चरण वंदना के युग में विधायक रजनीश की कमलनाथ को जूते पहनाने की ‘विनम्रता’

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पंकज शुक्ला

वैचारिक रूप से तमाम भिन्नता के बावजूद कांग्रेस, भाजपा, बसपा समेत तमाम दलों में चरण वंदना की परंपरा का होना एक विशिष्टत समानता है। आम भारतीय मानस ही ऐसा है कि व्यक्ति कभी सम्मान में, कभी उम्र के लिहाज में तो कभी चापलूसी में सामने वाले व्यक्ति के चरणों में सिर नवा देता है। सिर झुकाने के लिए हम व्यक्ति ही नहीं देखते, बल्कि पेड़, वन्य प्राणियों, पत्थरों, पहाड़ों, नदियों जैसे चेतन-अचेतन प्रतीकों के समक्ष अकसर झुक जाते हैं।
In the era of Vandana, in the era of Rajnish, Kamal Nath’s ‘humility’
यह झुकना वास्तव में बड़े दर्शन का परिणाम है। वह दर्शन जो हमें प्रकृति और सहअस्तित्व के भाव का सम्मान करने की दृष्टि देता है। मगर, राजनीति ने चरण छूने की परंपरा को चापलूसी का प्रतीक बना दिया और इसी कारण श्रद्धा, आस्था और दिल में उपजे सम्मान के प्रबल भाव के अधीन किसी के सामने झुक जाने को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा है। ऐसा ही मामला मप्र में सामने आया है जिसमें कांग्रेस के युवा विधायक रजनीश सिंह ने एक कार्यक्रम में शामिल होने आए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष वरिष्ठ नेता कमलनाथ को जूते पहनाए। रजनीश के भाव चाहे जो रहे हों लेकिन इस कार्य ने चरण वंदना की राजनीति पर बहस आरंभ कर दी है।

बहुत उम्मीद जागी थी जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा में चरण वंदना की संस्कृति पर आपत्ति जताते हुए हिदायत दी थी कि कार्यकर्ता अपने नेताओं के चरण न छूएं। यह संदेश पार्टी में बहुत तेजी से प्रसारित हुआ और नेताओं ने बहुत आग्रह के साथ कार्यकतार्ओं को चरण वंदना से रोकने का प्रयास किया लेकिन शुरूआती नियंत्रण के बाद नेता असहाय ही नजर आए और कार्यकर्ता बदस्तूर पैरों पर झुकते रहे। इसी तरह, बसपा प्रमुख मायवती ने भी समय बचाने तथा अपनी सामंती छवि तोड़ने के लिए पैर छूने को प्रतिबंधित किया।

कुछ माह पहले मप्र में निकाली गई एकात्म यात्रा दौरान जब मंडला में कलेक्टर सूफिया फारुखी ने शंकराचार्य की चरण पादुका वाले बाक्स को अपने सिर पर रखकर पदयात्रा की तो नया विवाद खड़ा हो गया। कांग्रेस ने इस पर तीखी आपत्ति जताई। अब एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें प्रदेश अध्यमक्ष कमलनाथ को कांग्रेस विधायक रजनीश सिंह जूते पहनाते दिख रहे हैं। विवाद बढ़ने पर सिंह ने कमलनाथ को पिता तुल्य बताते हुए कहा कि जूतों की भीड़ में कमलनाथ के लिए अपने जूते ढूंढना मुश्किल था। इसलिए उन्होंने उनकी मदद कर दी।

वे यह भी स्वीकार करते हैं कि कमलनाथ की वजह से ही वे केवलारी सीट से विधायक हैं। इस वीडियो ने भाजपा को बोलने का मौका दे दिया। मगर उदाहरण केवल इतने नहीं हैं। मप्र के कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन, खेलमंत्री यशोधरा राजे सिंधिया और मुख्यममंत्री शिवराज सिंह चौहान तक ऐसे मामलों में विवादों से घिर चुके हैं।  कई बार तो होता यह है कि नेता कार्यकतार्ओं को रोकने का प्रयास करते रह जाते हैं और कार्यकर्ता पूरी ताकत से उनके चरणों में गिर जाते हैं। मंत्रियों व अफसरों की सुरक्षा तथा स्टाफ में लगे कर्मचारी भी जूते उठाते, जूते पहनाते, ड्यूटी पर आते-जाते चरण छूते दिखाई देते हैं।

यहां यह तय करना मुश्किल होता है कि कार्यकर्ता या अधीनस्थ स्टॉफ ने श्रद्धा और आस्था के तहत पैर छुए हैं या चाटुकारिता कर अपना हित साधा है। नेताओं का खुल कर चरण वंदना करवाना या अफसरों का सार्वजनिक रूप से अपनी धार्मिक या व्यक्तिगत आस्था प्रकट करना असल में एक सीमा रेखा की मांग करता है। ये ही लोग नीतियों के क्रियान्वयन का जिम्मा भी संभालते हैं और ये ही समाज के रोल मॉडल भी है। इन्हीं से निरपेक्ष रहने की उम्मीद की जाती है। यदि ये ही इस तरह किसी व्यक्ति, धर्म, संस्था या संगठन के प्रति अपनी आस्थाओं या कमजोरियों का प्रदर्शन करते हैं तो इनसे प्रभावित लोग भी वैसा ही करेंगे।

किसी अफसर की रुचि या अरुचि का पता लगते ही अधीनस्थ स्टॉफ अधिकारी की पसंद का ही कार्य करेंगे फिर निष्पक्षता की उम्मीद करना बेमानी हो जाएगा। ऐसे ही नेता यदि चरण वंदना से प्रसन्न होने लगे तथा रेवड़ी की तरह उत्तराधिकार बांटते रहे तो लोकतंत्र में योग्यता का सम्मान कहां कायम रह पाएगा? ऐसे तो जो जितना झुकेगा उतना पाएगा। लेकिन यह झुकना विनम्रता और आस्था से झुकना न होगा बल्कि यह रीढ़ विहीन हो कर रेंगना होगा और हमें ऐसा रेंगने वाला भविष्य तो नहीं ही चाहिए।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है