राकेश अचल
हमारे एक हमनाम हैं ,जो अकेले ऐसे आदमी हैं जो आपको बिना रुलाये बिना भी विवेक अग्निहोत्री के मुकाबले बीसियों गुना ज्यादा कमा लेते हैं ,लेकिन लोग न उन्हें राष्ट्रभक्त मानते हैं और न उन्हें पहचानते हैं. अलबत्ता उनकी अपनी हैसियत इतनी है कि पंत प्रधान तक उनसे मिलकर अपने आपको खुशनसीब समझते हैं .
बीते एक सप्ताह से देश भर में पैसे लेकर भक्तमंडल को रुला रही ‘ द कश्मीर फ़ाइल ‘ सौ करोड़ के क्लब में शामिल हो गयी है.ये खबर सुनकर हमारे ख़ुशी के आंसू निकल पड़े.कम से इस देश में पोंगा पंडित कहलाने वाले विवेक अग्नहोत्री ने पंडित बिरादरी के जख्मों को कुरेदने और उसे रुलाने पर जो 12 करोड़ रूपये खर्च किये थे उनसे सौ करोड़ तो कमा लिए ! वरना पंडितों को कोई कुछ समझता ही कहाँ है ? परम विदुषी कंगना रनौत कहती हैं की देश ने पश्चाताप के आंसू बहकर विवेक को रातों-रात सौ करोड़ का मालिक बना दिया और अभी तो पिक्चर बाक़ी है .
दूसरी तरफ हमारे हमनाम हैं राकेश झुनझुनवाला.वे भी मुंबई में रहते हैं ,लेकिन वे किसी के झकम कुरेदे बिना,किसी को रुलाये बिना भी केवल हाथ हिलाकर एक दिन में विवेक से ज्यादा कमा लेते हैं. किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई और गुरुवार के कारोबारी सत्र में जोरदार तेजी के बीच दिग्गज भारतीय निवेशक राकेश झुनझुनवाला के नेटवर्थ में 861 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है। राकेश टाइटन कम्पनी के बड़े हिस्सेदार है .टाइटन देश का सबसे बड़ा ज्वेलरी ब्रांड है। कंपनी द्वारा स्टॉक एक्सचेंज को दी गई सूचना के मुताबिक दिसंबर तिमाही के आखिर तक राकेश झुनझुनवाला और उनकी पत्नी रेखा झुनझुनवाला के पास टाइटन के 4,52,50,970 शेयर या कंपनी में 5.09 फीसदी हिस्सेदारी है। 17 मार्च को हुई टाइटन में 118 रुपए प्रति शेयर की तेजी के हिसाब से राकेश झुनझुनवाला को 534 करोड़ रुपए का फायदा हुआ है।
कहने का आशय ये है कि आप चाहे किसी भी तरह की दलाली करें मुनाफ़ा होगा ही .झुनझुनवाला की तरह झुनझुना बजाकर भी कमाया जा सकता है और कश्मीरी पंडितों के जख्म कुरेदकर ,उन्हें दोबारा रुलाकर भी कमाया जा सकता है .कमाने के लिए आप कोई भी रास्ता अख्तियार कर सकते हैं .पसंद अपनी-अपनी ,ख्याल अपना,अपना .
मामला चूंकि कश्मीर का है इसलिए हमारा कुछ भी कहना उतना प्रामाणिक नहीं हो सकता जितना कि वहां के रहने वाले लोगों का हो सकता है .हमें तो कश्मीर गए हुए भी कई साल हो चुके हैं लेकिन कश्मीर में रह रहे पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने द कश्मीर फाइल्स को कई मामलों में सच्चाई से काफी दूर बता दिया है. उनका कहना है कि अगर यह फिल्म एक डॉक्यूमेंट्री भी होती, हम समझ सकते थे. लेकिन मेकर्स ने खुद कहा है कि ये फिल्म सत्य घटनाओं पर आधारित है. लेकिन सच्चाई तो ये है कि इस फिल्म में कई गलत तथ्य दिखाए गए हैं. सबसे बड़ा झूठ तो ये है कि फिल्म में दिखाया गया है कि उस सयम नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार थी. लेकिन सच तो ये है कि तब घाटी में राज्यपाल का शासन था. वहीं, केंद्र में भी तब वीपी सिंह की सरकार थी और उसको बीजेपी का समर्थन हासिल था.
