ब्रजेश राजपूत की ग्राउंड रिपोर्ट
मंदसौर के बाहर चमचमाते हाईवे पर नीमच की ओर चलते ही बरखेडा पंथ गांव के पहले का ओवर ब्रिज चढते ही हमारे साथी मनीष पुरोहित बोल पडे सर याद है ये जगह। मैंने मुस्कुराते हुये कहा हां भाई कैसे भूलेंगे, पिछले साल इन्हीं दिनों इस गांव के अभिषेक की अंतयेष्टि के बाद भडकी भीड कैसे मुझ पर हमला करने पर उतारू हो गयी थी और हमारे सतर्क कैमरामेन होमेंद्र के कैमरे में वो सारी घटना कैद होकर एबीपी चैनल पर खबर बन कर चली भी। खबर बनाते बनाते खुद खबर बन जाना कोई नहीं चाहता मगर खबर चलने के बाद जाना कि पत्रकार के दोस्त, होते हैं हजार।
How are the years after Mandsaur?
अब एक साल बाद यहां माहौल बदला है। कनेर और बोगनबेलिया की डाल से घिरे अभिषेक के घर में फर्श पर बैठी उसकी मां और पिता मिलते हैं जो बातें शुरू करते ही खो जाते हैं बेटे की याद में। दिनेश पाटीदार बताते हैं बडा होशियार बेटा था पढाई के साथ खेती में भी हाथ बंटाता था मगर ना जाने कैसे उपद्रव के दौरान पुलिस की गोली की चपेट में आ गया। सरकार ने वायदे पूरे किये एक करोड रूप्ये मिले, भाई को सरकारी नौकरी भी मिल गयी मगर किसान आंदोलन के मुददे वहीं रह गये इसलिये हम आंदोलन के साथ हैं।
बरखेडा पंत के थोडे आगे जाकर अंदर की ओर जो सडक घूमती है वहीं लगा है नयाखेडा का बोर्ड। गांव की तरफ मुडते ही सडक के बीचों बीच मूर्ति दिखती है चैनराम पाटीदार की। चैनराम की पुलिस की गोली में मौत के बाद ये सडक कच्ची सडक पक्की बनाने का आदेश कुछ दिन पहले ही आया है। गांव के एक बडे बाडे में है चैनराम का छोटा सा घर जहां उसके पिता और भाई रहते हैं। चैनराम की मौत के बाद पत्नी मायके चली गयी ओर दूसरी शादी कर रही है करोड रूपये के मुआवजे का पैसा मिला है मगर उस बडी रकम की चमक दमक दो कमरे के घर में नहीं दिखती। पिता गनपत कहते है बहू ये पैसा बांटेगी हमें उम्मीद है। मगर भाई गोविंद कहता है भाई शहीद हुआ है मगर छह लोगों की मौत के बाद भी किसानों की हालत नहीं सुधरी। हम किसान आंदोलन का समर्थन करते हैं मगर सडकों पर नहीं उतरेंगे।
यहां से थोडी दूर पर ही है गांव चिखलौद पिपलिया। ये कन्हैया लाल पाटीदार का गांव है जो पिछले साल पुलिस गोली का शिकार हुआ था यहां बीच बाजार में कन्हैया लाल की मूर्ति लगी है ठीक उसी ढंग की जैसी चैनराम की है। गांव में कन्हैया के भाई रहते हैं बताते हैं चैनराम की पत्नी की दिमागी हालत पति की मौत के बाद बिगड गयी है बच्चे नाबालिग है इसलिये नौकरी नहीं मिली मगर मुआवजा बैंक खातों में आ गया है। कन्हैया के भाईयों को छह तारीख को होने वाली राहुल की सभा का न्यौता मिला है। भाई जगदीश कहते हैं मीनाक्षी जी ने वीआईपी पास देने का वायदा किया है और राहुल गांधी ही क्यों जो भी हम किसानों की समस्या की बात करेगा हम उसके जायेंगे।
