अब भारत सिंधु नदी के जरिए पाकिस्तान के आतंकवाद को जवाब देने की तैयारी में

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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को 330 मेगावॉट क्षमता वाली किशनगंगा विद्युत परियोजना का उद्घाटन किया, साथ ही किश्तवार जिले में 1,000 मेगावॉट की पाकल दुल विद्युत परियोजना की आधारशिला रखी। इन दोनों योजनाओं को केंद्र सरकार की पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ एक रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। पाकिस्तान के साथ किए गए 1960 के सिंधु नदी समझौते के तहत भारत अपने हिस्से के पानी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करेगा, जिससे पाकिस्तान के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है।
India now preparing to respond to terrorism of Pakistan through Indus river
सिंधु नदी के पानी के ज्यादा से ज्यादा उपयोग का फैसला सितंबर 2016 में पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा उड़ी में आर्मी कैंप पर हमले के बाद लिया गया था। इस हमले में भारत के 18 सैनिक शहीद हुए थे। उस वक्त पीएम मोदी ने कहा था कि खून और पानी दोनों एक साथ नहीं बह सकते। हमले के 11 दिन बाद पीएम मोदी ने अधिकारियों की एक अहम बैठक ली थी, जिसके जरिए पाकिस्तान को साफ संदेश दिया गया कि या तो आतंक बंद करो या वर्तमान में समझौते से ज्यादा मिल रहे पानी को गंवाना पड़ेगा।

केंद्र सरकार के इस फैसले के तुरंत बाद ही चिनाब और उसकी सहायक नदियों पर सावलकोट में 1,856 मेगावॉट, पाकल दुल में 1,000 मेगावॉट और बरसार में 800 मेगावॉट की बिजली परियोजनाओं में तेजी लाई गई। पाकिस्तान में पानी की कमी बीते कुछ सालों में एक बड़ा मुद्दा बनी है। जलवायु परिवर्तन, पुरानी किसानी तकनीक और जनसंख्या विस्फोट की वजह से पाकिस्तान में पानी का संकट गहरा रहा है। साल 2011 में यूएस सेनेट कमिटी की एक रिपोर्ट में भी कहा गया था कि भारत भविष्य में बिजली परियोजनाओं के जरिए पाकिस्तान की लाइफलाइन सिंधु नदी के पानी को नियंत्रित कर सकता है।

सिंधु नदी पर जिन प्रॉजेक्ट्स पर काम शुरू होना है, उनमें से कुछ को स्वीकृति दशकों पहले मिल गई थी मगर कुछ कानूनी अड़चनों के चलते इन पर काम नहीं शुरू हो सका था। सावलकोट में जिस परियोजना पर काम करना है उसे पहली बार स्वीकृति 1991 में मिली थी, जिसे जनवरी 2017 में केंद्र सरकार द्वारा गठित पर्यावरण समिति द्वारा हरी झंडी दे दी गई। पाकल दुल स्थित परियोजना भी कानूनी दांव-पेच में फंसी थी, जिन्हें अब सुलझा लिया गया है।