उमर अब्दुल्ला को क्या मालूम कि फिल्म क्या चीज है और कैसे बनाई जाती है ? सरकार बनाने और फिल्म बनाने में जमीन,आसमान का फर्क है .सरकार बनाने के लिए संख्या बल चाहिए होता है जबकि फिल्म के लिए चुटकी भर तथ्यों के साथ मुठ्ठी भर कल्पना .उमर कहते हैं कि उस समय कश्मीरी पंडितों के अलावा मुस्लिमों, सिखों ने भी पलायन किया था. उनकी भी जान गई थी. वह मानते हैं कि कश्मीरी पंडितों का घाटी से जाना दुखद था. उमर की माने तो नेशनल कांफ्रेंस अपनी तरफ से कश्मीरी पंडितों को वापस लाने की तैयारी कर रही थी. लेकिन द कश्मीर फाइल्स फिल्म ने उस प्लान को बर्बाद कर दिया है. उमर ने दो टूक कह कह दिया है कि फिल्म के मेकर्स ही असल में कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी नहीं चाहते हैं.
अब कश्मीर की फ़ाइल में झूठ कितना है और सच कितना है ये जानने के लिए कोई आयोग तो बैठाया नहीं जाएगा ,क्योंकि जो काम एक आयोग जिंदगी भर न कर पाता वो विवेक ने एक फिल्म बनाकर कर दिया है विवेक का दिखाया सच है या झूठ ,आप तलाशते रहिये ,फिलहाल विवेक लुटे-पिटे कश्मीरी पंडितों के साथ ही पूरी हिंदी पट्टी में भक्तमंडल के खलीते खाली करने में लगे हैं .भाजपा के छोटे से लेकर बड़े नेता विवेक की फिल्म मुफ्त में दिखाकर पुण्य अर्जित करने में लगे हुए हैं ,क्योंकि ऐसा करने का फतवा पार्टी ने जारी किया हुआ है .
पूरे देश को रुलाकर हर दिन 14 ,15 करोड़ रूपये छाप रहे विवेक को वाय श्रेणी की सुरक्षा मुफ्त में मिली सो अलग .जो सरकार बीते सात साल में निर्वासित कश्मीरी पंडितों को सुरक्षित कश्मीर नहीं भेज पायी उसने विवेक अग्निहोत्री को एक पल में सुरक्षा दे दी .क्योंकि ऐसा करना आसान है,कश्मीरी पंडितों को वापस घाटी में भेजना कठिन,भले ही सूबे से धारा 370 हटा ली गयी हो .घाटी से एके 47 तो आज भी नहीं हटी .घाटी तीन साल से अपना टूटा दिल लिए दिल्ली की और ताक रही है .आखिर अब घाटी की मालिक दिल्ली ही तो है .
पता नहीं कैसे विवेक की नन्हीं सी जान को अचानक खतरा जो पैदा हो गया है .भगवान विवेक को लम्बी उमर और नया विवेक भी दे ताकि वे राकेश झुनझुनवाला की तरह रूपये कमाना सीख जाएँ और भविष्य में उन्हें किसी पीड़ित समाज के जख्म दोबारा सत्य के नाम पर न कुरेदने पड़ें ,क्योंकि विवेक शायद नहीं जानते कि जख्म कुरेदने में उतनी ही पीड़ा होती है जितनी की जख्म देने में .जख्मों को मरहम की जरूरत होती है ,उन्हें कुरेदना अमानवीय अनैतिक कृत्य है ,लेकिन यदि उसे सत्ता प्रतिष्ठान की भलाई के लिए किया जाये तो सब माफ़ किया जा सकता है .