कमलनाथ चाहिए पब्लिक कनेक्ट, छवि ही नहीं गेम प्लान ही बदलने का वक्त

0
454

पंकज शुक्ला

वरिष्ठ सांसद कमलनाथ को मप्र कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने और फिर 1 मई को भोपाल में उनके जोरदार स्वागत के बाद से माना जाने लगा था कि जानदार लीडर के अभाव में निस्तेज पड़ी कांग्रेस को जैसे ब्रह्मास्त्र मिल गया है। कमलनाथ ने आते ही तुरंत प्रदेश कांग्रेस कमेटी में कुछ नियुक्तियां की, मंदिरों के फेरे लगाए, कुछ नेताओं से मुलाकात की। उनकी कार्यशैली को जानने वाले कहते हैं कि वे छिंदवाड़ा मॉडल पर प्रदेश कांग्रेस को संचालित करेंगे और मिशन 2018 फतह करेंगे।
Kamal Nath should have public connect, image not only time to change game plan
एक सप्ताह भी नहीं हुआ है कि 1 मई को प्रदर्शित हुआ जोश कुछ कम पड़ता दिखाई दे रहा है। नाथ के आंरभिक फैसलों पर पार्टी के अंदर ही असंतोष महसूस किया जा रहा है। अभी देर नहीं हुई है। नाथ को कुछ पल विचार कर अपना गेम प्लान बदलना होगा। उन्हें हर वह पैंतरा अपनाना होगा जो उन्हें पब्लिक से कनेक्ट करे। पब्लिक से अर्थ पार्टी के मैदानी कार्यकर्ता से लेकर मतदाता तक सभी लोग हैं।

कमलनाथ की छवि छिंदवाड़ा क्षेत्र में तथा छिंदवाड़ा के बाहर प्रदेश व देश में अलग है। वे अपने क्षेत्र में माइक्रो मैनेजमेंट के लिए जितने चर्चित हैं, प्रदेश में व देश में उतने ही अंतमुर्खी माने जाते हैं। यही कारण है कि कमलनाथ के आते ही प्रदेश में छिंदवाड़ा मॉडल लागू करने की अपेक्षाएं बढ़ गई हैं। यह इसलिए भी जरूरी है कि आम कांग्रेसी कार्यकर्ता चाहता है कि 2018 में भाजपा को कड़ी टक्कर मिले। पार्टी के नेता अपनी गुटबाजी पोषित करने के फेर में भाजपा के लिए वॉकओवर जैसी स्थिति न बना दें। यही सोच कर पार्टी हाईकमान ने राजस्थान में जहां युवा नेतृत्व पर भरोसा जताया है वहीं मध्य प्रदेश में अनुभवी नेतृत्व पर। लक्ष्य एक ही है गुटबाजी खत्म करना।

मगर, कुछ ही फैसलों में यह संकेत गया कि चुनाव अभियान समिति के सूत्रधार ज्योतिरादित्य खेमे को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में फिलहाल कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गई। पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव की विदाई के साथ उनकी समूची टीम की ऐसे विदाई हो गई मानो वे अब कांग्रेसी नहीं है। जिन नेताओं ने अभी काम संभाला है वे यूं तो अनुभवी हैं मगर बीते कई सालों से सक्रियता न्यून होने के कारण स्वाभाविक रूप से वे वर्तमान से अछूते हैं।

राजनीति, जनता से संपर्क, मीडिया से संवाद जैसे कई स्तरों पर कार्यशैली बदल चुकी है। समय के साथ चेहरे बदल गए हैं और काम करने के अंदाज और तरीकों में आमूलचूल परिवर्तन आ गया है। ऐसे में प्रदेश से आ रहे कार्यकर्ता हों, पदाधिकारी हों या मीडियाकर्मी, प्रदेश कार्यालय से सही और जिम्मेदारी भरा जवाब नहीं मिल रहा। ऐसा लगने लगा है जैसे फैसलों के लिए फाइल चलेगी और कई स्तर के चरण पूरे कर उस पर निर्णय होगा। पार्टी क्रियाकलापों का ऐसा सरकारीकरण या कॉरपोरेट शैली आज की आवश्यकता नहीं है।

ऐसे समय में जब भाजपा ने मैन टू मैन मार्किंग की तर्ज पर हर सीट, हर बूथ और हर नेता के लिए अपनी सूक्ष्म कार्ययोजना बनाई है, कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष को अपनी कार्यशैली में टी-20 जैसी रफ्तार लानी होगी। कांग्रेस के पास भाजपा जैसा कार्यकर्ता कैडर नहीं है तो उन्हें अपनी कमजोरियों को दूर करते हुए उस प्लान को तेजी से क्रियान्वित करना होगा जिसके सहारे मप्र में 150 सीट जीतने का दावा कर रहे हैं। पब्लिक कनेक्ट के लिए संवाद के सारे दरवाजे खोलने होंगे।

यह जरूरत इसलिए भी है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 4 मई को अपने भोपाल दौरे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को चुनौती दी है कि वे मप्र में जीत कर दिखा दें। यह चुनौती वास्तव में कमलनाथ और उनके जैसे मप्र के तमाम क्षत्रप नेताओं के लिए हैं। भाजपा उन्हें अपने घर में उलझाए रखने की रणनीति बुन रही है। देखा जाएगा कि कमलनाथ इस रणनीति का प्रतिकार कैसे करते हैं

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है