नई व्यवस्था में सरकार की पाई-पाई का होगा हिसाब

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जम्मू

नये जम्मू-कश्मीर में केंद्रीय फंडिंग की पाई-पाई का हिसाब होगा। पुनर्गठन के बाद केंद्र शासित प्रदेश बने जम्मू-कश्मीर में लेफ्टिनेंट गर्वनर पद पर सर्विंग ब्यूरोक्रेट की नियुक्ति इस ओर इशारा करती है। जम्मू यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और प्रदेश के सियासी हालात पर नजर रखने वाले प्रो. दीपांकर सेन गुप्ता के अनुसार जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर पद के लिए चुने गए गिरीश चंद्र मुर्मू वर्तमान में एक्सपेंडिचर सेक्रेटरी के पद पर आसीन थे।

उन्हें खर्चे के हिसाब किताब से जुड़ी योजनाओं को सख्ती से लागू करने की महारत है। प्रो. दीपांकर के अनुसार जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को ब्लैकमेलिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। यहां की पॉलिटिकल क्लास हालात को मैनेज करने के लिए केंद्र से पैसा तो लेती थी, लेकिन इसका धरातल पर अमल नजर नहीं आता था। बीते वर्ष के आंकड़े साझा करते हुए प्रो. दीपांकर कहते हैं कि पिछले एक वर्ष में हिमाचल प्रदेश ने कैपिटल एक्सपेंडिचर (आधारभूत ढांचे पर खर्च) की मद में चार हजार करोड़ खर्च किए।

जबकि जम्मू-कश्मीर में 20 हजार करोड़ का खर्च दर्शाया गया। जम्मू-कश्मीर में घर-मकान और वाहनों की संख्या हिमाचल प्रदेश के समान या उससे अधिक है, जबकि रोड कनेक्टिविटी में हिमाचल प्रदेश जम्मू-कश्मीर से पांच गुना आगे है। बिजली उत्पादन क्षेत्र में भी हिमाचल प्रदेश ने कहीं बेहतर काम किया है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि जम्मू-कश्मीर में केंद्रीय फंडिंग का कभी कोई अभाव नहीं रहा है। मामला सिर्फ खर्च के हिसाब का है, जिस पर नये जम्मू-कश्मीर में खास नजर रखी जाएगी। प्रो. दीपांकर के अनुसार केंद्रीय फंडिंग के खुर्दबुर्द वाले प्रदेश में किसी एक्सपेंडिचर सचिव को प्रशासनिक कमान देने के पीछे व्यवस्था के आमूलचूल परिवर्तन की मंशा नजर आती है।

173 वर्षों में पहली बार बदला जम्मू-कश्मीर का भूगोल

अंग्रेजों के साथ महाराजा गुलाब सिंह की वर्ष 1846 में हुई अमृतसर संधि के बाद जम्मू-कश्मीर का भूगोल अधिकृत रूप से पहली बार बदलेगा। जम्मू-कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है वह आज भी भारत का अभिन्न हिस्सा है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर के नक्शे में पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) और गिलगित व बाल्टिस्तान भी शामिल हैं। लेकिन दो केंद्र शासित प्रदेश बनने से पहली बार जम्मू-कश्मीर का नक्शे में भी विभाजन हो जाएगा।

जम्मू-यूनिवर्सिटी में प्रो. दीपांकर सेन गुप्ता के अनुसार वर्ष 1947 में जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय होने के दौरान महाराजा की रियासत के अधीन कहे जाने वाले छितरल जिले (महतार आफ छितराल) को पाकिस्तान ने खैबर पख्तूनख्वा में मिला लिया। ऐसे में इसे महाराजा की रियासत से अलग मान लिया गया। लेकिन अधिकृत रूप से जम्मू-कश्मीर के नक्शे में 173 वर्ष बाद पहली मर्तबा बदलाव होगा।