हनी कांड-भाजपा शांत, राजा के साये से बाहर निकलते नाथ…

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राघवेंद्र सिंह

मधुमक्खी का डंक बच्चों से लेकर बड़ों तक लगे तो तिलमिलाहट तो होती है। और यह डंक राजनेताओं को लगे तो सरकारें हिलने लगती हैं। लेकिन ये सब गुजरे जमाने की बातें हैं। अब सब चीजें बेअसर होने लगी हैं। कह सकते हैं कि मौलिकता छूट रही है और नकली पन हावी हो रहा है।

ऐसे में जिस हनी कांड में चालीस लड़कियों और दर्जनों दलालों, अफसरों, मंत्रियों, विधायकों,सांसदों उनके परिजनों और आज के जमाने के अंधे होते संजयों का बाल बांका नहीं हुआ। इतना अलबत्ता हुआ कि आए दिन जिस कमलनाथ सरकार को गिराने की गीदड़ भभकी भाजपा के तुर्रम दिया करते थे अब वह पोंगली बनकर सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए हैं। व्यापमं के बाद हनी सेक्स रैकेट जब उजागर हुआ और जिस तरह की वीडियो क्लीपिंग सरे बाजार आम हुईं तो लगा राजनीति में भूचाल आ जाएगा। मगर लोकतंत्र के चारों खंबे उस समय खासे पुकता निकले, जब बांध, किले और फ्लाईओवर, पुल भूकंप के बिना ही दरक जाया करते हैं। ऐसे में हनी चाटने वालों ने सैक्स की सीमेंट पर पता नहीं काहे से तराई की कि उसमें दरार तक नहीं आई। एलान भले ही नहीं हुआ मगर सबको पता है कि डोंडी पिट चुकी है कि किसी का कुछ नहीं बिगड़ेगा।

कहने को तो पिछले हफ्ते ही रावण जला है। लेकिन होता ये है कि रावण को रावण ही मारता है। इसलिए इस नूरा कुश्ती में रावण कभी नहीं मरता। दिल्ली की सियासत के खलीफा मुख्यमंत्री कमलनाथ धीरे धीरे सूबे कि सियासत में लगता है रावण को रावण से मारने वाला नुस्खा हासिल कर चुके हैं। यही वजह है कि जिस नाथ को कमजोर माना जा रहा था उसने कमल के साथ राजा महाराजा हाथी घोड़े वजीर प्यादे सबको नाथ लिया है।

जब पूरा प्रदेश हनी सैक्स रैकेट के किस्से सुन सुन रहस्य रोमांच और गुदगुदी से शर्माता दिखता था वह जल्दी ही निराशा में चला गया। कांग्रेस भाजपा के साथ अफसरों और मीडिया के कामदेवों के उजागर होते ही दो चार दस बड़े विकेट गिरने से नैतिकता का जोश उछाल भर रहा था। सामाजिक तौर पर दर्शक और श्रोता बड़ी कार्यवाही की उम्मीद में चार्ज हो गए थे लेकिन जांच टीम के अधिकारी बदले जाने के साथ ही डिस्चार्ज भी हो गए। अब यह उम्मीदों के स्खलन का क्रम कहां जाकर रुकेगा,पता नहीं। पूरे खेल में चाहे जितनों ने हनी चखी हो मगर मधुमक्खियों का छत्तन्ना तो कमलनाथ और उनकी टीम के पास ही है। वे जब चाहें तब मधुमक्खियों के डंक से अपने विरोधियों को तिलमिला सकते हैं।

