पेइचिंग। चीन में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लोगों के मानवाधिकारों के कथित हनन पर अमेरिका और यूरोप में विरोध हुआ है और इसे रोके जाने का दबाव बनाने की कोशिश हुई है। लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से इस्लामिक देशों ने इस पर अब तक चुप्पी साधे रखी है। संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी ने तीन सप्ताह पहले उइगुर मुस्लिमों को री-एजुकेशन कैंप में रखे जाने पर सवाल उठाया था। लेकिन अब तक किसी भी इस्लामिक मुल्क की सरकार ने इस संबंध में कोई बयान तक जारी नहीं किया है।
Human rights violations of minorities in China, protests in US-Europe, Islamic countries are simple silence!
इस्लामिक मुल्कों की यह चुप्पी इसलिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि इसी सप्ताह अमेरिका के दोनों प्रमुख दलों के सांसदों ने चीन में उइगुर मुस्लिमों पर लगने वाली पाबंदियों को लेकर सवाल उठाया था। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक सीनेटर मार्को रुबियो के नेतृत्व वाले सांसदों के समूह ने कहा था, ‘हमें उम्मीद है कि विदेश मंत्रालय इन ज्यादतियों के खिलाफ अपना पक्ष रखेगा और समान विचारधारा वाली सरकारों को साथ लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाएगा।’ सांसदों ने यह पत्र विदेश मंत्री माइकल पोम्पियो और वित्त मंत्री स्टीवन न्यूचिन को लिखा था।
इससे पहले यूरोपियन यूनियन के अधिकारियों ने भी शिनजियांग में मुस्लिमों के कथित उत्पीड़न को लेकर चिंता जताई थी। दूसरी तरफ इंडोनेशिया, सऊदी अरब, मलयेशिया और पाकिस्तान जैसे देशों की सरकारों ने चीन में उइगुर मुस्लिमों पर ज्यादती को लेकर कोई सवाल नहीं उठाया है। यही नहीं इन देशों की ओर से कोई औपचारिक बयान तक जारी नहीं किया है।
सबसे आश्चर्यजनक तुर्की का रवैया है, जिसने पिछले दिनों तुर्की भाषी इन मुस्लिमों को अपने ही यहां जगह देने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन इस बार आर्थिक संकट से जूझ रहे इस देश की ओर से कोई बयान तक सामने नहीं आया है। इस्लामिक देशों की चुप्पी की एक अहम वजह चीन के साथ उनके कारोबारी संबंध हैं। वे कारोबार में नुकसान के चलते किसी देश के आंतरिक मामलों में दखल न देने का तर्क देते हुए कोई टिप्पणी करने से बच रहे हैं।