किसान आंदोलन – कौन कर रहा है साजिशों की खेती?

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संजय चतुवेर्दी

नए कृषि कानूनों के खिलाफ दो माह तक शांतिपूर्ण चले आंदोलन में 26 जनवरी गणतंत्र दिवस से हिंसा का समावेश हो गया। दिल्ली के आईटीओ ब्रिज और लालकिले में जो घटा वह पूरे देश ने देखा। जब लाख विरोध के बावजूद कोर्ट के दखल न देने से किसानों को दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च की अनुमति दे दी गई थी तब हिंसा का औचित्य रह कहां गया था लेकिन हिंसा हुई और पूरा किसान आंदोलन दो माह के संयम और अनुशासन से मिली सहानुभूति को खो बैठा। आखिर ऐसा हुआ क्यों? हिंसा से किसे फायदा और किसे नुकसान था, इन सवालों की पड़ताल करने पर यह पता करना सहज होगा कि आखिर किसान आंदोलन के बीच साजिशों की खेती कौन कर रहा है।
सरकार ने तीन कृषि बिलों को अध्यादेश के जरिये लागू किया गया, दावा किया गया कि यह कृषि कानून किसानों को चौतरफा फायदा देंगे। शुरूआती दौर में कुछ किसान संगठनों ने केन्द्र सरकार के इस कदम का स्वागत किया लेकिन जैसे जैसे कृषि कानूनों की बारीकियां सामने आईं उनसे किसान संगठन कानूनों के विरोध में उतर आए। किसानों की ओर से एक ही मांग उठी है कि यह कृषि कानून वापस लिए जाएं। दिल्ली के सिंधु बॉर्डर पर किसानों का धरना शुरू हो गया, इनमें ज्यादातर पंजाब के किसान थे। किसान आंदोलन दिल्ली के अन्य बॉर्डर पर भी शुरू हो गया, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसान आंदोलन में शामिल हो गए। इन किसानों ने कड़ाके की ठंड में जिस शांति, संयम और अनुशासन के साथ आंदोलन जारी रखा उससे किसानों को देश भर में सहानुभूति मिलना शुरू हो गई। सरकार को किसानों से चर्चा की पहल करना पड़ी, हालांकि कई दौर की बातचीत के बावजूद कोई हल नहीं निकला। सरकार सिर्फ सुधार पर अड़ी है और किसान कानूनों की वापसी पर, जाहिर है इस मामले का समाधान निकलना ही नहीं है।
किसानों के लगातार जारी आंदोलन से सरकार विचलित है, मोदी सरकार के सामने यह पहला मौका है जब उसे अपने कदम पीछे खींचने के लिए मजबूर किया जा रहा है। अब तक दृढ़ और स्थिर सरकार के रुतबे के साथ काम कर रही सरकार के लिए कदम पीछे खींचने का मतलब होगा कि अपनी अभी तक की छवि को अपने ही हाथों नुकसान पहुंचाना, इसी से बचने के लिए सरकार भी जिद पर अड़ी है और जो फायदे खुद किसान नहीं चाहते वह उन्हें देने पर तुली है। किसान संगठनों के बीच फूट डालने के प्रयास भी हुए, नये नये किसान संगठनों को कृषि कानूनों के पक्ष में सामने लाया गया लेकिन आंदोलन की निरन्तरता और किसानों की एकजुटता के आगे यह प्रयास बेकार ही गये।
किसानों ने जब गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च का ऐलान किया तो यह एक मौके की तरह लिया गया। पहले तो किसानों को ट्रेक्टर मार्च से रोकने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया लेकिन कोर्ट ने दखल से इंकार कर दिया तो किसानों को मार्च की अनुमति मिल गई। ट्रेक्टर मार्च का समय और रूट भी तय हो गया, लगा कि अब तक की तरह शांतिपूर्ण चले धरना आंदोलन की तरह यह शक्ति प्रदर्शन भी शांतिपूर्ण निपट जाएगा। किसानों को यह भनक भी नहीं लग सकी कि वह रास्ते में साजिश का शिकार हो सकते हैं। दिल्ली में घुसा ट्रेक्टर मार्च अपने रूट से अलग आईटीओ ब्रिज और लालकिले तक जा पहुंचा। इन दोनों जगहों पर हिंसा हुई, जवान और किसान एक दूसरे पर प्रहार कर ऐन गणतंत्र दिवस के अवसर पर लहुलुहान हुए।

मार्च में आगे चल रही ट्रेक्टर ट्रालियों का अनुसरण करते हुए आईटीओ ब्रिज और लाल किले पहुंचे किसानों ने वहां जो हंगामा होते देखा, उन्हें समझते देर नहीं लगी कि वह साजिश का शिकार हो चुके हैं। लाल किले पर इसके साथ ट्रेक्टरों ने यू टर्न ले लिया, रास्ते के ट्रेक्टर भी वापस लौट गये इससे जो ट्रेक्टर मार्च दो दिन लगा कर पूरा होना था वह महज चार घंटे के भीतर दिल्ली से बाहर हो गया। हिंसा के बावजूद दिल्ली के लोगों के साथ कहीं कोई बदसलूकी और लूटपाट नहीं हुई। किसानों के लौट जाने के बाद किसान नेताओं के खिलाफ दिल्ली के थानों में एफआईआर दर्ज होना शुरू हुआ, तमाम किसान नेता जो लाल किला पहुंचे भी नहीं थे आरोपी बना लिए गये लेकिन लाल किले पर नजर आए दीप संधु पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। न्यूज चैनलों पर हंगामा देख रहे देश के लिए यह हैरानी की बात थी। गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले पर हुई हिंसा के बाद किसान आंदोलन के साथ हिंसा जुड़ गई, पहले पुलिस की घेराबंदी कर किसानों को खदेड़ने का इंतजाम किया गया, पुलिस प्रशासन को भरोसा था कि लालकिले पर हुई घटना के बाद पुलिस के इस कदम को समर्थन ही मिलेगा लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत भावुक होकर रो दिए तो लगभग खत्म होने की ओर बढ़ चले किसान आंदोलन में नया उबाल आ गया। हरियाणा, उत्तर प्रदेश में किसान पंचायतों ने दिल्ली कूच का निर्णय लिया तो पुलिस को बैरंग लौटना पड़ा। पुलिस के हाथ यह नाकामी लगी तो लोकल, वोकल हो गये और उन्होंने पुलिस की मौजूदगी के बावजूद किसानों पर पथराव किया, पुलिस ने आंसू गैस छोड़कर हालात पर भले काबू पा लिया लेकिन यह बात साफ कर दी कि किसानों के आंदोलन को समाप्त करने के लिए अब हथकंडे अपनाना शुरू हो गया है। यह लोग कौन है, किसके इशारे पर वह साजिशें बो रहे हैं यह सब देश के सामने आता जा रहा है। लेकिन साजिशों की यह खेती किसी के लिए शुभ नहीं है.. सरकार को यह समझना होगा, उसे लोकतंत्र की जिस खूबी से सत्ता हासिल हुई है उसे बनाए रखना भी उसी की जिम्मेदारी है।