भारत की सामाजिक और आर्थिक स्थिति आज के परिपेक्ष में

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प्रमिला कुमार

अनुमानों के अनुसार भारतीय सभ्यता लगभग 5 हजार वर्ष पुरानी है,जिस कारण भारतीय समाज भी बहुत जटिल प्रकृति का है। इस लम्बे ऐतिहासिक काल के दौरान भारत ने बहुत से उतार-चढ़ाव और अप्रवासियों का आगमन देखा है जैसे आर्यों, मुस्लिमों और अंग्रेजों का आगमन । ये आप्रवासी अपने साथ अपनी जो जातिय बहुरुपता और संस्कृति को लेकर आये थे उसने भारत की विविधता,समृद्धि व जीवन शक्ति में अपना योगदान दिया जो कालांतर में भारत की मिट्टी में रच बस गया।यही कारण है की भारतीय समाज विविध संस्कृतियों, धर्मों,लोगों,विश्वासों और मान्यताओं का जटिल मिश्रण बन गया जो अब इस विशाल देश का एक अभिन्न हिस्सा है। इस सांस्कृतिक समृद्धि की जटिलता और विविधता ने भारतीय समाज को एक जीवंत और रंगीन संस्कृति का अद्वितीय रुप दिया है।
India’s social and economic situation in today’s context
इतिहास को पलट कर देखा जाये तो भारत बहुत से युद्धों का गवाह रहा हैं। कुछ विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा इस देश को अपनाकर अपनी सामाजिक-धार्मिक प्रथाओं को मानने के लिये यहाँ के लोगों को मजबूर किया जिससे भारत की मूल सामाजिक स्थिति बिगड़ गयी। ब्रिटिश शासन की लम्बी अवधि ने देश को पूर्णत: अपाहिज बना दिया और पिछड़ेपन की ओर धकेल दिया। बिगड़ी हुई सामाजिक स्थिति समय के साथ अपने विकराल रूप में आती गई। मुख्य रूप से देश गरीबी, अशिक्षा, बाल विवाह, भुखमरी से बुरी तरह घिर गया।

सामाजिक समस्याओं से जुड़े मुद्दों के और रुप भी हैं जैसे …. जातिवाद,अस्पृश्यता, बंधक मजदूर, लिंग असमानता, दहेज प्रथा, महिलाओं पर घरेलू हिंसा, महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा, बाल यौन शोषण, साम्यवाद, धार्मिक हिंसा, एस.सी/एस.टी से जुड़े मुद्दे, किशोर अपराध, वैवाहिक बलात्कार, कार्यक्षेत्र पर महिलाओं का यौन-शोषण आदि।

सामाजिक स्थिति
सर्वप्रथम जातिप्रथा की बात की जाये तो आज यह विस्फोटक स्थिति मे है। अगर देखा जाये तो यह हिन्दू धर्म मे प्राचीन काल से स्थापित एक सामाजिक व्यवस्था है जिसका आधार समाज मे क्षमतानुसार कार्य का विभाजन माना जा सकता है। भारत में व्यक्ति का सामाजिक स्तर उसकी जाती के आधार पर परिभाषित किया जाता है। इसका अस्तित्व मनुस्मृति से प्रारंभ होता है। शनै: शनै: ये व्यवस्था विरासत के रूप में बदल गई।

सबसे निचले वर्ग के साथ बाकी वर्गों का व्यवहार बहुत ही घ्रणास्पद और भेदभावपूर्ण है। कालांतर में इस भेदभावपूर्ण व्यवस्था ने अस्पृश्यता और उत्पीड़न को बढ़ावा दिया और शनै: शनै: इसने देश में महामारी का रूप ले लिया जिसका परिणाम यह हुआ की देश में जातिगत ध्रुवीकरण बन गया, सवर्ण और दलित दो ध्रुव बन गये और इनके बीच नफरत की खाई ने समय के साथ विकराल रूप ले लिया। यह बहुत ही दु:खद है की वैज्ञानिक रूप से विश्व ही नही भारत ने भी बड़ी बड़ी उपलब्धियाँ प्राप्त की, तरक्की की है उसके बावजूद आज भी देश जातिप्रथा से उत्पन्न नफरत और विरोध की आग में झुलस रहा है।

