माफियाओं के खिलाफ ‘सच में’ सिंघम बनेंगे कमलनाथ, कब आएगी भोपाल की बारी..?

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राघवेनदर

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह ने कहा है कि हम भाग्यशाली हैं कि राज्य को अनुभवी कमलनाथ के रूप में विजनरी मुख्यमंत्री मिले हैं जो माफिया के खिलाफ सिंघम बन गए हैं। उनकी इस बात से लोग असहमत भी हो सकते हैं। लेकिन पहली नजर में कमलनाथ के सिंघम बनने की बात सही भी लगती है। अब यहीं से शुरू होता है नाथ के सिंघम साबित होने और विजनरी होने का गणित।

दरअसल मुख्यमंत्री पर माफिया के खिलाफ अभियान में भाजपा ने पक्षपात का आरोप लगाया है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने तो यह तक कह दिया है कि ‘संघ के पदाधिकारी शहर में हैं नहीं तो इंदौर में आग लगा देता’ भला हो संघ के नेताओं का जो कैलाश जी की इस चेतावनी के दौरान इंदौर में थे। अब इस पर राजनीति शुरू हो गई, हम उसमें नहीं पड़ना चाहते। लेकिन भोपाल की बड़ी झील में साढ़े तीन सौ से ज्यादा अतिक्रमण हैं ऐसा करने वाले माफियाओं का सिंघम मुख्यमंत्री के अफसर कुछ नहीं बिगाड़ पाए हैं और इसके लिए दोषी अफसरों का भी बाल बांका नहीं हुआ है। दिग्विजय सिंह की टिप्पणी सीएम सिंघम हैं एक तरह से कमलनाथ सरकार को माफियाओं के खिलाफ और कड़ी कार्रवाई करने के तरफ इशारा करती है। वैसे सरकार ने शुद्ध के लिए युद्ध, नकली दवा, खाद-बीज, ड्रग माफिया के खिलाफ पहले से ही मोर्चा खोला हुआ है।

समूचे प्रदेश में हजारों एकड़ जमीन पर कब्जा और निर्माण कार्य किए गए हैं। 15 साल बीजेपी की सरकार थी जाहिर है उनके चहेतों ने इसका लाभ लेने के लिए पार्टी की सदस्यता भी ली होगी और कई तो संघ परिवार के सदस्य भी बन गए होंगे। बेशक सरकार चुन-चुनकर उन पर कठोर कार्रवाई करे, लेकिन इस मामले में उसकी नीयत पाक-साफ है यह साबित करने के लिए कांग्रेस और उनके नजदीकी माफियाओं पर भी सख्त कार्रवाई की दरकार है तब जाकर दिग्विजय सिंह का यह जुमला कि कमलनाथ सिंघम मुख्यमंत्री हैं, सही साबित होगा। शहर की सड़कों, गलियों से लेकर गांव-देहात की सरकारी जमीनें माफियाओं के िनशाने पर रहती हैं। इंदौर व्यावसायिक शहर है और भोपाल राजधानी है इसलिए यहां अफसरों से साठ-गांठ के चलते अरबों रुपए की जमीन इसकी शिकार हो गई है। इसमें अवैध कॉलोनियों में प्लॉट बेचने से लेकर मकान बनाने तक के हजारों किस्से सरकारी अफसरों की जानकारी में होंगे। लेकिन यहां बागड़ ही खेत खा रही है। अफसरों की माफियाओं से मिलीभगत है। वैसे भी अधिकारी स्थायी सरकार होते हैं। 5 साल के लिए चुने गए पार्षद, महापौर से लेकर विधायक-मंत्री भी पैसा कमाने के चक्कर में अधिकारियों के साथ हो जाते हैं। बेहतर हो सिंघम मुख्यमंत्री दोषी अफसरों पर चाहे उनका तबादला हो गया हो या रिटायरमेंट ढूंढकर फौजदारी कार्रवाई करने की जरूरत है। इसके लिए कानून भी बनाने की जरूरत पड़े तो सरकार को ऐसा करने में झिझकना नहीं चाहिए।

