पंकज शुक्ला
हर नाउम्मीद के मौसम में/
उम्मीद के जीते रह जाने का/
खाद-पानी मौजूद होता है।
मप्र के कटनी जिले से आई एक खबर ने इन्हीं पंक्तियों पर विश्वास करने को मजबूर किया। यह तस्वीर एक स्कूल के शिक्षक का स्थानांतरण हो जाने के बाद विदाई के पलों की है। बच्चे बिलबिलख कर रो रहे हैं। भावुक क्षणों में शिक्षक भी अपने आंसू नहीं रोक पाए। ऐसी ही एक तस्वीर बीते साल तमिलनाडु से आई थी। ऐसी तस्वीरें हमने सालों से नहीं देखी। पढ़ाने वाला शिक्षक सिस्टम से लड़ने में मसरूफ हो गया और शिक्षा गौण होती गई। हर तरह के मूल्यों और संवेदनाओं के पतन के दौर में एक उम्मीद की तरह हैं ये तस्वीर। इस तस्वीर का होना हमारे मानव बचे रहने की निशानी है। यह शिक्षक को महज ‘कर्मी’ न मान ‘गुरु’ पद पर आसीन करने के हमारे भाव की मुखर अभिव्यक्ति है। ऐसी तस्वीर आस जगाती है कि भीड़ मॉब लिंचिंग ही नहीं करती, भीड़ अपनत्व का इंद्रधनुष भी खींचती है।
हम इनदिनों नकारात्मकता से भरे हुए हैं। ज्ञात/अज्ञात आशंका और ख्वामहख्वाह के जोश से भरे हुए हैं। तमाम खबरों के बीच अचानक एक वीडियो वायरल होता है। इसमें रोते हुए बच्चों की भीड़ से घिरा एक शख़्स नजर आता है। कटनी जिले के तिलमन गांव के सरकारी स्कूल में शिक्षक मंगलदीन पटेल का 17 साल बाद जिले के ही कुठला माध्यमिक स्कूल में तबादला हुआ है। शनिवार (17 अगस्त) को उनको आदेश मिला और वे रिलीव हो गए। जब उन्होंने बच्चो को ट्रांसफर और सोमवार से नहीं आने की बात कही तो क्लास में बच्चों की रोने की आवाज गूंजने लगी। छात्र-छात्राओं को रोता हुआ देखकर शिक्षक की आंखे भी भर आई थी। वे छात्रों से यही कह रहे थे कि वे फिर से लौटकर आएंगे। बच्चोंं का शिक्षक से लगाव उनकी बातों में झलकता है। वे कहते हैं कि पटेल सर बहुत अच्छे से पढ़ाते थे। उनका पढ़ाने का तरीका सरल और अच्छा था कि सब समझ में आ जाता था।
पटेल सर ने आज अपनी पारिवारिक मुश्किलों को देखते हुए तबादला मांगा है मगर उन्होंने कई बार अपनी तकलीफों को भूलाते हुए बच्चों को पढ़ाया होगा। खुद मुश्किल क्षणों को पीछे धकेल कर बच्चों को स्वयं पर विश्वास करना सीखाया होगा। संभव है कि कल गांव में पटेल सर से बेहतर पढ़ाने वाला शिक्षक आ जाए। मगर बच्चे पटेल सर के साथ बिताए अपने सुनहरे दिनों को नहीं भूल पाएंगे। ज्यों हमें अपने स्कूली शिक्षा के शिक्षक आज भी याद आते हैं। यही इस तस्वीर की ताकत है।
जब निजी स्कूलों में शिक्षक माता-पिता के रसूख के आगे बौने हो गए हैं, यह तस्वीर सुकून देती है कि शिक्षक महज सेवा प्रदाता नहीं है। यह हमारे जीवन में विद्या देने वाले शिक्षक के महत्व को रेखांकित करती है। यह शिक्षक के महत्व को जानने वाली हमारी समझ के बचे रहने का संकेत देती है। जब हम शिक्षकों से कई-कई उम्मीद कर रहे होते हैं तब यह उनके प्रति हमारी अपनी जिम्मेदारी समझने की जरूरत भी बताती है। अभी भी वक्त है, शिक्षक पद की प्रतिष्ठा कीजिए। यह हमारे भविष्य की समझ और ज्ञान का मामला है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है