ओएनजीसी में जॉब रैकेट का पर्दाफाश: नौकरी दिलाने के नाम पर युवाओं से ठगे करोड़ों रुपए

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नई दिल्ली। पुलिस ने एक जॉब रैकिट का पदार्फाश किया है जिसमें ओएनजीसी में जॉब दिलाने के नाम पर उम्मीदवारों को ठगा जाता था। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि युवाओं के फर्जी इंटरव्यू के लिए उच्च सुरक्षा वाले कृषि भवन के सरकारी अधिकारियों के कमरे का इस्तेमाल किया जाता था। उनलोगों ने युवाओं से नौकरी दिलाने के नाम पर करोड़ों रुपये ठगा था। पुलिस ने बताया कि रैकिट चलाने वाले में एक सॉफ्टवेयर इंजिनियर, एक आॅनलाइन स्कॉलरशिप फर्म का डायरेक्टर, एक ग्राफिक डिजाइनर, एक टेकी और एक इवेंट मैनेजर शामिल था। उनलोगों की मंत्रालय के स्टाफ से मिली भगत थी।
Job racket exposed at ONGC: Crores of rupees cheated by youth in the name of getting job
गैंग ने बहुत ही जबर्दस्त बंदोबस्त कर रखा था। उनलोगों ने ग्रामीण विकास मंत्रालय के चौथी श्रेणी के दो कर्मचारियों को अपने साथ मिला रखा था जो मल्टिटास्किंग स्टाफ थे। पुलिस ने बताया कि वे दोनों स्टाफ उस अधिकारी के खाली कमरे का बंदोबस्त करते थे जो छुट्टी पर होते थे। फिर पीड़ितों को फर्जी इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता था। आरोपी खुद को ओएनजीसी का बोर्ड मेंबर बताते और इंटरव्यू लेते। उसके बाद पीड़ितों को फर्जी जॉब लेटर्स दिया जाता था। उसके बाद रैकिट का मास्टरमाइंड उनसे पेमेंट लेता था।

आरोपियों की पहचान 32 वर्षीय किशोर कुणाल, 28 वर्षीय वसीम, 32 वर्षीय अंकित गुप्ता, 27 वर्षीय विशाल गोयल और 32 वर्षीय सुमन सौरभ के तौर पर हुई है। मंत्रालय के स्टाफ की पहचान 58 वर्षीय जगदीश राज और 31 वर्षीय संदीप कुमार के तौर पर हुई है। वसीम, अंकित और विशाल उत्तर प्रदेश का रहने वाला है जबकि बाकी आरोपी दिल्ली के हैं। अन्य मुख्य आरोपी रवि चंद्रा की तलाश जारी है।

कुणाल बिहार के एक कॉलेज से बीएससी फिजिक्स में ग्रैजुएट है। वह पीऐंडएमजी नाम की एक आॅनलाइन स्कॉलरशिप फर्म में डायरेक्टर के तौर पर काम करता था। डीसीपी (क्राइम) भीष्म सिंह ने बताया, ‘वह मास्टरमाइंड था। उसने संभावित पीड़ितों का डीटेल्स और नाम हासिल करने के लिए रवि चंद्रा से संपर्क किया। रवि चंद्रा जॉब कंसल्टेंट है जो हैदराबाद का रहने वाला है।

जगदीश 1982 में मंत्रालय में नौकरी पर लगा था और सरोजिनी नगर में अपने परिवार के साथ रहता था। वह रिटायर्ड होने वाला था। संदीप ने 2007 में एमटीएस के तौर पर गृह मंत्रालय जॉइन किया था। वे दोनों मिलकर फर्जी इंटरव्यू के लिए रूम का बंदोबस्त करते थे। वे पता लगाते थे कि कौन सा अधिकारी किस दिन छुट्टी पर है और उस हिसाब से इंटरव्यू फिक्स करवाता था।

पुलिस ने बताया, वसीम ने मेरठ के एक प्राइवेट इंस्टिट्यूट से वेब और ग्राफिक डिजाइनिंग में डिप्लोमा किया था। फर्जी दस्तावेज और आईडी बनाने में उसकी दक्षता ने उसे रैकिट का अहम सदस्य बना दिया था। वह फर्जी इंटरव्यू लेटर और जॉइनिंग लेटर बनाता था।
पिछले तीन साल से ओएनजीसी में असिस्टेंट इंजिनियर की जॉब दिलाने के नाम पर ठगी का रैकेट चला रहे मास्टरमाइंड ने दो साल पहले मामूली-सी गलती की थी।

उसे शायद ही यह पता होगा कि उसकी यह मामूली-सी गलती ही एक दिन उसे सलाखों के पीछे पहुंचा देगी।  क्राइम ब्रांच को ओएलएक्स पर अकाउंट खोलने से आरोपी के लक्ष्मी नगर स्थित आॅफिस का आईपी एड्रेस मिल गया। इसकी मदद से पुलिस ने उसे उसके आॅफिस से दबोच लिया। उससे मिली जानकारी के आधार पर एक-एक करके बाकी छह आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया। यह रैकेट पिछले तीन साल में 25-30 लोगों को करोड़ों रुपये का चूना लगा चुका है।