इसी प्रकार लिंग असमानता भी देश में एक गम्भीर समस्या के रूप में स्थापित है। आज भी अधिकांशत: अशिक्षित ही नही शिक्षित वर्ग भी बेटी के पैदा होने को अच्छा नही मानते। आज भी कई बार लिंग जाँच के उपरांत गर्भपात करा लिया जाता है। ये बात कितनी हास्यापद है की जहाँ एक तरफ कन्या को देवी रूप कहा तो गया परंतु माना नही गया है वहीं कई बार कन्या को भ्रूण में ही मार दिया जाता है। यह कहा जा सकता है की भारतीय समाज दोहरे मापदंड रखता है। इसी प्रकार भारतीय समाज में स्त्रियों के लिये भी अलग मानदंड है। भारतीय पुरुष सही मायने में स्त्रियों को सम्मान, अधिकार, और मानसिक स्वतंत्रता देना ही नही चाहता। समाज में, घर में और कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण और असमान व्यवहार किया जाता रहा है। इस स्थिति में समय के साथ धीरे धीरे बदलाव तो आया है लेकिन अभी भी लोगों की विचारधारा और रूढिवादिता को बदलने की आवश्यकता है।

इसी प्रकार भारतीय समाज में दहेज प्रथा भी विकराल रूप में फैली हुई है। व्यवहारिक रूप से देखा जायें तो इस प्रथा के गम्भीर परिणाम भी स्त्रियों को ही भुगतने पड़ते हैं। ऐसा प्रतीत होता है की इस प्रथा का आरम्भ नव विवाहित जोड़े को अपनी ग्रहस्थी प्रारम्भ करने में मदद के और अपनी खुशी व्यक्त करने के उद्देश्य को उपहारों के माध्यम से पूरा किये जाने के लिये हुआ होगा लेकिन धीरे धीरे ये प्रथा शोषण का माध्यम बन गई और वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष पर बाध्यकारी हो गई। विवाह जहाँ एक पवित्र बंधन माना गया है वहाँ दहेज प्रथा स्त्री की गरिमा को कम कर उसे अपमानित करने यहाँ तक की उसकी हत्या का भी कारण बन गई।

बाल विवाह भी देश में एक गम्भीर सामाजिक बुराई के रूप में विधमान है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत बाल विवाह के मामले में दूसरे स्थान पर है। एक राष्ट्र जो महाशक्ति के रुप में उभरता हुआ माना जा रहा है उसके लिये ये एक परेशान करने वाली वास्तविकता है कि बाल विवाह जैसी बुराई अभी भी जारी है। केरल राज्य जो सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य है में अब भी प्रचलन में है। यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल आपात निधि) की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में सबसे अधिक 68% बाल विवाह की घटनाएं होती है जबकि हिमाचल प्रदेश में सबसे कम 9% बाल विवाह होते है।

हम विश्व में अपने देश को आधुनिक, आगे बढ़ते हुये राष्ट्र के रुप में प्रस्तुत करते हैं और ये सत्य है कि भारत दुनिया में वैज्ञानिक, आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में प्रगति कर रहा है लेकिन जहाँ तक सामाजिक विकास का संबंध है यह अभी भी दुनिया के सबसे नीचे स्तर के देशों में से एक है।

आर्थिक स्थिति
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही गरीबी एक चिंतनीय विषय है। अब जबकि हम 21वीं सदी में हैं फिर भी गरीबी आज भी देश में लगातार खतरा बनी हुई है। भारत में अमीर और गरीब के बीच बहुत व्यापक असमानता है।लगभग आधी जनसंख्या के पास रहने के लिये आवास नहीं हैं,गाँवों में पानी के समुचित स्त्रोत नहीं हैं। कई गांवों में आज भी माध्यमिक विद्यालय नहीं है और ना ही आवागमन के लिये उपयुक्त रास्तें हैं।

भारत में गरीबी का एक और प्रमुख कारण देश की जलवायु की दशायें भी हैं। प्रतिकूल जलवायु लोगो की कार्य क्षमता को कम करती है।बाढ़,अकाल, भूकंप और चक्रवात उत्पादन को बाधित करता है। जनसंख्या भी एक अन्य कारक है जो इस गरीबी रूपी बुराई को और बढ़ाती है। जनसंख्या वृद्धि प्रति व्यक्ति आय निर्धारण में एक महत्वपर्ण भूमिका निबाहती है। देश की आर्थिक स्थिति कई कारक को प्रभावित करती है जैसे शिक्षा,आवास भोजन आदि।

