राकेश अचल
भारत के हम लोग बेहद फुर्सत में हैं. हम चाहे हिन्दू हों या मुसलमान ,सिख हों या ईसाई हमारे पास फुरसत ही फुर्सत है . हमें न पर्यावरण की फ़िक्र है न साफ़-सफाई की .हम फुरसत में फिजूल की लड़ाई के लिए .हमें फुरसत है निरर्थक सियासत पर गाल बजाने की.हम फुरसत में है एक-दूसरे के मजहब में मदाखलत करने के लिए .हमारे इस फुरसतिया मिजाज की वजह से पुलिस हलकान होती है .सोसायटी वालों को परेशान होना पड़ता सो अलग ..
अब हरियाणा के गुरग्राम को ही ले लीजिये. जब से ये गुड़गांव से गुरुग्राम हुआ है तब से यहां कुछ न कुछ गड़बड़ होती रहती है वो भी फ़ुरसतियों की वजह से . हरियाणा के गुरुग्राम के सेक्टर 12-A की एक निजी संपत्ति में शुक्रवार को शांतिपूर्ण तरीके से नमाज पढ़ी जा रही थी, तभी एक उग्र भीड़ वहां पर आई और विवाद जैसी स्थिति बन गई।नमाज पढ़ने वालों ने तो आया कि फुर्सत निकाली होगी लेकिन जिसे नमाज नहीं पढ़ना थी वो भीड़ पूरे फुरसत में थी सो वहां हंगामा करने जा धमकी .
फुरसतिये मुठ्ठी भर यानि कोई तीस-चालीस ही थे और उन्हें बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के रूप में जाना जाता है. फुरसतिये भीड़ की शक्ल में थे और उग्र भी , उन्होंने आदतन जय श्री राम के नारे लगाए और नमाज को बाधित किया। नारे लगाना फ़ुरसतियों का जन्मसिद्ध अधिकार होता है .
प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि बाहरी लोगों द्वारा अवैध रूप से नमाज अदा की जा रही है।
फुरसतिये यानि प्रदर्शनकारी दुस्साहसी हैं इसलिए वे पुलिस को ये भी धमकी दे गए हैं कि अगर अगले शुक्रवार को उसी स्थान पर नमाज अदा की जाती है और कोई दुर्भाग्यपूर्ण घटना होती है, तो इसके लिए प्रशासन जिम्मेदार होगा।पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि एक और जगह नमाज बाधित होने के बाद सेक्टर 12 में नमाज करने की जगह को यहां के निवासियों की सहमति से ही चुना गया था।पुलिस का कहना है कि यहां बीते एक साल से बिना रुकावट के नमाज पढ़ी जा रही है।
पुलिस ने हालाँकि फिलहाल फ़ुरसतियों को खदेड़ दिया है लेकिन क्या खबर कि अगले शुक्रवार को वे फिर ऊधम नहीं करेंगे .दरअसल फ़ुरसतियों को लगता है कि नमाज पढ़ने वाले रोहंगिया मुसलमान है .अरे भाई किसी निजी जमीन पर कौन नमाज पढ़ रहा है और कौन नहीं ये मसला फ़ुरसतियों का नहीं पुलिस का है लेकिन फ़ुरसतियों ने तो जैसे पूरे मुल्क में इस बात का ठेका ले लिया है कि क़ानून और व्यवस्था वे ही देखेंगे .फुरसतिये केवल बजरंगी हों ऐसा नहीं है ,फुरसतिये हुड़दंगी भी हटे हैं जो पुलिस और प्रशासन को धता दिखाकर प्रतिबंध के बावजूद मीलाद उल नबी के दिन जुलूस निकालने पर अड़ जाते हैं तो अड़ ही जाते हैं .सड़क पर करतब करते हैं तो करते ही हैं .
