कौशल किशोर चतुर्वेदी
1982 में रिलीज हुई फिल्म बाज़ार की एक गजल काफी मौजूं लग रही है। बशर नवाज़ के बोलों को भूपिंदर की आवाज मिली थी और खैय्याम का संगीत। 1982 में मेरी उम्र दस बरस थी और फिल्म भले ही न देख सकें पर रेडियो पर फिल्मों के गीतों की आवाज तो सुनते ही थे। गीतों के बोलों का मतलब सर्वकालिक हुआ करता था। जिन्हें व्यक्ति अपने मूड के हिसाब से भले सुने लेकिन गीतकार जिम्मेदारी के साथ इस तरह शब्दों को गूंथते थे कि वह माला बनकर सदा-सदा के लिए अपनी खुशबू बिखेरने में समर्थ होते थे। इस गीत के बोलों पर गौर करें और बाजार के संदर्भ में व्याख्या भी जरूर करें।
करोगे याद तो, हर बात याद आयेगी,
गुज़रते वक़्त की, हर मौज ठहर जायेगी।
करोगे याद तो…
ये चाँद बीते ज़मानों का आईना होगा,
भटकते अब्र में, चेहरा कोई बना होगा,
उदास राह कोई दास्तां सुनाएगी
करोगे याद तो…
बरसता भीगता मौसम धुआँ-धुआँ होगा
पिघलती शम्मों पे दिल का मेरे ग़ुमां होगा
हथेलियों की हिना, याद कुछ दिलायेगी
करोगे याद तो…
गली के मोड़ पे, सूना सा कोई दरवाज़ा
तरसती आँखों से रस्ता किसी का देखेगा
निगाह दूर तलक जा के लौट आएगी
करोगे याद तो…
बाजार के संदर्भ में इस गीत के अलग-अलग अर्थ निकाले जा सकते हैं। पाठक खुशी में-गम में, प्रेम में- घृणा में, दोस्ती में -दुश्मनी में, वफाई में-बेवफाई में, अमीरी में-गरीबी में, सूखे में-बाढ में यानि कि हर तरह की परिस्थितियों में इसके अलग-अलग भाव महसूस कर सकता है।
कभी-कभी खबरों पर चर्चा करने के बजाय खबरों से दूर जाने में भी अच्छा लगता है। कभी-कभी पर्दे पर जो दिखता है, वह जिज्ञासा शांत नहीं करता और पर्दे के पीछे की तस्वीर होश उड़ा देती है। मध्यप्रदेश में मानसूनी सत्र आने को है और मानसून में आसमान में दो तरह के बादल नजर आते है काले बादल और भूरे बादल। काले बादल डराने का काम ज्यादा करते हैं।
बुंदेलखंड की एक कहावत है करिया बादर जीऊ डरावै, भूरा बादर पानी लावै।यानि कि काले बादल डराएं कितना भी लेकिन बरसते कम ही हैं। आसमान पर काले बादल हों तो डरने की जरूरत नहीं है। कुछ समय बाद बिना बरसे ही वह आसमान से छंट जाते हैं।
फिलहाल संसद के मानसूनी सत्र के आसमान पर भी छाए काले बादल डरा रहे हैं। पेगासस से शुरू हुए सत्र के पहले दिन से अब तक लगातार बवंडर मचा हुआ है। जनता के प्रतिनिधि मायूस हैं या नहीं, पता नहीं। पर आक्रोशित जरूर हैं। जेपीसी या सुप्रीम कोर्ट से जांच की मांग चल रही है। आईटी की संसदीय समिति ने पूछताछ की तारीख तय कर दी है। गांवों में बारिश की छटा ने हरियाली बिखेर दी है। किसानों के चेहरे पर खुशी की लहर है। बच्चे बारिश के पानी में नहाने की जिद कर रहे हैं । बुजुर्ग कोरोना की दूसरी लहर से डरे हैं और तीसरी लहर का साया न पडे इसलिए बच्चों को बीमार न पडने की नसीहत दे रहे हैं। हां देवशयनी एकादशी के बाद भगवान विष्णु क्षीरसागर में आराम की मुद्रा में हैं। लक्ष्मी जी पैर दबा रही हैं। शेषनाग पूरी कोशिश में हैं कि भगवान को कोई कष्ट न हो पाए लेकिन पृथ्वीलोक में धरती हिलती सी महसूस हो रही है। हालांकि चिंता की कोई बात नहीं है। सब ठीक -ठाक ही है। उथल-पुथल चलती रहती है पर पृथ्वीलोक के लिए यह कोई नई बात नहीं है। नारद जी प्रभु तक पृथ्वीलोक की खबरें लगातार भेज रहे हैं। यह व्याख्या भी कर रहे हैं कि हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ…की बात पर अब पृथ्वीलोक के वासियों का भरोसा कम हो रहा है प्रभु। आपस में ही आरोप-प्रत्यारोप में पृथ्वीलोक का माहौल दूषित हो रहा है। देवभूमि में तो दो दलों ने सभी की नाक में दम कर रखा है। बात कैसी भी हो पर यह दो दल एक-दूसरे को फूटी आंख देखने को राजी नहीं हैं। अब आप ही कुछ उपचार करो प्रभु…। बात अच्छी हो या बुरी, पर इनकी राय कभी नहीं मिलती और जनता इनके जंजाल में बुरी तरह जकड़ चुकी है। प्रभु ने नारद जी को आदेश दिया है कि वह जल्दी ही नर रूप धारण कर पृथ्वीलोक की समस्याओं का समाधान करेंगे तब तक नारद हर पल की अच्छी-बुरी खबर तटस्थ भाव से उन तक पहुंचाते रहें। इसके लिए उन्हें भले ही कितने ही कष्ट सहन करने पडे़ं।