भारत में अशिक्षा एक समस्या है जो इससे जुड़े बहुत से जटिल परिणाम रखती है। भारत में अशिक्षा देश में विद्यमान असमानताओं के विभिन्न रुपों के साथ संबंधित हैं।असाक्षरता का कारण लिंग असन्तुलन, आय असंतुलन, राज्य असंतुलन, जाति असंतुलन एवं तकनीकी बाधाएँ आदि हैं। भारतीय सरकार ने असाक्षरता का मुकाबला करने के प्रयास मेँ बहुत सी योजनाओं को लागू किया लेकिन स्वच्छता की घटिया परिस्थितियों, महंगी निजी शिक्षा, दोषपूर्ण मिड-डे मील योजना के कारण अशिक्षा अभी भी अस्तित्व में हैं। यूरोप मे अपनाये जाने वाले माप मानक पीसा (ढकरअ) द्वारा 110 देशों की स्कूलों की गुणवत्ता का अध्ययन करने पर पाया गया की भारतीय स्कूल शिक्षा की ये स्थिति बहुत ही निराशाजनक है।

हमारे लिये ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि, भुखमरी अभी भी भारत में अपने अस्तित्व का दावा कर रही है।जबकि देश खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर राष्ट्र होने का गर्व करता है। ऐसी स्थिति में भुखमरी इस प्रगतिशील राष्ट्र के लिये एक कलंक की तरह है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के 2013 के अनुमानों के अनुसार, दुनिया में 7.1 अरब लोगों में से 870,00,000 (870 मिलियन) लोग, 2010-2012 में स्थायी कुपोषण से पीड़ित है और लगभग ऐसे सभी लोग विकासशील देशों में रहते है। इस अवधि में अफ्रीका में, 175-239 मिलियन भुखमरी से पीड़ित लोगों की संख्या में वृद्धि हुई। लैटिन अमेरिका के कैरेबियन में कुपोषण की दर में कमी आई है। इसके अलावा, 2013 में जारी किये गये ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार भारत में कुछ 210 मिलियन लोग भुखमरी के शिकार हैं।

देश की आर्थिक प्रगति कोई मायने नहीं रखती जब तक कि वह अपने नागरिकों के लिए आवश्यक बुनियादी जरूरतों को सुनिश्चित नहीं करता है। अनेको सरकारी और गैर-सरकारी संगठन स्थिति को सुधारने के लिये कार्यरत हैं लेकिन परिणाम उत्साहवर्धक नहीं हैं  हांलाकि समय के साथ ही समाज में कई सकारात्मक परिवर्तन भी हुये हैं उदाहण के लिये, स्कूल मेँ लड़कियों का प्रतिशत बढ़ रहा हैं जिससे उनकी रोजगार दर में भी वृद्धि हुई है, सम्पूर्ण अशिक्षा की दर में कमी हुई है, अनुसूचित जाति व जन-जातियों की स्थिति में सुधार हुआ है आदि। उसके बावजूद आज भी स्थिति संतोषजनक नही है।

इन स्थितियों में सुधार के लिये अभी और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता। हमारे दिमाग और सोच मेँ गहराई से बैठे हुये गलत विश्वासों, मान्यताओं व प्रथाओं को बदले बिना इन स्थितियों को सुधारना असम्भव है। इसके लिये सबसे उपयुक्त तरीका है लोगों को विभिन्न सामाजिक समस्याओं के बारे में शिक्षित करना और उनको खत्म करने के लिये प्रेरित करना। लोगों की सोच, कार्य और व्यवहार को समाज और देशहित के तरफ मोड़ना क्योंकि लोगों को खुद को बदलने के लिये प्रेरित किये बिना कोई भी सरकारी या गैर-सरकारी संस्था कोई भी सकारात्म परिवर्तन लाने मेँ असहाय है। यदि हम भारत को सही मायने मेँ विश्व नेता बनाना चाहते हैं तो हमें अपने सामाजिक और आर्थिक स्तर में सुधार करने की आवश्यकता है।