फिल्मी इतिहास के हरफनमौला कलाकार थे कादर खान

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शशी कुमार केसवानी

आज हम एक ऐसे कलाकार के बारे में बात कर रहे है, जिसका जीवन संघर्षों से भरा रहा है। ॐक्कक्वुग्गियों से उठकर महलों तक पहुंचा पर उसका अंदाज वो ही रहा। कादर खान का जन्म 11 दिसम्बर 1937 को अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था। कादर खान मूलत: पास्थून के काकर जनजाति के थे। अब्दुल रहमान और इकबाल बेगम के 4 पुत्रों में से एक कादर खान थे, जबकि उनके अन्य तीन भाइयों के नाम शामसउर रहमान, फजल रहमान, हबीब उर रहमान थे। वास्तव में 1 साल की उम्र में कादर खान परिवार के साथ मुम्बई आ गये थे और यहाँ वो झुग्गी-झोपड़ियों में रहने लगे। लेकिन उनके पिता अपने परिवार को पालने में असफल रहे। जिसके कारण उनके माता-पिता का तलाक हो गया।
तलाक के बाद कादर खान अपनी मां के साथ रहे। तब कादर खान ने सोचा मैं फैक्टरी में काम करूंगा और तीन चार रुपए कमा लूंगा। लेकिन मां ने उसे समॐक्काया कि तेरे तीन-चार रुपए कमाने से हमारी गरीबी दूर नहीं होगी इसलिए तू पढ़। मां ने पढ़ शब्द पर इतना जोर दिया था कि कादरखान को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके सिर पर पिघला हुआ रांगा डाल दिया हो जो ऊपर से नीचे तक जम गया। यह शब्द में इतना जोर था कि कादर खान अगले दिन से पढ़ाई पर पूरी इच्छा से जोर देने लगे। बस फिर क्या था कादर खान स्कूल में सब चीजों में सक्रिय रहे। बाद में कादर खान ने मुम्बई की म्यूनिसिपल स्कूल से अपनी प्रारम्भिक शिक्षा ली हैं, कादर खान पढ़ाई में मेधावी छात्र थे। इसी कारण उन्होंने आगे चलकर इस्माइल युसूफ कॉलेज (जो कि मुम्बई युनिवर्सिटी से एफिलिएटेड थी) से अपनी इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन पूरी की। उसके बाद कादर खान ने 1970 से लेकर 1975 तक मुम्बई यूनिवर्सिटी में पढ़ाया भी था। उन्होंने एमएच साबू सिद्दीक कॉलेज आॅफ इंजीनियरिंग, बईकुला के सिविल इंजिनियर विभाग में बतौर प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाया था। कॉलेज के वार्षिकोत्सव के फंक्शन में कादर खान ने प्ले में हिस्सा लिया था, जिसकी सबने बहुत प्रशंसा की। अभिनेता दिलीप कुमार को जब इस प्ले के बारे में पता चला तो उन्होंने भी इसे देखने की इच्छा जताई, इसके लिए विशेष इंतजाम किए गए और कादर खान ने उनके लिए ही प्ले में अभिनय भी किया। प्ले को देखकर दिलीप कुमार कादर खान से ना केवल प्रभावित हुए बल्कि उन्होंने खान को अपनी अगली 2 फिल्मों के लिए साइन भी कर लिया, जिनके नाम सगीना महतो और बैराग थे। उस समय फिल्म इंडस्ट्री में कादर खान जैसे नए व्यक्ति के लिए ये बहुत सम्मान और गर्व की बात थी। कादर का फिल्मों में अभिनय का करियर 1973 में शुरू हुआ था, जब उन्होंने दाग फिल्म में काम किया था। 1981 में कादर खान ने नसीब फिल्म में काम किया था, जिसमें उनके साथ अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी, ऋषि कपूर और शत्रुघ्न सिन्हा थे। फिर 1982 में कादर खान ने वापिस अमिताभ के साथ ही एक और फिल्म सत्ते पे सत्ता भी की, जिसमें उनके साथ शक्ति कपूर और हेमा मालिनी भी थी। इसके बाद अगले साल 1983 में खान ने 4 फिल्मों में काम किया, जिनके नाम मवाली, जस्टिस चौधरी, जानी दोस्त और हिम्मतवाला थी, इनमं से 3 फिल्में जहाँ जितेन्द्र और श्रीदेवी की थी, वहीं एक फिल्म जानी दोस्त में धर्मेन्द्र और परवीन बाबी थी। 1984 में बड़े पर्दे पर कादर खान अभिनीत फिल्मों की संख्या और बढ़ गयी। अब उन्होंने नया कदम, अंदर-बाहर, कैदी, अक्लमन्द, मकसद, तोहफा और इन्कलाब जैसी फिल्मों में काम किया। 