क्षितिज: घिरा अवसाद में हूँ जो, मिरा एक दोस्त आएगा

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घिरा अवसाद में हूँ जो, मिरा एक दोस्त आएगा,
लगाकर के गले दिल से, मुझे फिर वो बचाएगा।
गिरूँ जो बज़्म में मैं तो, उठाना तुम नहीं मुझको,
मुझे तो आज महफ़िल में, सुख़न मेरा उठाएगा।
सफ़ीने को जो उसकी इक, दरिया ने डुबोया था,
समंदर को वो माझी आज, सुन सहरा बनाएगा।
ज़माने ने अभी मुझको, सिरे से जो नकारा है,
मिरी लिक्खी ग़ज़ल को कल, यही सबको सुनायेगा।
सुना ले जा रहा माँ-बाप, शानों पर बिठा कर के,
वो श्रवण आज का है, वो चारों धाम दिखायेगा।
जिसे अबला समझ कर कल, भरे बाज़ार मारा था,
वही तेज़ाब बन के आज सुन तुझको जलाएगा।
पढ़ा ‘ग़ालिब’ को है तुमने, पढ़ा ‘राहत’ को भी तुमने,
कभी इक दौर आएगा, पढ़ा ‘इकराश़’ जाएगा।
© इकराश़
क्षितिज…व्येर ड्रीम्स मीट रिएलिटी एक संस्था है जो श्रीमती रंजीता अशेष एवं युवा कवियों ने मिलकर शुरू किया है कवियों को आम जनता तक पहुँचाने के मकसद से।