वरना भाजपा के पक्षपात वाले आरोप पर भरोसा करने वाले लोगों की संख्या बढ़ सकती है। भोपाल के तत्कालीन एसपी पन्ना लाल ने अतिक्रमण को कानून व्यवस्था से जोड़कर पुलिस को भी जिम्मेदार बनाया था। उन्होंने कहा था कि अगर सड़क गली-मोहल्लों में अतिक्रमण होता है तो इन इलाकों में तैनात पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की जाएगी। उनका तर्क था कि सड़कों पर ठेले, गुमठियां लगने से जाम की स्थिति बनती है और बाद में इस कारण झगड़े भी होते हैं। इसलिए यह लॉ एंड ऑर्डर का मामला है। पुलिस की जिम्मेदारी है क वो सड़कों पर अतिक्रमण नहीं होने दे। इसके बाद शहर में काफी कुछ हालात सुधरे थे। एक एसपी अगर पुलिस की जिम्मेदारी तय करता है तो स्थिति बेहतर हो जाती है। यदि सरकार अफसरों पर जिम्मेदारी तय कर दे तो निश्चित ही बदलाव दिखना शुरू हो जाएगा। हो सकता है कि आने वाले दिनों में अगर कोई नियम बनता है तो भविष्य में किसी सीएम को अतिक्रमण को लेकर सिंघम बनने की जरूरत कम पड़ेगी। फिर एक मौका है कमलनाथ जी के सामने कि वो दिग्विजय सिंह के इस वाक्य को सही साबित करें कि वो विजनरी होने के साथ सिंघम भी हैं।

शिक्षा और स्वास्थ्य में केजरीवाल से सीखें
मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में 11 जनवरी को पैरेंट टीचर मीिटंग (पीटीएम) होगी। यहां सवाल यह है कि स्कूल खुलते ही सरकार अभियान चलाती है स्कूल चलो। लेकिन पूरे् साल स्कूल में कभी पढ़ाओ अभियान नहीं चलाती। मार्च में परीक्षाएं हैं, अब ये पीटीएम करने के बाद भी बच्चों के हित में क्या हो पाएगा? जब सालभर पढ़ाई ठीक से नहीं हुए, सिलेबस पूरा नहीं किया गया, ऐसे में पीटीएम का ज्यादा लाभ मिलेगा, ऐसा कम लगता है। इस साल का शिक्षा सत्र तो पूरा हो रहा है। यदि विजनरी सीएम अगले सत्र से ऐसी कुछ व्यवस्था कर दें ताकि सरकारी स्कूल निजी स्कूलों के बराबर िरजल्ट दे पाए। यह बात हम हवा में नहीं कर रहे हैं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने सरकारी स्कूलों के कायाकल्प का करिश्मा करके दिखाया है। राजनीति और तजुर्बे में वो भाजपा और कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों से बहुत जूनियर हैं लेकिन फिर भी उन्होंने नवाचार करके दिखाया है।

झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने समझदारी के साथ बड़ा दिल दिखाते हुए केजरीवाल सरकार के शिक्षा और स्वास्थ्य मॉडल को अपनाने का ऐलान किया है। कहा जाता है कि अगर हमारे पास जानकारी या अक्ल नहीं है तो पड़ोसियों से मांगने पर संकोच नहीं करना चाहिए। केजरीवाल सरकार इसका उदाहरण है और उनके मॉडल को और बेहतर बनाकर मध्यप्रदेश में भी लागू किया जा सकता है। कमलनाथ जी ने दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिक की तर्ज पर संजीवनी क्लीनिक जरूर शुरू किए हैं लेकिन कमजोर प्लािनंग के चलते वे असफल हो रहे हैं। इसलिए पहले अधिकारियों को मानसिकता तौर पर तैयार करने की जरूरत है। नहीं तो विजनरी और सिंघम सीएम के जुमले को प्रदेश की नौकरशाही ठिकाने लगा देगी। अभी तक तो ऐसा ही लग रहा है। फिर भी हम उम्मीद करते हैं कि दिग्विजय सिंह का कहा सही साबित हो।

लेखक IND24 के प्रबंध संपादक हैं