हेलीकॉप्टर से बैलगाड़ी तक

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सुधीर निगम

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही मुकाबले की जाजम बिछने लगी है। एक ओर लगभग 15 साल से सत्ता पर अंगद के पैर की तरह जमी भाजपा है तो दूसरी ओर बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने के इंतजार में कांग्रेस। कांग्रेस नेताओं के हाल के हावभाव देखिए। उन्हें ऐसा लग रहा है कि बस उनकी सरकार बनने वाली है। जनता में गुस्सा है। युवा को रोजगार नहीं, तो किसान अपनी समस्याओं से जूझ रहा है। पर क्या कांग्रेस की सरकार बनने के लिए इतना काफी है। शायद कांग्रेस नेता यही मान कर चल रहे हैं।
Helicopter to bullock cart
हेलीकॉप्टर में घूमने वाले नेता बैलगाड़ी पर तो उतर आए हैं, लेकिन क्या वास्तविकता यही है। शायद नहीं। हेलीकॉप्टर से घूमने और एसी कमरों में बैठकर राजनीति करना इतना आसान नहीं होता जितना दिखता है। इसके लिए जमीन पर उतरना पड़ता है। एक दिग्विजय सिंह को छोड़ दिया जाए तो बाकी किसी नेता ने अभी तक तो वो माद्दा नहीं दिखाया है।

बात दिग्विजय सिंह की हुई है तो एक बात और ध्यान देनी होगी। मंदसौर में कांग्रेस की बड़ी भारी सभा और राहुल गांधी का संबोधन। उनके संबोधन में बस दो नाम थे कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया। इसके बाद क्या दिग्विजय सिंह वही मेहनत करेंगे जो पिछले दिनों करते दिखे हैं। ये बड़ा प्रश्न है।

बात हेलीकॉप्टर और एसी की हो रही थी, इसमें सोशल मीडिया को भी जोड़ लीजिए। कांग्रेस और उसके नेताओं को लगता है कि देश में नरेंद्र मोदी ने केवल सोशल मीडिया के दम पर सरकार बना ली है। ये गलतफहमी कांग्रेस जितने जल्दी दिमाग से निकाल दे उसके लिए उतना अच्छा होगा। मोदी की सरकार बनाने में भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं और संघ का खून पसीना लगा था।

और उसकी टक्कर किससे है। शिवराज सिंह चौहान से। जो व्यक्ति 45 डिग्री तापमान में भी बिना चिंता किए गांव-गांव जाकर लोगों से सीधा संवाद कर रहा है। कोई माने या न माने, उनके जितनी मेहनत करने वाला एक भी नेता फिलहाल कांग्रेस में दूर दूर तक दिखाई नहीं देता। उसके बाद भाजपा के कार्यकर्ता। जो समर्पित कार्यकर्ता भाजपा के पास हैं, वो कांग्रेस के पास नहीं हैं।

कुल मिलाकर सरकार के प्रति जनता का गुस्सा आपको मुकाबले में ला तो सकता है, लेकिन मुकाबला जिता नहीं सकता। उसे जीतने के लिए आपको मैदान में दम दिखाना होता है। हेलीकॉप्टर में उड़ने व एसी कमरे में बैठने से मैदान नहीं मारा जाता। उसके लिए लगातार बैलगाड़ी पर चलना पड़ता है और गांव की धूल फांकनी होती है। यदि कांग्रेस नेता इसके लिए तैयार हैं, तो मुकाबला टक्कर का हो सकता है। नहीं तो 2008 और 2013 के उदाहरण सामने हैं।

sudhir

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है