अरे ओ सांभा, कितना इनाम रक्खे हैं सरकार हम पर, पूरे पचास हजार

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शशी कुमार केसवानी

मेक मोहन जिसे दुनिया सांभा के नाम से जानती है उनका असली नाम मोहन माखीजानी था। उनका जन्म 24 अप्रैल 1938 को कराची में हुआ था। मेक मोहन एक सिंधी परिवार में जन्में जिनके पिता ब्रिटिश आर्मी में कर्नल थे। मेक का पूरा बचपन आर्मी कैंप में ही गुजरा। पर उसे आर्मी में कोई खास दिलचस्पी थी नहीं। उनका जुनून तो क्रिकेट होता था। जिसकी वजह से वो अपनी धुन में ही क्रिकेट के पीछे दीवाना था। कॉलेज के दिनों में वो थियेटर भी करने लगे थे। एक बार मशहूर गीतकार कैफी आजमी की पत्नी शौकत कैफी को एक नाटक के लिए दुबले-पतले शख्स की जरूरत थी तो उन्हें ध्यान आया मेकमोहन का।

उन्होंने उन्हें कॉलेज में काम करते देखा था तब उन्होंने मेक को कहा था कि तुम नाटकों में काम तो करते रहो लेकिन फिल्मों में भी काम किया करो तब उनका ध्यान क्रिकेट में ज्यादा था। पैसे की कमी और मुंबई में रहने की जरूरत से मेक ने अपने कदम थियेटर और फिल्मों की तरफ किए। शौकत कैफी मेक की एक्टिंग देखकर बहुत प्रभावित हुई और उन्होंने अपने नाटक में उन्हें ले लिया। बस फिर क्या था कि मेक को एक्टिंग करने में मजा आने लगा। धीरे-धीरे क्रिकेट से ध्यान कम होता गया। और धीरे-धीरे मेक को फिल्मों में काम मिलने लगा। और फिर बाद में चेतन आनंद के असिस्टेंट डायरेक्टर बन गए बाद में कुछ ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म में वे डांस करते भी नजर आए।
धीरे-धीरे फिल्मों में भी काम मिलने लगा कई बार तो उन्हें चार लाइन का ही रोल दिया जाता था पर मेक ने उन चार लाइनों को इस अंदाज में पेश करते थे कि हीरो पर भी भारी नजर आती थी। बाद में मेक ने एक्टिंग की पढ़ाई भी की। मेक के करीबी दोस्त संजीव कुमार से उनकी बड़ी बेतक्ललूफ बात भी होती थी। दोनों का याराना बहुत ज्यादा था। एक -दूसरे से सारी बातें शेयर करते थे। मेक हमेशा बहुत ही स्टाइलिश कपड़े पहनते थे। कई बार तो उन्हें उस जमाने के हीरो उनका रहन-सहन का अंदाज देखकर दंग रह जाते थे फिल्मों में भी अपना कास्टूयम खुद तय करते थे। डायरेक्टर उनसे सहमत हो जाते थे कि उन्होंने चेतन आनंद को असिस्टेंट रहे है। साथ ही साथ वे अंग्रेजी भी बहुत शानदार लिखते थे और अच्छी अंग्रेजी बोलते भी थे उनके अंग्रेजी के कई फिल्म अभिनेता और अभिनेत्रियां कायल थे।

अभिनेता ने 1986 में मिनी से शादी की थी। जो पैसे से एक आयुर्वेदिक डॉक्टर थी। इस शादी से उनकी दो बेटी और एक बेटा है। बड़ी बेटी का नाम मंजिरी, छोटी का विनती और बेटे का नाम विक्रांत है। रिश्ते में वो एक्ट्रेस रवीना टंडन के मामा थे। रवि टंडन ने वीणा से शादी की थी जो सिंधी थी और रवीना की मां थी। उस रिश्ते से रवीना के मेक मामा होते थे। लखनऊ में उनके कॉलेज के साथी सुनील दत्त थे। जिनसे उनके बड़े गहरे रिश्ते रहे। बता दे मैक मोहन की बड़ी बेटी मंजरी पेशे से एक राइटर, प्रोड्यूसर और डायरेक्टर है और इन्होंने अपने करियर में द लास्ट मार्बल और द कॉर्नर टेबल जैसी कई शॉर्ट फिल्में बनाई है और मौजूदा समय में मंजरी अपने पति के साथ कैलिफोर्निया में रहती हैं हालांकि उनका मुंबई आना जाना लगा रहता है और शादी के बाद भी मंजरी अपनी मां और अपने भाई बहन के साथ बहुत क्लोज हैं ।
साल 1964 में मैकमोहन ने फिल्म हकीकत से बॉलीवुड में डेब्यू किया था। 46 साल के करियर में उन्होंने करीब 200 फिल्मों में काम किया लेकिन उनका जो किरदार सबसे मशहूर हुआ वो फिल्म शोले का सांभा था। फिल्म में अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, जया बच्चन, अमजद खान और संजीव कुमार जैसे बड़े नाम थे लेकिन अपने छोटे से किरदार से मैकमोहन ने हमेशा के लिए अपनी पहचान बना ली। 
जी हां, शोले में सांभा का किरदार भला कौन भूल सकता है। एक्टर मैकमोहन को आज भी लोग उनके इस किरदार की वजह से जानते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे की इन तीन शब्दों को डायलॉग को शूट करने के लिए मैक लगभग 27 बार मुंबई से बेंगलुरु गए थे।  बहुत लंबा समय भी बेंगलुरु में गुजारा था उन्हें तो फिल्म की शूटिंग के समय ऐसा महसूस हो रहा था जैसे फिल्म में सेकंड लीड रोल उन्हीं का ही है। दरअसल, इस फिल्म के शुरूआत में उनका किरदार थोड़ा लंबा था, एडिटिंग होने के बाद सिर्फ तीन शब्द ही बचे। मैक ने फिल्म शोले को एडिट होने के बाद जब देखा तो वे बहुत निराश हुए थे। मैक मोहन ने बताया, ‘जब मैंने शोले फिल्म देखी तो मैं रोने लगा। फिल्म खत्म होते ही मैं सीधे निर्देशक रमेश सिप्पी के पास गया और उनसे बोला कि मेरा इतना थोड़ा सा रोल भी क्यों रखा? आप चाहते तो इसे भी हटा ही देते।


