Kangna Ranaut का बड़ा बयान, निर्भया के दरिंदों को चौराहे पर फांसी दी जाए

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नई दिल्ली

Kangna Ranaut ने निर्भया केस को लेकर बेबाक बयान दिया है। Kangna Ranaut ने कहा है कि निर्भया के साथ दरिंदगी करने वाले चारों दोषियों को चुपचाप नहीं, बल्कि सरेआम चौराहे पर फांसी दी जाना चाहिए। इससे आपराधियों के मन में डर बैठेगा और सबक मिलेगा। अपनी फिल्म ‘Panga’ के एक प्रमोशन इंवेट पर Kangna Ranaut से पूछा गया था कि निर्भया के दोषियों को फांसी देने में हो रही देरी पर आप क्या कहेंगी?

इस पर अभिनेत्री ने कहा, यह बहुत दुखद है। सोचिए निर्भया के माता-पिता पर क्या गुजर रही होगी? आखिर वे गरीब लोग कब तक हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट करते रहेंगे? यह कैसे समाज है? इन दोषियों को तो भरे चौहारे पर फांसी देना चाहिए।

बता दें, निर्भया केस के चारों दोषियों, विनय शर्मा, मुकेश सिंह, पवन गुप्ता और अक्षय सिंह के खिलाफ डेथ वारंट जारी हो चुका है, लेकिन तय नहीं है कि उन्हें दिए गए समय पर फांसी होगी या नहीं, क्योंकि दोषियों के वकील अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए एक के बाद एक याचिकाएं दायर कर देरी कर रहे हैं।

कंगना के बयान से निर्भया की मां की मांग को मिला बल

कंगना रनौत के बयान से निर्भया की मां आशा देवी की उस मांग को बल मिला है, जिसमें उन्होंने कहा था कि चारों दोषियों को एक फरवरी को एक साथ फांसी दी जाना चाहिए। निर्भया की मां कहना है कि वे 7 साल से न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अब तक अदालतों में जो कुछ हुआ है, उससे तो उन्हें लगता रहा है कि उन्हें परेशान किया जा रहा है।

आखिर क्यों निर्भया के दोषियों को अलग-अलग नहीं हो सकती फांसी, ये है वजह

निर्भया सामूहिक दुष्कर्म के चारों दोषियों को पहले 22 जनवरी को फांसी होनी थी। अब इसकी नई तारीख 1 फरवरी है क्योंकि कुछ दोषियों ने अपने कानूनी विकल्प इस्तेमाल किए थे। एक ओर जहां मुकेश और विनय के क्यूरेटिव पिटीशन खारिज हो चुके हैं, वहीं मुकेश की तो दया याचिका भी राष्ट्रपति ने खारिज कर दी है। वहीं पवन और अक्षय ने अब तक क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका नहीं डाली है।

ऐसे में यह बहस तेज है कि उन दोषियों को फांसी क्यों नहीं हो सकती जिनके सभी विकल्प खत्म हो गए हैं, तो जानिए कि ऐसा कौन सी वजह है जिसके चलते सभी दोषियों को एक साथ ही फांसी होगी…

चर्चा है कि अक्षय और पवन अलग-अलग क्यूरेटिव पिटीशन डालेंगे। अभी तक दोनों ने क्यूरेटिव पिटीशन नहीं डाली है, जिसका मतलब है कि इनकी फांसी एक फरवरी से आगे खिसक सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि कानून के अनुसार और तिहाड़ के जेल मैनुअल के हिसाब से दया याचिका खारिज होने के बाद भी दोषी को 14 दिन का समय दिया जाता है ताकि अपने सभी कानूनी अधिकारों का प्रयोग कर सके। अब प्रश्न उठता है कि क्या दोषी मुकेश के सभी विकल्प खत्म हो गए हैं तो उसे अकेले फांसी हो सकती है? तो इसका जवाब है, “नहीं”।
अलग-अलग नहीं हो सकती फांसी
सुप्रीम कोर्ट में 1982 में आया हरबंस सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य का केस इस मामले में उदाहरण है कि जब एक ही केस में कई लोग दोषी होते हैं तो हर दोषी को अलग-अलग सजा नहीं हो सकती। यह ऐसा केस है जिसमें उत्तर प्रदेश में चार लोगों की हत्या कर दी गई थी जिसके चार आरोपी थे। एक आरोपी पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था।