छह तारीख को मंदसोर के किसान आंदोलन में मारे गये छह किसानों की मौत की बरसी है। जिसके लिये कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी आ रहे हैं। राहुल गांधी की इस सभा को किसान श्रद्वांजलि सभा का नाम दिया है और गांवों में इसके पोस्टर लगे हैं। राहुल की सभा के लिये कांग्रेसी भारी भीड जुटाना चाहते हैं। मगर इन गांवों के किसान कांग्रेस की सभा को लेकर बहुत उत्सुक नहीं दिखे। बरखेडा पंत हो नयाखेडा, चिखलौद पिपलिया या फिर टकरावद। किसानों से बात करते ही उनकी नाराजगी झलकने लगती है। हर किसी को गुस्सा इस बात पर है कि उनको उपज की सही कीमत नहीं मिल रही।
भावांतर की बात करते ही नयाखेडा के किसान गोवर्धन लाल बताते हैं कि इस योजना ने हमारी फसलों के रेट गिराये हैं। योजना शुरू होने से पहले और बंद होने पर फसल के रेट ज्यादा होते हैं। इससे किसान को कम व्यापारी को ज्यादा हो रहा है। पास में खडे रौनक कहते हैं शिवराज सरकार बातें ज्यादा करती है योजनाओं की भरमार है मगर फायदा कम मिल रहा है। मगर जब इन किसानों से कांग्रेस की बात करते हैं किसान बात बदलने लगते हैं। ज्यादा पूछो तो टकरावद के युवा किसान राजेश पाटीदार हमसे ही पूछते हैं कहां है कांग्रेस हमारे गांव में तो दिख नहीं रही। चुनाव में आयेगी तो देख लेंगे कांग्रेस को मगर अभी तो हम सरकार से परेशान है हमारे छह साथी गोली खाकर शहीद हो गये मगर आंदोलन के मुद्दे हल नहीं हुये। इसलिये हम अांदोलन के साथ हैं मगर इस बार सडक पर जाकर पुलिस से लडेंगे नहीं। गांव में रहकर ही विरोध करेंगे।
उधर राहुल की रैली से पहले मंदसौर कालेज ग्राउंड पर सीएम शिवराज सिंह ने भी बडी रैली शक्ति प्रदर्शन के अंदाज में की किसानों की बेहतरी की बातें सभा में आये लोगों को याद दिलायीं। शिवराज रैली कर वापस उडे नहीं बल्कि शाम को किसानों के संगठनों को बुला लिया सर्किट हाउस। जहां वो सारे किसानों से देर रात तक मिलते रहे और सरकार प्रशासन को लेकर किसानों की नाराजगी दूर करने की कोशिश करते दिखे। सुबह लौटते वक्त प्लेन में जब हमने उनसे पूछा कि आपकी किसानों की मान मनौव्वल देर रात कब तक चली तो हंसकर कहा कोई नाराजगी नहीं है किसानों की छोटी छोटी तकलीफें हैं हम नहीं सुनेंगे तो कौन सुनेगा उनकी।
इधर हम हैरान थे कि जब मंदसौर नीमच के किसान शिवराज सरकार से नाराज है तो कांग्रेस या कमलनाथ से भी नाउम्मीद क्यों हैं। इस सवाल का जबाव मिला पत्रकार दीपक तिवारी की नयी किताब राजनीतिनामा मध्यप्रदेश भाजपा युग में जहां वो लिखते हैं कि शिवराज सिंह ने एमपी में राजनीति का नया व्याकरण लिखा है जिसमें वो संकट के मौकों को अवसर बनाते हैं और बडे बडे संकट से उबर जाते हैं। एक से दस जून तक का किसान आंदोलन शिवराज सरकार पर नया संकट लेकर आयेगा या नहीं ये देखना बाकी है ।
एबीपी न्यूज, भोपाल