मप्र कांग्रेस में सिर-फुट्टवल जारी

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TIO भोपाल

मध्य प्रदेश में  भाजपा (BJP) को मौजूदा कांग्रेस सरकार के खिलाफ़ कुछ करना ही नहीं पड़ रहा है और सब कुछ मर्जी के अनुरूप होता चला जा रहा है. इन दिनों एमपी में कांग्रेस  में जो घमासान मचा है वो प्रदेश में बैठी उनकी छोटी सी सत्ता को भी मुश्किल में डालने वाला है.यूँ भी कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे ख़राब दौर से गुज़र रही है, उस पर उसके घर को आग लगाने के लिए कई चिराग एक साथ सुलग रहे हैं.

नेतृत्व के ख़िलाफ बग़ावत
मसला पहले शुरू हुआ था सहयोगी दलों के विधायकों के साथ.शिकवों के दौर शुरू हुए कि हमारी सुनी नहीं जाती, हमारी अवहेलना हो रही है, हमारे काम नहीं हो रहे.इन आरोपों को यूँ हलके में लिया गया कि सहयोगी तो होते ही हैं धमकाने के लिए.उसके बाद जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नाम हवा में उछले, तो आंधी की शक्ल में परिवर्तित हो गए. लम्बे वक़्त से एमपी की सियासत में हाशिए में पड़े ज्योतिरादित्य सिंधिया का खून उबालें मारने लगा और अपने चिर-परिचित अंदाज़ में उन्होंने मौजूदा प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ बग़ावत बुलंद की.

वर्जित फल
सिंधिया परिवार को एमपी कांग्रेस का एक धड़ा कई साल से “वर्जित फल” की तरह मानता आ रहा है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता स्वर्गीय माधव राव सिंधिया को एक बार राजीव गांधी ने दिल्ली से उड़ाया कि जाकर एमपी में मुख्यमंत्री की शपथ लीजिए लेकिन जब तक वे भोपाल की धरती में लैंड कर पाते, तब तक सीन बदल गया था. उनकी जगह दिग्विजय सिंह के नाम की लॉटरी लग चुकी थी.

अब वक़्त तो बदला है लेकिन सिंधिया के खिलाफ किरदार नहीं बदले. सिंधिया विरोधी धड़ा जानता है कि उनको प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाना यानी समानांतर सरकार को न्यौता देना है.लिहाज़ा उनकी जड़ों में मट्ठे डालने के लिए बाल्टियां हाथ में लेकर लोग घूम रहे हैं. दिग्विजय बनाम सिंधिया, कमलनाथ बनाम सिंधिया, सुरेश पचौरी बनाम सिंधिया, कांतिलाल भूरिया बनाम सिंधिया, अजय सिंह बनाम सिंधिया…यानी पहला नाम भले ही बदलता रहे लेकिन बनाम में दूसरा नाम कॉमन है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया की चतुर चाल
सिंधिया इस बार हारने के इतिहास को दोहराने के मूड में दिख नहीं रहे हैं.वो बहुत चतुराई से फील्डिंग कर रहे हैं. खुद तो मौन हैं लेकिन एक तरफ़ अपने समर्थक मंत्रियों, कार्यकर्ताओं को उकसा रहे हैं. दूसरी तरफ ये ख़बरें हवा में तैरा रहे हैं कि यदि उनको अध्यक्ष नहीं बनाया गया तो वे भाजपा में भी जा सकते हैं. दिग्विजय सिंह को निशाना बनाने के लिए उनके समर्थक कहे जाने वाले मंत्री के बजाय उन्होंने ऐसे मंत्री को चुना, जो घोषित तौर पर उनका तो नहीं है लेकिन दिग्विजय सिंह का विरोधी है.वन मंत्री उमंग सिंघार के कंधे में सिंधिया की बन्दूक है और दिन में कम से कम तीन बार और अधिक से अधिक पांच फायर तो उस बन्दूक से हो ही रहे हैं.

सोनिया को ख़त
मंत्रियों को लिखी दिग्विजय की एक चिट्ठी के जवाब में बेहद तल्ख़ बयान उमंग का आया कि दिग्विजय पर्दे के पीछे से सरकार चला रहे हैं और पावर सेंटर बनना चाहते हैं. और कोई वक़्त होता तो किसी मंत्री का अपनी पार्टी के नेता यानी मुख्यमंत्री के खिलाफ़ ऐसा बयान सौ फीसदी उसकी कैबिनेट से बर्खास्तगी का आधार बन सकता था. लेकिन नट की तरह रस्सी पर चल रही कांग्रेस सरकार ऐसी कोई सख्त कार्रवाई अभी अफ़ोर्ड नहीं कर सकती. इसी से उत्साहित उमंग ने सोनिया गांधी को भी ख़त लिख दिया और हस्तक्षेप की मांग कर डाली

खबर है कि दीपक बाबरिया को जिम्मेदारी भी आलाकमान ने सौंप दी कि हल निकालिए. कुल मिलाकर सिर-फुट्टवल के इस माहौल में भाजपा दर्शक दीर्घा में तो है लेकिन उपलब्ध बयानों का एक सिरा पकड़ कर किसी न किसी गुट को “चीयर-अप” करना नहीं भूल रही.

भाजपा की “विकेट टू विकेट” बॉलिंग
इस पूरे खेल का ये तो सिर्फ वार्म अप है. असल खेल तो शुरू होगा प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा के बाद. यदि सिंधिया बने तो भी. और नहीं बने तो भी कांग्रेस के लिए आने वाले दिन मुश्किलों भरे हो सकते हैं. एमपी के सन्दर्भ में भाजपा उस क्रिकेट टीम की तरह है, जिसने विरोधी टीम के पांच-छह विकेट गिरा दिए हैं और अब उन्हें ऑल आउट करने की जल्दबाज़ी नहीं है.भाजपा ने सिर्फ फील्डिंग क्लोज लगा ली और अपने गेंदबाजों से सिर्फ “विकेट टू विकेट” बॉल करने को कह रही है. उसे पता है कि ऐसी मनोदशा में कांग्रेसी बैट्समेन चूक करेंगे और या तो बोल्ड होंगे, या विकेट के पीछे लपके जायेंगे.