फ़ुरसतियों का कोई दीन नहीं होता,हाँ धर्म होता है ,लेकिन उनका धर्म अपने धर्म की रक्षा करना या उसका प्रचार करना नहीं बल्कि धर्म के नाम पर हुड़दंग करना होता ही. ये फुरसतिये कुछ भी कर गुजर सकते हैं,क्योंकि ये जहाँ सक्रिय होते हैं वहां इनकी अपनी सरकार होती है जो ‘सठे साठयम’ के सिद्धांत में यकीन करती है. संयोग से मै जिस घटना का जिक्र कर रहा हूँ वो अपने खट्टर साहब की सल्तनत में हुई है . लोग फुरसत में है क्योंकि उनके पास काम नहीं है. वे बेरोजगार हैं .उन्हें जो कुछ माल-पत्ता मिलता है वो राजनीतिक दलों से ही मिलता है .
फुरसतिये पक्के राष्ट्रवादी होते हैं.उनके पास इसका प्रमाणपत्र भी होता है.गले में ख़ास रंग का दुपट्टा या पट्टा डालकर आप राष्ट्र सेवा के नाम पर कुछ भी कर सकते हैं और पुलिस की मजाल है कि वो आपको हाथ भी लगा ले. पुलिस तो केवल वहां अपना जौहर दिखाती है जहाँ उसे नहीं दिखाना चाहिए . फुरसतिये ‘ वेलेंटाइन डे ‘ हो या ‘फेब इंडिया’ का फैशन शो ,आपको हर जगह मिल जायेंगे .ये एक निशुल्क सेवा देने वाली प्रजाति है .इस प्रजाति का अभ्युदय आज का नहीं है. तीस-चालीस साल पहले इसका जन्म हुआ था .इससे पहले फ़ुरसतियों को समाजवादी या वामपंथी कहा जाता था .उनकी हरकतें हलनिक इतनी घटिया नहीं होतीं थी. वे कम से कम निजता का सम्मान करना तो जानते थे .अब तो निजता जैसी कोई चीज देश में है ही नहीं.हाँ ये शब्द संविधान की किताबों में दबे कहीं सिसकते हुए जरूर मिल सकते हैं .
फुरसतिये आज की सबसे बड़ी जरूरत हैं. इनकी जरूरत सत्ता और सत्तारूढ़ दल को सबसे ज्यादा है. अब यदि फुरसतिये नहीं होंगे तो कौन ताली बजायेगा और कौन थाली बजायेगा. कौन दिए जलाएगा और कौन सूखे शंख फूंकेगा ?मुमकिन है कि आप मेरी बातों से इत्तफाक न रखते हों लेकिन ये आपका निजी अधिकार है.मै इसका सम्मान करता हूँ.आप मुझसे इत्तफाक न रखें और फ़ुरसतियों से इत्तफाक रखें मुझे कोई आपत्ति नहीं .मै आपत्ति करके कर भी क्या लूंगा ? जो करना है फ़ुरसतियों को करना है. क्योंकि ये कलियुग का फुरसत काल है .इसका संसद के शून्य काल से कोई रिश्ता नहीं है. शून्य काल संवैधानिक व्यवस्था है जबकि फुरसत काल पूरी तरह असंवैधनिक है .
इस मामले में मुझे अमरीकी बहुत अच्छे लगते हैं. वे फुरसत काल में किसी के फाटे में टांग फंसने के बजाय अपने-अपने साधनों से या तो साइक्लिंग करने निकल जाते हैं या हाईकिंग करने. या तो सैर -सपाटा करते हैं या फिर सन्नाटा चुन लेते हैं .वहां भी दुनिया के हर मजहब के लोग हैं लेकिन किसी के पास इतनी फुरसत नहीं होती कि वे एक -दूसरे पर नजर रखें कि कौन क्या कर रहा है. वहां नजर रखने का काम किसी हुड़दंगी दल का नहीं बल्कि चुस्त-दुरुस्त पुलिस का होता है .वहां पुलिस खटराग से नहीं अपने इकबाल से काम करती है और इसमें हिचकती नहीं है.हमारे यहां की पुलिस जैसी तो वहां की पुलिस बिलकुल नहीं है.
बहरहाल गुरुग्राम के बहाने मैंने फ़ुरसतियों पर बात कर ली है. आप भी यदि फुरसत में हों तो इस मुद्दे पर मनन ,चिंतन कीजिये .शायद कोई विचार आपके मन में भी अंकुरित हो इन फ़ुरसतियों के हुड़दंग से निबटने के लिए .
@ राकेश अचल