पिछले हफ्ते विपक्ष में एक तरह से सन्नाटा है। भोपाल इंदौर के नगर निगम को दो हिस्सों में बांटने को लेकर जरूर थोड़ा हल्ला हुआ मगर यह सब भी कमलनाथ सरकार की किसानों को राहत देने के मुद्दे पर ध्यान बांटने वाला ही साबित हुआ। इस बीच सिंधिया महाराज ने जरूर किसानों की आड़ में कमलनाथ के खिलाफ मोर्चा खोला। कांग्रेस के आंतरिक संघर्ष में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने यह कहकर सनाका खींच दिया कि हमने किसानों का दो लाख तक का कर्जा माफ करने का वादा किया था लेकिन हुआ सिर्फ पचास हजार। जिस तरह से सिंधिया ने मोर्चा खोला है ऐसा लगता है उन्होंने राजनीति में अपनी उपेक्षा के खिलाफ खंदक की लड़ाई शुरू कर दी है। पहले उनके समर्थक मंत्री मुखर थे अब वे खुद हमलावर हैं। इसके पीछे राजनीतिक पंडित यह मानते हैं कि सिंधिया संघ शाह और मोदी के बीच कुछ खिचड़ी पक रही है। उनके बयान खिचड़ी का एक बघार हो सकता है।

जिसकी धौंस से सत्ता के साथ विपक्ष के नेताओं को भी छींकें आ सकती हैं। इस बीच राजा और नाथ के बीच ट्वीटर पर गऊ माता को लेकर जो संवाद हुआ उसके भी अर्थ ढ़ूढ़े जा रहे हैं। कहां तो नाथ सरकार के चाणक्य दिग्विजय सिंह माने जाते हैं और उन्हें ही सीएम से संवाद के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ा। अक्सर चुप रहने वाले कमलनाथ ने बैक टू बैक राजा के सवालों के जवाब भी दिए। आने वाले दिनों में इस संवाद से नकाब उठेगा। लोग यह भी कह रहे हैं कि क्या यह नाथ सरकार के दिग्विजय के साये से बाहर निकलने की कवायद है। लेकिन जिनको कमलनाथ और दिग्विजय के रिश्ते पता हैं वे इस पर यकीन नहीं कर सकते। दरअसल 1993 से 2003 तक दिग्विजय सिंह के दस साल के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में नाथ की भूमिका बड़े भाई की थी।

राजा सूबे में तो नाथ दिल्ली में एक दूसरे का तंबू मजबूत किए रहते थे। कांग्रेस को सरकार में लाने और अल्पमत के बाद भी नाथ को मुखिया बनाने में दिग्विजय सिंह बड़ी भूमिका रही है। मंत्री बनाने से लेकर मुख्य सचिव के साथ कलेक्टर एसपी की पदस्थापना में राजा की राय को अहमियत मिली है। इस सब के बावजूद सूबे की सियासत का जो सीन चल रहा है उससे लगता है कि कमलनाथ ठंडा करके खाते हैं। यही धीरज पटवारियों की हड़ताल,तहसीलदारों का हड़ताल पर जाना,किसानों का असंतोष,हनी सैक्स रैकेट के उफान से लेकर उसके स्खलन की कहानी बताती है कि जिस नाथ को राज्य की राजनीति में नया खिलाड़ी माना जा रहा था वो धीरे धीरे मंज रहा है  विवादों को ठंडा करके निर्णय करने की रणनीति प्रधानमंत्री पीव्ही नरसिंहराव की याद दिला रही है।

वे भी अल्पमत की सरकार के नेता थे और उस समय के चाणक्य अर्जुन सिंह और ज्योतिरादित्य के पिताश्री माधव महाराज को भी कांग्रेस छोड़ने पड़ी थी। अर्जुन सिंह ने तिवारी कांग्रेस और सिंधिया ने विकास कांग्रेस बनाई थी। वन मंत्री उमंग सिंघार का दिग्गी राजा के खिलाफ मोर्चा खोलना उन्हें माफिया कहना और फिर शिवराज सिंह,डा.गौरीशंकर शेजवार के खिलाफ वृक्षारोपण घोटाले में ईओडब्लु की जांच और मुकदमें दर्ज करने की घोषणा के भी कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। परिवार वही हैं केवल खिलाड़ी बदले हैं। शह और मात के खेल में देखते हैं आगे आगे होता है क्या…?

लेखक IND24 के प्रबंध संपादक हैं