बिना वेतन और सुरक्षा के लोगों की कर रहे रखवाली, इस सख्स ने मार दिया 31 नरभक्षियों को

0
336

देहरादून। उत्तराखंड के जॉय हुकिल को देखकर कोई यह सोच नहीं सकता कि वह बंदूक थामकर किसी को जान से मारते होंगे। दिन भर कॉन्ट्रैक्टर बन लोगों के बीच रहने वाले जॉय, जरूरत पड़ने पर कुमाऊं और गढ़वाल के पहाड़ों को नरभक्षी जानवरों से निजात दिलाने का काम करते हैं। इस काम के लिए सरकार द्वारा नियुक्त किए गए जॉय अभी तक 31 जानवरों को मार चुके हैं। हालांकि, उन्हें न ही इसके लिए वेतन मिलता है और न सुरक्षा।
Keeping the people of the people without pay and security, this saint killed 31 cannibals
रअसल, तेंदुए जैसे जानवर इस इलाके में आम हैं। अधिकतर समय वे इंसानों से दूर ही रहते हैं लेकिन घटते जंगलों और वहां लगती आग के कारण कई बार उन्हें इंसानों के बीच आने को मजबूर होना पड़ता है। इंसानी बस्तियों में आकर वे कभी जानवरों, कभी लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं।

जॉय बताते हैं कि एक बार वह इंसानी खून चख लेते हैं तो फिर उनकी आदत हो जाती है और वे नरभक्षी बन जाते हैं। वह बताते हैं कि जानवरों को बेहोश कर पिंजड़े में डालने का विकल्प होता है लेकिन नरभक्षियों के साथ यह ठीक नहीं है। जॉय अभी तक 6 जानवरों को कैद कर चुके हैं।

‘अजीब आवाजें निकालकर करते हैं भ्रमित’
इसके लिए वह .375 और 12 बोर राइफल लेकर महिंद्रा बोलेरो रवश् चलते हैं। साथ ही सर्च लाइट्स, दूरबीन, हंटर शूज और एक खास जैकेट भी रखते हैं। उनके साथ एक असिस्टेंट भी रहता है। वह बताते हैं कि नरभक्षी और आम जानवर में अंतर कर पाना मुश्किल होता है। वह बताते हैं, ‘कई बार बाघ को ढूंढने में कई दिन, हफ्ते भी लग जाते हैं। वे अजीब आवाजें निकाल कर भ्रमित करते हैं। कभी बिल्ली, उल्लू या अलग आवाजें निकालते हैं।’

न वेतन, न बीमा
पीड़ित के पास मिले पंजों के निशान से पता चलता है कि मादा थी या नर, वजन और साइज क्या था। स्थानीय लोगों की मदद से उनकी स्थिति और छिपने की संभावित जगहों का पता लगाया जाता है। वह बताते हैं कि उनका काम खतरनाक और सरप्राइजेज से भरा है। उन्हें वेतन या बीमा, कार-गन कुछ भी वन विभाग से नहीं मिलता। वह इसे समाज सेवा बताते हैं और कहते हैं कि रिस्क पूरी तरह से उनका है। जॉय ने 2007 में शिकार शुरू किया था। उन्होंने ठउउ में रहते हुए बंदूक चलाना और शूटिंग सीखी।

आखिर ऐसा क्या हुआ जो उन्होंने ऐसा काम करने की ठानी?
जॉय बताते हैं कि तेंदुओं और बाघों के हमले के बाद मृतकों के शव देखकर उन पर यह असर हुआ। वह याद करते हैं कि कैसे उन्होंने 11 लोगों को मारने वाले तेंदुए को पकड़ा था। बाघ और तेंदुओं के बारे में जॉय बताते हैं कि इंसान शिकार सीखते हैं जबकि वे पैदा होते ही शिकार करना जानते हैं। वह शिकार की रेकी करते हैं और बेहद अक्लमंदी के साथ हमला करते हैं। जब गांववाले एकदम आराम से घर के बाहर होते हैं या टहल रहे होते हैं, वे उसी वक्त हमला करते हैं।