ये कठिन दौर फ़िर एक सबक सीखा गया

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प्रमिला

पिछले कुछ दिन बहुत मुश्किल थे, रात दिन काटना असम्भव सा लगा । लगभग 48 घन्टे दहशत और दुःख के साथ सिर्फ़ रोते गुजरे। असहायता चरम पर जाकर जीवन मरण के फ़र्क को खत्म कर रही हो जैसे।
इँसान ख़ासकर माँ सब बर्दाश्त कर सकती है लेकिन संतान की परेशानी, दुःख, तकलीफ़ बर्दाश्त नही कर पाती फ़िर किसी से भी भिड़ सकती है। ऐसा ही हुआ …
फ़िर भगवान के आगे हाथ जोड़ कर लड़ाई शुरू हुई …
तू ऐसा नही कर सकता,अब तक जो भी टास्क तूने दिया सबको जीत कर दिखाया लेकिन अब नही ..
जहाँ बात बच्चों की आयेगी तुझसे भी भिड़ जाऊँगी
उसने सुन ली मेरी, हमेशा ही उसकी मेहरबानी मुझपर रही है। कितना ही कठिन टास्क क्यों ना दिया हो पर हमेशा मेरी जीत सुनिश्चित की,जिसके लिए हमेशा ही आभारी हूँ उसकी
जो बेटी भाई की तरक्की पर मुझे निश्चिंत कर रही थी की आप उसकी तरफ़ से निश्चिंत हो जाओ वो बहुत आगे जाएगा और उसका आगे बढ़ना उन सब लोगों के मुँह पर तमाचा होगा जिन्होने हमारे रास्ते में काँटे बिछाए
फ़िर अचानक ही एक दिन उसने कुछ फ़ोटो भेजे, उंगली में लगा ऑक्सिमिटर और थर्मामीटर .. ऑक्सिमिटर 90 रीडिंग दर्शा रहा था ओर थर्मामीटर 103 उस हाथ को पहचानना एक माँ के लिए मुश्किल नही था उस व़क्त मुझपर हावी दहशत को मैं बयान नही कर सकती।
एकदम असहाय और अकेले मैं भी वो भी,हजारों मील का फासला ..
बस एक ही माध्यम था मोबाइल और इंटरनेट। माँ और बेटी के बीच व्हाट्सएप हमारे बीच umbilical cord बन गया जिसके सहारे अपने बच्चे को मैने अपने साथ जोड़ कर उसे जीवन की तरफ़ मोड़ना शुरू किया। सबसे अपने को दूर कर व्हाट्सएप पर बेटी के साथ अपने को क़ैद कर लिया और बाहर ईष्ट के साथ। ग़ुम हो गई मैं उस वक़्त, यही मुझे ज़रूरी लगा।
एक माँ के लिए अपने बच्चे के मुँह से यह सुनना “माँ मैं नही बचाऊंगी, I am dying” मौत की सजा से भी बदतर है।
कोरोना पॉज़िटिव आने के बाद होम क्वोरेन्टाइन होने की बात नही बताई थी उसने पर जब लगातार तीन दिन तक उल्टियां ना रुक रही थीं ना ही कम ही हो रही थीं,मौत का तान्डव शुरू हुआ तो घबरा कर माँ को पुकारा, सबसे पहले एकमात्र माँ ही तो दिल, दिमाग़ और जबान पर आती है।
हिम्मत बंधाई , समझाया माँ के लिए लड़ाई जितना है, अधुरी नही जी सकेगी माँ …..
उसने समझा इस बात को, फ़िर हिम्मत जुटाई और दो दिन बात स्तिथि में हल्का हल्का सुधार शुरू हुआ।
भगवान की कृपा से तीन चार दिन बाद स्तिथि काफ़ी कुछ ठीक हुई बात करने की स्तिथि में आते ही उसके शब्द माँ के शब्दों से लिपट गए, दूरियां माँ के गले नही लगने दे रही थीं तो शब्द ही सही।
लड़न्की है बहुत पर प्यार भी बहुत करती है पहली बार इतना खुल कर बोली ..
“माँ हम चाहे कईं दिनों तक भले ही आपने बात नही कर पाएं बहुत व्यस्त हैं पर आपको बहुत प्यार करते हैं, ये बात हमेशा याद रखना। मैं समझ गई थी की अगर मुझे कुछ हुआ तो आप बर्दाश्त नही कर पाओगे, आप जीओगे कैसे? माँ के लिए मुझे हर हाल में हिम्मत करनी हैं, करनी ही पड़ेगी।”
और बेहद नाज़ुक सी मेरी बेटी ने हिम्मत की…..
धीरे धीरे सब ठीक हो रहा है।

ये कठिन दौर फ़िर एक सबक सीखा गया।
अगर आप अच्छे हैं और हर रीश्ते की कदर करते हैं, हमेशा आप दूसरों की परेशानी में उनके साथ खड़े होकर उनका संबल बनते हैं तो आपसे बड़ा मूर्ख कोई नही है, लोग आपको बेवकूफ़ बनाकर सिर्फ़ आपका उपयोग करते हैं, आपकी अहमियत, आपके प्रति प्रेम, चिँता सब दिखावा है ताकी आपको बेवकूफ़ बनाकर आपकी पोजीशन, कॉन्टैक्ट और क़ाबलियत का फ़ायदा उठा सकें। ऐसे लोग रिश्तो को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करते हैं।
ऊपर से तुर्रा ये, तुमने बताया ही नही, हमें तो पता ही नही …..
क्यों बताऊं मैं?
मैं कैसे जान जाती हूँ और तत्काल आपके साथ खड़ी हो जाती हूँ, बिना मांगे हदें पार करके भी मदद करती हूँ ?
आप भी जानो ना, आप क्यों नही जानते, थोड़ा सा मेरे जैसे हो के तो देखो …..

अनुभवों ने समय समय पर बहुत कुछ सिखाया ना चाहते हुये भी व्यक्तित्व में कईं बदलाव हुये फ़िर भी थोड़ा कुछ बचा रह गया था जो अब जंग खा गया है धीरे धीरे गला रहा है, जंग तो फौलाद को भी गला देता है।
अब बुरा बनाना चाहती हूँ बन पाऊँगी या नही कह नही सकती पर औरों की तरह होना तो चाहती ही हूँ।
पुष्य नक्षत्र में पैदा हुई हूँ रामचन्द्र जी की थोड़ी तो छाया होगी ना,अब उस छाया से निकालना चाहती हूँ।
थोड़ा बहुत रावण होना चाहती हूँ ….

ईश्वर तेरा बहुत बहुत धन्यवाद एकमात्र तू ही सहारा था ….
मेरी प्रार्थना सुनकर मेरा माँ होना सार्थक कर दिया
फ़िर से तेरा धन्यवाद