मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के दाहिने हाथ की उंगली की बीते सप्ताह सर्जरी हुई। सर्जरी होना बड़ी बात नहीं है। अहम् बात यह है कि यह सर्जरी भोपाल के सरकारी हमीदिया अस्पताल में हुई। हालांकि, इस अस्पताल में ऑपरेशन के लिए डॉक्टर दिल्ली से आए थे।
ऐसे समय में जब विदेश जाने को ही इलाज का सर्वोत्तम उपाय मान लिया गया है, राज्य के मुख्यमंत्री का सरकारी अस्पताल पर भरोसा जताना सराहनीय निर्णय माना जाना चाहिए। यह दौरे कर व्यवस्थाओं को सुधारने के निर्देश देने के आम प्रशासनिक कदम से एक चरण आगे की पहल है। विपक्ष ने भी कुछ तंज के साथ इस निर्णय का स्वागत ही किया। मुख्यमंत्री के निर्णय पर राजनीतिक टिप्पणियों के बाद यह आम राय हैं ऐसी पहल हर जनप्रतिनिधि की ओर से हो तो सरकारी चिकित्सा व्यवस्था ‘असरकारी’ हो सकती है।
बीते छह माह के शासनकाल में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने निर्णयों से सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह की प्रतिक्रियाएं पाई हैं। तमाम राजनीतिक झंझावातों के बीच उनके दो निर्णयों ने खास ध्यान खींचा है। पहला निर्णय तो उन्होंने परंपरा तोड़ते हुए ‘मुख्यमंत्री निवास’ में रोजा अफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं किया। उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने निवास को आम जनता के लिए खोलते हुए हर तरह की जनभागीदारी वाले आयोजन किए। मगर नाथ ने इसे प्रशासनिक और राजनीतिक कार्य के ‘मुख्यालय’ की तरह ही परिभाषित किया है। ऐसा नहीं कि उन्होंने ईद पर शुभकामनाएं नहीं दी। ईदगाह और मुस्लिम नेताओं के घर जा कर उन्होंने अपनी भावनाएं व्यक्त की। इस निर्णय के पक्ष-विपक्ष में राय हो सकती है मगर कमलनाथ ने राजनीतिक, प्रशासनिक कार्य में धर्म और आस्था के मिश्रण से परहेज किया।
दूसरा निर्णय, सरकारी अस्पताल में सर्जरी का है। भले ही एक डॉक्टर आउटसोर्स किया गया मगर सरकारी अस्पताल में जा कर सर्जरी करवाना प्रतीक रूप में ही सही उपयुक्त कदम है। उन्होंने खुद कहा कि हमीदिया बहुत अच्छा अस्पताल है। मैं देश के किसी भी अस्पताल में जा सकता था, लेकिन मैंने सरकारी हमीदिया अस्पताल को प्राथमिकता दी। मुख्यमंत्री भर्ती थे तो अस्पताल का तंत्र पटरी पर रहा। ऐसा तब भी होगा जब अफसर और नेता खुद और उनके परिजन सरकारी अस्पतालों में भरोसा जताएंगे। जब वे खुद सिस्टम से दो-चार होंगे तो वहां की कमियां-खूबियां पता चलेंगी और वे उसके सुधार के कदमों पर ध्यान दे सकेंगे।
मुख्यमंत्री की इसी नेक नीयत से नेता प्रतिपक्ष भी सहमत है तभी तो गोपाल भार्गव ने कहा कि सीएम ने अच्छी पहल की है। मैं विधायकों से कहूंगा कि वे भी सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाएं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कहा कि मुख्यमंत्री जी, हमीदिया में अपना इलाज कराने का आपका फैसला प्रशंसनीय और स्वागतयोग्य है। साथ ही मैं यह चाहता हूं कि जो सुविधा आपको वहां मिले, वही आमजन को भी मिले। उन्हें इधर-उधर भटकना न पड़े। खामियां गिनाना राजनीतिक मजबूरी हो सकती है मगर विपक्ष ने भी मुख्यमंत्री के निर्णय की तो सराहना ही की है। अब उम्मीद की जानी चाहिए कि नाथ मंत्रिमंडल के सदस्य, अधिकारी, अन्य दलों के नेता भी कम से कम सामान्य बीमारियों के लिए तो सरकारी अस्पतालों का रूख करेंगे। जिम्मेदार लोग पहुंचेंगे तो शायद मुश्किलों और कम संसाधनों में अस्पताल संभाल रहे डॉक्टरों को भी सुधार के लिए सहायता मिल पाएगी। शायद तब नेता समझ पाएंगे कि जनता से ऐसे भी आशीर्वाद लिया जा सकता है।