1985 में कादर खान ने मास्टरजी, सरफरोश, बलिदान, मेरा जवाब और पत्थर दिल में काम किया। 1986 में कादर खान की इंसाफ की आवाज, दोस्ती दुश्मनी, घर-संसार, धर्माधिकारी, सुहागन, आग और शोला जैसी फिल्मे आई, जबकि 1987 में उनकी हिम्मत और मेहनत, हिफाजत, वतन के रखवाले, सिन्दूर, खुदगर्ज, औलाद, मजाल, प्यार करके देखो, जवाब हम देंगे और अपने-अपने आई। फिर 1988 में इन्तेकाम, बीवी हो तो ऐसी, साजिश, वक्त की आवाज, घर-घर की कहानी, शेरनी, कब तक चुप रहूंगी, कसम, मुलजिम, दरिया दिल, प्यार मोहब्बत, सोने पे सुहागा थी। फिर 1989 में चालबाज, कानून अपना-अपना, काला बाजार जैसी करनी वैसी भरनी, बिल्लो बादशाह, गैर कानूनी, वर्दी, हम भी इंसान हैं/ आदि फिल्मों में काम किया। 1990 में इन्होंने अपमान की आग, जवानी जिंदाबाद, मुक्कदर का बादशाह, घर हो तो ऐसा, किशन-कन्हैया, शानदार, बाप नम्बरी बेटा दस नम्बरी आदि फिल्मों में काम किया। 1991 में इनकी यारा दिलदार, साजन, इन्द्रजीत, कर्ज चुकाना हैं, खून का कर्ज, हम, प्यार का देवता, मर दिल तेरे लिए आदि फिल्में आई। 1992 में इन्होंने अंगार, बोल राधा बोल, सूर्यवंशी, दौलत की जंग, कसक, नागिन और लूटेरे जबकि 1993 में शतरंज, तेरी पायल मेरे गीत, धनवान, औलाद के दुश्मन, दिल तेरा आशिक, रंग, गुरुदेव, दिल है बेताब, जख्मों का हिसाब, कायदा कानों, आशिक आवारा, आँखें और दिल ही तो हैं जैसी फिल्में की। 1994 में मिस्टर आजाद, घर की इज्जत, मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी, आग, इना मीना डीका, आतिश, पहला पहला प्यार, साजन का घर, अंदाज, खुद्दार, राजा बाबु आदि फिल्में की। 1995 में हलचल, कुली नम्बर 1 ताकत, तकदीरवाला, अनोखा अंदाज, दी डॉन, मैदान-ए-जंग, सुरक्षा, वर्तमान, ओह डार्लिंग! यह हैं इंडिया नाम की फिल्मों में काम किया। 1996 में कादर खान ने साजन चले ससुराल, छोटे सरकार, रंगबाज, सपूत, माहिर, बंदिश और एक था राजा में काम किया। 1997 में आपने शपथ, भाई, मिस्टर एंड मिसेज खिलाड़ी, दीवाना मस्ताना, हमेशा, जमीर, बनारसी बाबु, सनम, जुदाई, हीरो नम्बर वन, जुड़वाँ की। फिर 1998 , में नसीब, कुदरत, हीरो हिन्दुस्तानी, बड़े मिया छोटे मिया, जाने जिगर, दुल्हे-राजा, घरवाली-बाहरवाली, हिटलर, आंटी नम्बर 1, मेरे दो अनमोल रतन की जबकि 1999 में जानवर, हिन्दुस्तान की कसम, हसीना मान जायेगी, सिर्फ तुम, राजाजी, अनाड़ी नम्बर 1 और आ अब लौट चले आदि फिल्में की। जबकि 2000 में तेरा जादू चल गया, धड़कन, जोरू का गुलाम, क्रोध, आप जैसा कोई नहीं, कुंवारा जैसी फिल्मों में काम किया। 2001 में कादर खान की सिर्फ एक फिल्म आई जिसका नाम था इत्तेफाक। जबकि 2002 में खान के करियर ने फिर से गति पकड़ी और उन्होंने जीना सिर्फ मेरे लिए, अंखियों से गोली मारे, बधाई हो बधाई, हाँ! मैंने भी प्यार किया है, चलो इश्क लड़ाए, वाह! तेरा क्या कहना नाम की फिल्में की। फिर 2003 में फंटूस, परवाना की जबकि 2004 में मुझसे शादी करोगी, सुनो ससुरजी और कौन हैं जो सपनों में आया नाम की फिल्में की। 2005 में खान ने कोई मेरे दिल में हैं, लकी, खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे में काम किया। जबकि 2006 में उमर, जिज्ञासा, फैमिली में कम किया, और 2007 में जहाँ जाइयेगा हमें पाइयेगा, ओल्ड इज गोल्ड और अंडर ट्रायल में कम किया। कादर खान एक हिन्दी फिल्म हास्य अभिनेता होने के साथ साथ एक फिल्म निर्देशक भी थे। उन्होंने अब तक 300 से अधिक फिल्मों में काम किया है।
इनके साथ जमी जोड़ी