रमेश सिप्पी बोले कि जितना हटा सकता था उतना तो हटा दिया बस यहां नहंी हटा सकता था। उन्होंने कहा कि अगर यह फिल्म हिट हुई तो दुनिया मुझे सांभा के नाम से जानेगी और हुआ भी ऐसा ही।’ बॉलीवुड की सबसे सफल फिल्मों में से एक ‘शोले’ में सांभा का किरदार निभाकर अभिनेता मेक मोहन को दर्शकों का खूब प्यार मिला। मूवी में अभिनेता का किरदार गब्बर सिंह के खास सहयोगी का था। हालांकि इस फिल्म में उनके हिस्से में बहुत ज्यादा डायलॉग्स और स्क्रीन स्पेस नहीं आया, लेकिन जितना भी उनका रोल दिखा, उसी में उन्होंने वो प्रसिद्धि हासिल की, जिसके लिए कलाकारों को लम्बा इंतजार करना पड़ता है। उनके खाते में सुपरहिट फिल्म शोले के अलावा रफू चक्कर, कर्ज, डॉन, खून-पसीना जैसी फिल्में हैं। सभी फिल्मों में उनके विलेन के किरदार ने फैंस को खूब आकर्षित किया। ‘पूरे पचास हजार…’ इस एक लाइन से ये एक शख्स अमर हो गया। जब मैकमोहन फिल्म अतिथि तुम कब जाओगे की शूटिंग कर रहे थे तो उनकी तबियत खराब हुई। मैकमोहन को मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में दाखिल किया गया। जहां डॉक्टरों ने बताया कि उनके फेफड़े में ट्यूमर है। इसके बाद उनका लंबा इलाज चला लेकिन उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई। एक साल बाद ही 10 मई 2010 को मैकमोहन ने दुनिया को अलविदा कह दिया। 

मेरी व्यक्तिगत चार मुलाकातों में मेक मोहन से मिलने के बाद ऐसा महसूस होता था कि उनके पास यादों का वो खजाना है जो कभी शायद खत्म ही नहीं होगा। उनके मूलत: स्वभाव में ही एक्टिंग बस चुकी थी। अपनी कमजोर बातें और असफलताएं बताने में कभी नहीं चूकते थे और अपनी गलतियों पर कभी पर्दा भी नहीं डालते थे। उन्हें अपने परिवार से बहुत प्यार था। पर परिवार में एक कमजोर कड़ी भी थी जिसका दुख उनके अंदर बात करने से महसूस होता था। उन्हें इस बात का जरूर रंज रहा कि जिस तरह की वो एक्टिंग करते थे वो उन्हें रोल नहीं मिला। पर उनके कई फिल्मों में डॉयलॉग हीरों के डॉयलॉगों पर भारी रहते थे। 70-80 के दशक में दर्शक मेक मोहन के एक ही डॉयलॉग का इंतजार करते थे और वो डॉयलॉग अक्सर कॉलेजों और स्कूलों में बोला जाता था। लेकिन शोले पिक्चर के बाद उनके दिल का गुबार कम हुआ कि उन्हें एक यादगार रोल रमेश शिप्पी ने दिया जो मुॐक्के लोग मेरे बाद भी याद करते रहेंगे। अपने दिलदार स्वभाव की वजह से मेक मोहन कई फिल्म अभिनेताओं से बडेÞ दिल से जुड़े रहे। खाने-पीने के शौकीन तथा अपने दोस्तों को खाने-पिलाने का भी शौक रखते थे, लेकिन किसी भी निर्माता के काम मांगने के लिए आगे-पीछे नहीं होते थे। पूरा जीवन अपना आत्म सम्मान के साथ जिया। मेक मोहन का पूरा परिवार उसके साथ हमेशा दिल से जुड़ा रहा। मेक मोहन के जाने के बाद उनके फिल्म इंडस्ट्री के कई साथी आज भी उनके परिवार के साथ जुडेÞ है। इससे साबित होता है मेक मोहन के इंडस्ट्री में व्यक्तिगत रिश्ते बहुत अच्छे थे वरना इंडस्ट्री में आदमी के जाने के बाद परिवार को लोग तुरंत ही भूल जाते है। चाहे अमिताभ हो या धर्मेंद्र हो। मेक मोहन के परिवार से हमेशा जुड़े रहते है। जय हो…