समलैंगिकता पर सुनवाई जारी, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ा फैसला

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नई दिल्ली। समलैंगिकता (धारा 377) पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रहा है। क्यूरेटिव पिटिशन पर ओपन कोर्ट में चल रही सुनवाई में दोनों पक्षों की तरफ से जोरदार दलीलें रखी जा रही हैं। एएसजी तुषार मेहता ने सरकार की तरफ से जारी ऐफिडेविट में इस पर फैसला कोर्ट के ऊपर छोड़ दिया है। बता दें कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली संवैधानिक बेंच ने कहा कि वह इस बात का परीक्षण कर रहे हैं कि धारा-377 वैध है या नहीं।
Hearing on homosexuality, government ruled out Supreme Court
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के साथ, जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने कहा कि अगर दो बालिग व्यक्तियों के बीच आपसी सहमति से संबंध बनते हैं तो इसे आपराधिक करार नहीं दिया जा सकता।

सरकार ने कोर्ट पर छोड़ा फैसला
धारा 377 पर केंद्र सरकार ने कोई पक्ष न रखते हुए पूरा फैसला सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दिया। सरकार ने ऐफिडेविट में धारा 377 पर फैसला कोर्ट पर ही छोड़ दिया है। अडिशनल सलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखते हुए कहा, ‘हम कोर्ट पर छोड़ते हैं कि कोर्ट तय करे कि 377 के तहत सहमति से बालिगों का समलैंगिक संबंध अपराध है या नही। सुनवाई का दायरा बढ़ता है मसलन शादी या लिव इन तब हम विस्तार से हलफनामा देंगे।’

2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देख रहे हैं
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र के वकील ने कहा कि सुनवाई धारा-377 के संवैधानिकता पर ही सीमित रहनी चाहिए। चीफ जस्टिस ने साफ किया कि धारा-377 के वैलिडिटी पर ही सुनवाई हो रही है और किसी अधिकार पर नहीं। बाकी मामले कोर्ट तय करेगी जब मामला सामने आएगा। संवैधानिक बेंच ने साफ किया है कि वह 2013 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को देख रहे हैं कि वह कितना सही है और कितना गलत।

हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलटा था
2013 के सुप्रीम कोर्ट जजमेंट में दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए धारा-377 के तहत समलैंगिकता को अपराध माना गया था और वयस्कों के बीच अप्राकृतिक संबंध को अपराध माना गया था। हाई कोर्ट ने दो वयस्कों के बीच सहमति से अप्राकृतिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।