राघवेंद्र सिंह
देश और दुनिया कोरोना वायरस से गुत्थमगुत्था हो रही है। सब कुछ ठप है। चारों तरफ भविष्य को लेकर अंधेरा सा है। ऐसे में हम एक बार फिर भारत के उद्योगपति रतन जमशेद जी टाटा का जिक्र करेंगे। उन्होंने कहा है सन 2020 जीवित रहने का साल है।1 इसमें लाभ हानि की चिंता ना करें। खुद को जीवित रखना सबसे महत्वपूर्ण है और लाभ कमाने जैसा है। टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रतन टाटा कोरोना से डेढ़ हजार करोड़ देकर खजाना खोलने वालों मे सबसे आगे हैं। लेकिन देश की राजनीति और पत्रकारिता में ऐसे ही रत्नों की दरकार है। मगर सियासत के महाभारत में धृतराष्ट्रों के साथ दृष्टिहीन संजयों का दौर दौरा है। अटक से कटक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक षड्यंत्रकारी शकुनियों का बोलबाला है। हालात चुनौतीपूर्ण है। दिल्ली याने हस्तिनापुर के सिंहासन से बंधे हुए लोग और देश व धर्म के लिये खड़े लोगों के साथ कोई कृष्ण जरूर होगा जो नेत्रहीन नेताओं के अधर्म के खिलाफ विजय का पाञ्चजन्य बजाएगा।
कोरोना महामारी के चलते जैसे सब गड्ढमड्ढ हो रहा है उसी तरह एक साथ रामायण महाभारत राधा कृष्ण और चाणक्य शरीके धारावाहिकों ने दिमाग को ऐसा कर दिया है कि सोते समय लगता है जैसे महाभारत में बाली वध हो गया और चाणक्य ने किसी को गदा मार दी हो और रामायण में भीष्म पितामह आ गए हो। शासन करने वाले नेताओं में कौन कौरव और पांडव है हम इस पर नहीं जा रहे हैं लेकिन राजनीति के महाभारत में सच बताने वाले संजय भी शासन करने वाले धृतराष्ट्रों कीं भांति नेत्रहीन ज्यादा हैं। जो महाराज को पसंद है वही बता रहे हैं। सही गलत क्या है यह बताने के लिए महामंत्री विदुर जैसे शुभचिंतक भी लगता है राज भवनों को छोड़कर चले गए हैं। राज प्रसादों में साजिश करने वाले शकुनियों का जमावड़ा है। सिंहासन से बंधे कृपाचार्य और द्रोणाचार्य से लेकर पितामह भीष्म भी लाचार नजर आ रहे हैं। प्रजा और देश की बात करने वाले नेता और अधिकारी दिख नहीं रहे। सच बताने का दायित्व निभाने वाले के संजय आज के पत्रकार भी अपने अपने हिसाब से हरे, लाल, नीले, पीले और केसरिया रंग के चश्मा लगाए हुए हैं। सरकारों को सौदेबाजी कर गिराया और बनाया जा रहा है महाभारत की तरह इस तरह के धर्म और अधर्म भी लोग अपनी सुविधा के हिसाब से पाले बदल रहे हैं। जम्मू कश्मीर में आतंकवाद से लड़ती सेना पर पथराव करने वाले लोगों के भी मददगार पैदा हो जाते हैं। इतना ही नहीं चीन से निकले कोरोनावायरस पर भी भारतवर्ष में चीन की तरफदारी करने वाले भी हैं। सच बताने वाले संजय अगर नेत्रहीन होंगे तो फिर अंधे हुए राजाओं को अन्याय के साथ खड़े होने से कौन सी नैतिकता रोकेगी। महाभारत में उनको तो श्री कृष्ण ने ज्ञान भी दिया और अपना विराट रूप देखने के लिए दिव्य दृष्टि भी दी। लेकिन सच बताने वाले संजय सरकार और जनता को उतना ही सच बताने में लगे हैं जितना उनको सुविधाजनक लगता है।
प्रेस को आजादी है कहीं भी झुकने की…
3 मई को विश्व पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस भी है। प्रेस की आजादी के मामले में 180 देशों की सूची में भारत 143 वे क्रम पर है। यह अब तक का सबसे निचला क्रम है। संभवतः इसके पीछे पिछले वर्ष कश्मीर में धारा 370 हटाने के बाद जो पाबंदियां लगाई गई थी यह उसका भी नतीजा माना जा रहा है। हम इस बात को मजाक के तौर पर नहीं कह रहे हैं जहां तक देश की आजादी का मसला है शायद हम स्वतंत्रता मिलने के बाद सबसे घटिया दौर में है। मीडिया पर सरकारों के दबाव का कम बल्कि सौदेबाजी और मीडिया हाउसों के बाजारू और बिकाऊ होने का आरोप ज्यादा लगा है। उसकी विश्वसनीयता सबसे ज्यादा गिर रही है। हम कह सकते हैं भारत में पूरी आजादी है कहीं भी झुक सकतीं है किसी को भी उठा सकती है और किसी को भी गिराने में सक्षम है। चतुराई से बीमारों के साथ शकुनी – दुर्योधन के तर्कों को लेकर खड़ी हो सकती है। और सिंहासन से बंधा मीडिया पांडवों को लाख के महल में जलाने की साजिश से लेकर द्रोपदी के चीर हरण और राज्य के बदले सुई की नोक के बराबर भूमि ना देने के प्रण पर भी भीष्म पितामह की तरह खामोश नजर आता है। मीडिया सच से दूर जाता लग रहा है। पक्ष -विपक्ष में बंटा है। इसलिए सबका आसान निशाना बना हुआ है। मीडिया के प्राण धृतराष्ट्रों और पूंजीपतियों के हाथ में है और उन्हें इसकी विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा की कोई परवाह नहीं है। यह भी एक तरह की आजादी है।
शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार जल्द….
मध्यप्रदेश में पांच सदस्यीय मंत्रिमंडल के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह काम कर रहे हैं। बहुत जल्द इसके विस्तार की संभावना है। मैं मंत्रियों में शिवराज सिंह के भरोसेमंद नामों में गोपाल भार्गव भूपेंद्र सिंह रामपाल सिंह राजेंद्र शुक्ला अरविन्द भदोरिया के साथ विश्वास सारंग रामेश्वर शर्मा से कोई एक इंदौर से रमेश मेंदोला धार से नीना विक्रम वर्मा विस्तार में जगह मिलने की संभावना है। उम्मीद की जा रही है बुंदेलखंड के साथ महाकौशल विंध्य क्षेत्र और निमाड़ को भी अच्छा प्रतिनिधित्व मिल सकता है। शिवराज सिंह के सामने विधानसभा के 24 उपचुनाव जीतने का चुनौतीपूर्ण कार्य सामने है। इसके लिए कांग्रेस से भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक पूर्व विधायकों को जिताना सबसे बड़ा लक्ष्य है। इसके चलते सिंधिया समर्थक कमलनाथ सरकार की तुलना में अधिक स्थान पा सकते हैं। ऐसे में भाजपा नेताओं की नाराजगी झेलना या उन्हें संतुष्ट बनाए रखना बहुत कठिन काम होगा। एक तरह से यह शिवराज सिंह के लिए आग के दरिया में डूब कर जाने जैसा काम होगा।