दमोह में जयंत मलैया की राह नहीं आसान, कुसमरिया बिगाड़ सकते हैं खेल

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दमोह। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके की दमोह विधानसभा सीट इन दिनों खासी चर्चा में है। वजह है बीजेपी में हुआ विद्रोह! इस विद्रोह के चलते 28 साल से बीजेपी के कब्जे में चल रही यह सीट इस बार ‘फंस’ गई है। इस वजह से बीजेपी के वरिष्ठ नेता और सात बार के विधायक जयंत मलैया मुश्किल में हैं। मलैया को चुनौती कांग्रेस से कम, पार्टी से विद्रोह करके निर्दलीय मैदान में उतरे वरिष्ठ कुर्मी नेता रामकृष्ण कुसमरिया से ज्यादा है। प्रदेश में यह एकमात्र ऐसी सीट है जहां ऐसी स्थिति बनी है।
Jayant Malaiya’s path is not easy in Damoh, Khusmaria can spoil the game
दमोह मलैया की पारंपरिक सीट रही है। वह पिछले 28 साल से इस सीट से चुने जाते रहे हैं। 2008 के चुनाव में उनकी जीत का अंतर कम हुआ था, लेकिन पिछले चुनाव में वह अच्छे मतों से जीते थे। वह शिवराज सरकार में दूसरे नम्बर पर हैं। उनके पास वित्त जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय है।

टिकट न मिलने से हुए नाराज
मलैया के लिए उनके ही पुराने वरिष्ठ सहयोगी रामकृष्ण कुसमरिया ने परेशानी खड़ी की है। अपने समर्थकों के बीच बाबा के नाम से मशहूर कुर्मी नेता कुसमरिया बीजेपी के सांसद और विधायक रहे हैं। प्रदेश सरकार में वह मंत्री भी रहे हैं। कुसमरिया दमोह जिले की पथरिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने न तो उन्हें टिकट दिया और न ही उनके बेटे को। नतीजा यह हुआ कि बाबा ने दमोह ओर पथरिया दोनों ही जगह से निर्दलीय नामांकन करवा लिया। पार्टी ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की। उपाध्यक्ष प्रभात झा दो बार उनके पास गए लेकिन वह नहीं माने।

बनाया जाति अपमान का मुद्दा
बाबा के अखाड़े में उतरने से 73 साल के जयंत मलैया के सामने परेशानी खड़ी हो गयी है। हालांकि उनका दावा है कि इलाके की जनता उनके साथ है। वह अपनी उपलब्धियों को भी गिनाते हैं लेकिन इलाके के लोग यह मानते हैं कि कुसमरिया ने मलैया का गणित बिगाड़ दिया है। जो कुर्मी वोटर अब तक बीजेपी के साथ रहा है वह अब ‘जाति के अपमान’ की वजह से बाबा के साथ है। कुसमरिया खुद अपने अपमान की जगह कुर्मी जाति के अपमान की बात करते हैं।

कांग्रेस के राहुल सिंह मैदान में
2,33,137 मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में कांग्रेस ने 35 साल के राहुल सिंह को मैदान में उतारा है। दो बुजुर्गों की घर की लड़ाई का फायदा उन्हें मिल सकता है क्योंकि लहर के बाद भी 2013 में जयंत मलैया सिर्फ 4953 वोटों से जीते थे। जयंत मलैया के विकास के दावे पर राहुल कहते है, ‘पूरा क्षेत्र देख रहा है कि कितना विकास हुआ है। बीजेपी के कार्यकर्ता प्रशासन को दवाब में रखते हैं। जनता इस बार उचित फैसला करेगी।’

बेटों के लिए मांग रहे थे टिकट लेकिन….
दमोह से कुल 14 प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं। मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही था लेकिन बाबा ने त्रिकोणीय बना दिया है। एक तथ्य यह भी है कि जयंत मलैया और रामकृष्ण कुसमरिया का यह आखिरी चुनाव है। हालांकि दोनों ही इस बार नहीं लड़ना चाहते थे। उन्होंने बेटों के लिए टिकट मांगे थे लेकिन हालात ऐसे बने हैं कि पुराने मित्र ही आमने सामने आ गए हैं। कुसमरिया चुनाव जीतें या न जीतें लेकिन इतना तय है कि वे आसपास की कई सीटों पर बीजेपी को नुकसान पहुंचाएंगे।

आखिरी चुनाव की दुहाई देकर मांग रहे वोट
मलैया पूरी ताकत से चुनाव प्रचार में जुटे हैं। सार्वजनिक रूप से नहीं लेकिन व्यक्तिगत रूप से वह अपना आखिरी चुनाव होने की दुहाई मतदाताओं को दे रहे हैं और उनसे वोट देकर जिताने की बात कह रहे हैं। देखना यह है कि 7 बार उन्हें विधायक बना चुके दमोह के मतदाता इस बार क्या फैसला करते हैं।