सर्टिफिकेट में तब्दील होती प्रशंसा के दौर में कलेक्टर का दिल छूता खत

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पंकज शुक्ला

अपनी प्रशंसा सुनना हमारी प्रसन्नता का स्थाई भाव है। परिश्रम के बाद मुखिया द्वारा कहे गए प्रशंसा के दो बोल सफर के सारे कष्ट को सुकून के पलों में बदल देता है। थकान कपूर सी काफूर हो जाती है और पसीना भी गुलाब की तरह महक उठता है। लोकतंत्र के अनुष्ठान में निर्वाचन भी ऐसा ही कार्य है जिसमें अदना कर्मचारी से लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त तक की बड़ी जिम्मेदारी होती है।

वह इसे पूरी शिद्दत से निभाता है। कहने को वह ‘ड्यूटी’ से बंधा हुआ है मगर कर्मचारी पूरे मनोयोग और लगन से यह काम करते हैं। चुनौतियों और बाधाओं से निपटते हैं। आरोप झेलते हैं, फटकार पाते हैं और चुनाव होने के बाद चुपचाप अपने काम में मसरूफ हो जाते हैं। तंत्र भी ऐसे कर्मचारियों को श्रेष्ठ कार्य के लिए सम्मानित करता है। मगर अपने मुखिया से मिली प्रशंसा उन सैकड़ों कर्मचारियों के लिए शीतल झोंके की तरह होती है जिनका कार्य अनचिह्ना रह जाता है।
In the era of admirers of the certificate, the collector’s heart touches the heart
मप्र में मतदान प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद देवास कलेक्टर डॉ. श्रीकांत पाण्डेय का एक ऐसा ही कार्य इनदिनों चर्चा में है। जिला निर्वाचन अधिकारी होने के नाते उन्होंने चुनाव कार्य में जुटे अपने अधीनस्थ सभी कर्मचारियों को एक पत्र लिखा है। भावुक अंदाज में साहित्य लिखा गया यह पत्र कर्मचारियों के दिल को छू गया है। पाण्डेय के साहित्य रूझान से तो सभी वाकिफ हैं मगर इसे रूचि को अपने कार्य से जोड़ कर उन्होंन तकनीकी होती तंत्र की कार्यप्रणाली को संवेदित किया है।

वे अपने साथियों को संबोधित करते हुए लिखते हैं-‘ लोकतंत्र के इस महापर्व के लिए आपने अपनी नींदें त्यागीं, अपने बच्चों के हिस्से का समय दिया और राष्ट्रीय कर्तव्य को पारिवारिक दायित्वों के ऊपर रखा। हम भाग्यशाली हैं कि हमें यह अवसर मिला। कुछ दिनों बाद हमें कुछ भी याद नहीं रहेगा। न अपनी तकलीफें, न असुविधाएं, न चिंताएं, न संघर्ष लेकिन देश इन्हें कभी नहीं भुलाएगा।’ वे लिखते हैं-‘कहने को बहुत कुछ है, लेकिन अभी केवल आपका आभार और आपके प्रति कृतज्ञता। आने वाले दिनों में जिला प्रशासन आप सबकी लगन और निष्ठा के बल पर ही आशान्वित और अव्वल रहेगा, मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है। देवास प्रशासन को आप सब पर गर्व है।’

मप्र का प्रशासनिक इतिहास गवाह है कि पहले भी कलेक्टरों ने अपने साथियों को चिट्ठियां लिख कर उनका हौंसला बढ़ाया है, उनके प्रति आभार जताया है। मगर समय के साथ यह परंपरा गौण होती जा रही है। पत्र बेहद औपचारिक होते गए फिर प्रशंसा के लिए लिखे जाने वाले पत्रों की जगह भी सर्टिफिकेट ने ले ली। इस औपचारिकता में भाव गौण होते गए। सर्टिफिकेट के सरकारी होते गए शब्द असरकारी न रहे। प्रमाण पत्र में मिली प्रशंसा को फ्रेम कर दीवार पर टांगा तो जा सकता है मगर उसमें पाने वाले के दिल में उतर कर भाव विहल कर देने का माद्दा नहीं होता।

देवास कलेक्टर डॉ. पाण्डेय ने अपने भावों को इस अंदाज में लिखा कि मतदान की बोझिल प्रक्रिया से थके कर्मचारियों को गर्व मिश्रित संतुष्टि का अनुभव हुआ। डॉ. पाण्डेय ने स्वतंत्रता दिवस पर भी चतुर्थ श्रेणी महिला कर्मचारी से ध्वजारोहण करवाकर प्रेरणादायक परंपरा की भी नींव रखी थी। ऐसे छोटे-छोटे कामों में अधिक वक्त जाया नहीं होता मगर इसका असर दूर तक होता है। मैकेनिकल होती व्यवस्था में भावनाओं का यह ‘मास्टर स्ट्रोक’ अधिकारियों के कार्यकाल को यादगार बना देता है।