगा ही…
शकीर साहब के नौकर ने फोन उठाया, बताया कि कल रात साहब और बेगम साहिबा का भयानक झगड़ा हुआ, बेगम साहिबा रुठकर उनके अब्बाजान के यहां चली गई हैं और शकीर साहब पीछे पीछे उन्हें मनाने गए हुए हैं…
अच्छे मियां को पता चल चुका है कि लंबे वक्त के लिए उनके अच्छे दिन जा चुके हैं..अब उनके पास बाज़ार से कटहल का अचार ले आने के सिवा कोई चारा नहीं बचा…

जानी मानी लेखिका