वो उन चंद अभिनेताओं में आते हैं जिनकी जोड़ी किसी अभिनेत्री के साथ नहीं बल्कि अन्य हास्य अभिनेताओं के साथ ज्यादा पसंद की गई हो। उनकी जोड़ी गोविंदा, शक्ति कपूर, असरानी और अरुणा ईरानी के साथ बहुत जमी। गोविंदा के साथ उनकी केमिस्ट्री को तो बहुत ही ज्यादा पसंद किया गया, उन दोनों का कॉमिक सेन्स और टाइमिंग का उस समय कोई और कम्पेरिजन नहीं था। पेशा बहुत सी फिल्मों में सपोर्टिंग रोल में काम किया हैं। इसके अलावा डायलॉग और स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर भी काम किया।
कादर खान ने अजरा खान से शादी की और उनके परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे शाहनवाज और सरफराज भी हैं। जिनमें से शाहनवाज ने 2 फिल्मों मिलेंगे-मिलेंगे और वादा में निर्देशक सतीश कौशिक को असिस्ट किया हैं । इसके अलावा उन्होंने राज कँवर की फिल्म हमको तुमसे प्यार हैं में राज कंवर को असिस्ट किया था। कादर खान की व्यस्तता और बच्चों की परवरिश के सन्दर्भ में सरफराज ने एक बार मीडिया को बताया था, कि जब वो छोटे थे तब वो अपने पिता के साथ सेट पर नही जाते थे। क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे पढाई को बीच में छोडकर फिल्मों में आए, वो हमेशा पहले पढाई अच्छे से खत्म करने को प्रेरित करते थे, उनका इस मामले में अनुशासन इतना सख्त था कि हमें फिल्मी मैगजीन पढने से भी रोका जाता था। सरफराज ने कहा कि वो हमेशा से एक्टिंग करना चाहते थे, जब मैं छोटा था तब मैं टेलीविजन देखता था, मैं अपने पिता को टीवी पर देखता था और रोमांचित महसूस करता था। मेरे पिता तब सप्ताह में 5 दिन काम करते थे या फिर महीने भर के शेड्यूल के लिए बाहर जाते थे, ऐसे में हमारी माँ हमारा ध्यान रखती थी। इस कारण मैं ये नहीं कह सकता कि मेरे पिता एक फेमस एक्टर और काम में व्यस्त होने के कारण हमारा ध्यान नहीं रख पाते थे, सच तो ये हैं कि वो जब भी हमें जरूरत होती हमेशा हमारे पास होते थे, वो यदि 5 मिनट भी हमारे साथ बिताते तो उनका वो समय क्वालिटी टाइम ही होता था। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर फिल्म ऐक्टर, राइटर और कमीडियन कादर खान का निधन जिस प्रोग्रेसिव सुप्रान्यूक्लियर पाल्सी यानी पीएसपी नाम की बीमारी से हुआ वह एक न्यूरोलॉजिकल डिसआॅर्डर है। इसमें मरीज की आंखों की पलक नीचे नहीं आती है, मरीज को नीचे देखने के लिए सिर झुकाना पड़ता है। पीड़ित इंसान स्थिर हो जाता है, मूवमेंट खत्म हो जाता है, बैलेंस खराब हो जाता है, बोलना, खाना निगलना, देखने से लेकर मानसिक दशा और बर्ताव तक में बदलाव कर देता है। कादर खान को खूब नाम, शोहरत और पैसा मिला लेकिन अपने अंतिम दिनों में वो बिल्कुल अकेले थे । कादर खान का निधन 31 दिसंबर 2018 को 81 साल की उम्र में हो गया था कादर खान ने कनाडा में अंतिम सांसें ली थीं । वहीं पर उनका अंतिम संस्कार भी किया गया । कादर खान ने लंबे समय की बीमारी के बाद दम तोड़ा था । निधन से पहले वो कोमा में चले गए थे । कादर खान की बहू साहिस्ता उनके लिए अस्पताल में खाना ले जाती थीं क्योंकि उन्होंने अस्पताल का खाना खाने से मना कर दिया था । यही कादर खान के आखिरी शब्द थे । ‘सिर्फ अमिताभ बच्चन ही उन्हें कॉल करते थे। कादर खान को इस बात का बहुत दुख था कि उन्होंने इंडस्ट्री के लिए इतना कुछ किया लेकिन आज तक उन्हें पद्मश्री जैसे सम्मान का हकदार नहीं समझा गया।’ कादर खान ने अपने दिल के सारे गम फौजिया के साथ शेयर किए थे। हालांकि निधन के बाद उन्हें पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजा गया । तब उनके बेटे सरफराज खान ने कहा था, ‘बहुत देर कर दी ।’
जय हो….