नई दिल्ली। करतारपुर कॉरिडोर से क्या भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में चली आ रही तनातनी कम होगी? क्या दोनों देशों के करतारपुर कॉरिडोर के मुद्दे पर साथ आने के बाद आगे उम्मीद की रोशनी दिखने लगी है? उम्मीदों से भरे ऐसे सवाल तब उठे जब सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देवजी की 550वीं जयंती से पहले भारत-पाक ने श्रद्धालुओं के लिए सकारात्मक रुख दिखाए। पाकिस्तान स्थित करतारपुर साहिब के दर्शन के लिए अपने-अपने इलाकों में न सिर्फ कॉरिडोर बनाने का ऐलान हुआ बल्कि पाकिस्तान ने अपने यहां हुए आयोजन में भारत के नेताओं को भी न्योता दे दिया।
Imran’s first positive initiative in neighboring country after assuming power, what will improve Indo-Pak relations
इमरान खान के सत्ता संभालने के बाद यह पड़ोसी देश की ओर से भारत के साथ पहली सकारात्मक पहल थी, जिसे भारत ने भी स्वीकारा और दो मंत्रियों को पाकिस्तान भेजा। वहीं, पंजाब सरकार के मंत्री और कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू भी पाकिस्तान गए। हालांकि इन सकारात्मक घटनाक्रमों के बीच अब भी इस कवायद के दूरगामी असर पर संदेह बरकरार है। जानकारों के अनुसार भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाना इतना आसान नहीं है। दरअसल, 2016 में उरी हमले और उसके बाद सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दोनों देशों के संबंध लगातार खराब होते चले गए। ऐसे में दो साल में पहली बार कोई सकारात्मक पहल देखी जा रही है।
कोशिशों का दौर जारी रहा
करतारपुर कॉरिडोर से पहले भी इमरान खान ने सत्ता संभालने के तुरंत बाद भारत के पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर बातचीत का रास्ता खोलने का आग्रह किया था। सार्क बैठक में शामिल होने के लिए भी इमरान सरकार ने पीएम मोदी से आग्रह किया। हालांकि इन पहल के बीच पाकिस्तान का दूसरा चेहरा हमेशा सामने आता रहा।
आतंकवाद को परोक्ष और अपरोक्ष रूप से आश्रय देने के साफ सबूत सामने आए। बावजूद इसके करतारपुर के रूप में एक ऐसा भावनात्मक मुद्दा सामने आया जिस पर दोनों देशों ने सकारात्मक रुख दिखाया। पाकिस्तान ने जहां कई दशकों की मांग को पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ाया वहीं, पीएम नरेंद्र मोदी ने करतारपुर की तुलना बर्लिन की दीवार से करके संकेत दिया कि अगर पहल सकारात्मक और सही इरादों से हुई हो तो चाहे रिश्ते कितने भी खराब क्यों न हों, पटरी पर लाए जा सकते हैं।
कश्मीर के हालात से तय होगा
पाकिस्तान के भारत से कैसे रिश्ते होंगे, यह वहां की सरकार से अधिक सेना के रुख पर निर्भर रहता है। करतारपुर कॉरिडोर खुलवाने में पाकिस्तान के सेना प्रमुख कमर बाजवा ने भी भूमिका निभाई। हालांकि जब तक पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद को शह देना बंद नहीं करता, तब तक इस तरह की पहल के कोई मायने नहीं रहेंगे। वैसे भी पाकिस्तान की सेना ने कश्मीर पर अपने स्टैंड में किसी तरह के बदलाव लाने के संकेत नहीं दिए हैं। ऐसे में करतारपुर के बाद भारत-पाकिस्तान के रिश्तों पर क्या असर होगा, वह कश्मीर के हालात ही तय करेंगे। इस पवित्र आयोजन में भी पाक पीएम ने कश्मीर का मुद्दा उछाल ही दिया। इस पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई।
सियासी हालात भी अनुकूल नहीं
भारत-पाकिस्तान के बीच संबंध महज कूटनीतिक महत्व का नहीं है बल्कि दोनों देशों की आंतरिक राजनीति को भी प्रभावित करता है। ऐसे में दोनों देश जब भी कोई कदम उठाएंगे तो असर वहां की अंदरूनी राजनीति पर भी होगा। ऐसे में जब भारत में 2019 में आम चुनाव होने हैं और पाकिस्तान में अभी इमरान खान ने गद्दी संभाली ही है, सियासी हालात उतने अनुकूल नहीं दिखते। जानकार मानते हैं कि दोनों देशों के अंदर जो हालात हैं, वे दोनों पक्षों को सकारात्मक पहल करने से रोकते हैं।
किस तरह धोखा मिला, याद है?
पाकिस्तान की तमाम कोशिशों के बीच उसका पुराना रेकॉर्ड भारत को भरोसा करने से रोकता है। दरअसल, 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ ने दिल्ली और लाहौर के बीच एक दोस्ताना बस चलाई थी। ऐसा लगा कि सालों से पड़ी दुश्मनी की परतें हटने वाली हैं लेकिन तभी पाकिस्तान ने करगिल में जंग के हालात बना दिए। रिश्तों में सुधार के बजाय दोनों देशों के बीच करगिल युद्ध हो गया।