भोपाल में कौन जीतेगा, सब जानने को हैं उत्सुक

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रंजन श्रीवास्तव

मध्य प्रदेश और अन्य प्रदेशों से कई मित्रों ने भोपाल में 12 तारीख को पोलिंग के बाद फोन किया। अभी तक फोन आ रहे हैं। सबकी उत्सुकता ये जानने में थी और है कि भोपाल में कौन जीतेगा। यह स्वाभाविक भी है। प्रज्ञा ठाकुर के भाजपा के टिकट पर नॉमिनेशन के बाद भोपाल का चुनाव पूरे देश में हाई प्रोफाइल चुनाव हो गया। दूसरी तरफ कांग्रेस के दिग्गज दिग्गी राजा। पोलिंग होने तक लग रहा था कि दोनों के बीच अच्छी टक्कर है इस बात के बावजूद कि भोपाल पिछले तीस सालों से भाजपा प्रत्याशियों को चुन रही है और अब विदिशा, इंदौर, दमोह इत्यादि सीट की तरह भोपाल भाजपा के किले में परिवर्तित हो चुकी है। कारण ये था कि दिग्विजय सिंह ने हिंदुत्व और हिन्दू टेरर के मुद्दे पर नहीं फंसते हुए विकास के मुद्दे पर अपने कैंपेन को फोकस्ड रखा और सॉफ्ट हिंदुत्व के जहाज में खुद सवार होकर भरपूर कोशिश किया कि वोटर्स हिन्दू और मुस्लिम में ना बटें। हर मीटिंग में नर्मदे हर बोलना और कैंपेन के दौरान रोजाना कई मंदिरों में जाना तथा धमार्चार्यों से आशीर्वाद लेना उनकी रणनीति का ही हिस्सा था।

उन्होंने पूरी कोशिश की कि उनके कहे हुए शब्द कोई कंट्रोवर्सी ना पैदा करें। और एक्का दुक्का अवसरों को छोड़कर जैसे ‘ हिंदुत्व मेरी डिक्शनरी में नहीं है ‘ वो इसमें सफल भी रहे। प्रज्ञा ठाकुर के नॉमिनेशन के लगभग 24 दिन पहले उनके नाम का ऐलान कांग्रेस पार्टी भोपाल सीट पर अपने उम्मीदवार के तौर पर कर चुकी थी। इसलिए प्रचार के तौर पर भी से अपने निकटतम प्रतिद्वंदी से बहुत आगे थे। उनका चुनाव प्रचार भी बहुत सधा हुआ और आॅर्गनाइज्ड था।
दिग्विजय सिंह ने पहले दिन से ही विकास को ही मुद्दा बनाया। यहां तक कि भोपाल में कांग्रेस के प्रमुख मुस्लिम नेताओं को हिन्दू बहुल क्षेत्रों में इलेक्शन मीटिंग से दूर रखा गया।

जबकि मालेगांव बॉम्ब ब्लास्ट की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर ने उनके ऊपर जेल में हुए कथित अत्याचार को और कांग्रेस द्वारा कथित रूप से उछाले गए हिन्दू टेरर को अपना चुनाव हथियार बनाया। उनको 72 घंटे का बैन भी फेस करना पड़ा। खैर, पोलिंग पैटर्न ये बताता है कि राजा आफ राघौगढ़ के लिए भोपाल अंतत: वॉटरलू साबित हुआ क्योंकि उनका चुनाव जीतना संभव नहीं दिखता। कारण ये है कि जहां से उन्हें अच्छे वोट की उम्मीद थी वहां पोलिंग परसेंटेज इतना अच्छा नहीं हुआ जितना होना चाहिए था जबकि भाजपा के गढ़ में अच्छी वोटिंग हुई एक दो विधान सभा क्षेत्र छोड़कर। भोपाल में एक कंजरवेटिव असेसमेंट से लगभग 4 लाख मुस्लिम मतदाता हैं। उसके बाद लगभग 2 लाख कायस्थ मतदाता।

कांग्रेस के लिए मुस्लिम मतदाता एक बड़ा आधार था। अगर साथ में कायस्थ वोट भी आ जाता तो एक बड़ा बेस चुनाव जीतने के लिए बन जाता। पर भोपाल उत्तर (66.65%), भोपाल मध्य (59.55%) से मुस्लिम वोटर्स उस संख्या में बाहर नहीं निकले जिसकी कांग्रेस उम्मीदवार को उम्मीद थी नहीं तो पोलिंग परसेंटेज कहीं ज्यादा होता। भोपाल उत्तर के कांग्रेस विधायक एवं मंत्री आरिफ अकील तथा भोपाल मध्य के कांग्रेस विधायक एवं मुस्लिम नेता आरिफ मसूद अपने क्षेत्रों से दिग्गी राजा को एक अच्छी बढ़त दिलाने में नाकाम रहे। इसी तरह भोपाल दक्षिण पश्चिम से भी दिग्गी राजा को काफी उम्मीद थी पर स्थानीय कांग्रेस विधायक तथा मंत्री पीसी शर्मा के चुनाव प्रचार के बाद भी पोलिंग 60% भी नहीं पहुंच पाया।

खैर, ये जिम्मेदारी स्थानीय कांग्रेस विधायकों के अतिरिक्त पूरी पार्टी की थी। पर कारण चाहे रमजान का महीना रहा हो या दिग्गी राजा का अतिशय हिन्दू धर्मांचार्य और मंदिर प्रेम मुस्लिम मतदाताओं की एक बड़ी या निर्णायक संख्या पोलिंग बूथ से दूर रही। कायस्थ नेताओं जैसे अनिल शास्त्री, शत्रुघ्न सिन्हा तथा यशवंत सिन्हा को प्रचार के अंतिम दौर में बुलाकर कायस्थों के बीच आलोक संजर के टिकट काटने से हुई नाराजगी को भुनाने का प्रयास किया गया। पर कायस्थ इस कारण बड़ी संख्या में कांग्रेस को वोट दिए हों ऐसा कोई फीडबैक नहीं मिला।

वैसे भाजपा भी अपने गढ़ गोविंदपुरा में कम मतदान से चिंतित हुई। पर बैरसिया (76.02%) और सीहोर (76.83%) में हुए भारी मतदान ने और हुजूर (67.41%) और नरेला (64.87%) में हुए 60% से ज्यादा मतदान ने भाजपा को खुश होने का एक और मौका दे दिया। जैसा कि मुख्यमंत्री कमल नाथ ने दिग्गी राजा को कठिन सीट से चुनाव लड़ने की बात की थी भोपाल उनके लिए वाकई एक कठिन सीट सिद्ध हुआ इस बात के बावजूद कि भाजपा लीडर्स, वर्कर्स और वोटर्स का एक वर्ग ऐसा भी था जो प्रज्ञा ठाकुर को कैंडिडेट घोषित करने से भाजपा से नाराज था तथा आरएसएस से भी भोपाल को अपनी लैबोरेटरी बनाने से नाराज था। दिग्विजय सिंह को हारने से नागपुर में अत्यंत उल्लास का वातावरण बनेगा क्योंकि आरएसएस के सबसे बड़े विरोधियों में दिग्गीराजा सबसे आगे रहे हैं। पर ये जीत भाजपा की नहीं होगी और ना प्रज्ञा ठाकुर की। यह उस कमल के फूल कि जीत है जिसपर सवार होकर भोपाल, विदिशा जैसी सीट पर कोई भी उम्मीदवार जीत जाता है।

कांग्रेस लीडरशिप का दिग्विजय सिंह को भोपाल से लड़ाने का निर्णय बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं माना जा सकता जबकि उसे पूरे देश में एक बहुत बड़ी जीत की जरूरत है। पर यह भी सत्य है कि उक्त निर्णय ने भोपाल की लड़ाई को वाकई टफ बनाया।
वरना पहले के कई चुनाव तो एकतरफा थे। पर जब खेल का मैदान और पिच विरोधियों के घर में हो और मोदी वेव (६ं५ी) की हवा भी विरोधी बोलर्स की मदद कर रही हो ऐसे में बहुत से वोटर्स की सहानुभूति दिग्गी राजा के पक्ष में होगी चुनाव परिणाम के बाद।

– फेसबुक वाल से