ग्वालियर। मध्यप्रदेश के सियासी संग्राम में मैदान मारने के लिये सभी दलों ने ताकत झोंक दी है. खासकर बीजेपी-कांग्रेस ने इस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. दोनों दल जनता को लुभाने के लिए स्टार प्रचारकों-दिगग्जों की फौज भी मैदान में उतार चुके हैं, लेकिन ग्वालियर-चंबल अंचल में बीजेपी के कुछ स्टार प्रचारक चाहकर भी अपनों के लिए वोट नहीं मांग पा रहे क्योंकि इस बार उन्हें शायद खुद की हार का डर सता रहा है.
Madhya Pradesh assembly elections: fear of losing themselves, veterans, not wanting to get votes for themselves
दरअसल, सूबे के सियासी रण में रणबांकुरे हुंकार भर रहे हैं, जिनका हौसला बढ़ाने और वोटरों को रिझाने की जिम्मेदारी बीजेपी ने स्टार प्रचारकों को सौंपी है. बीजेपी के स्टार प्रचारकों की सूची में ग्वालियर-चंबल अंचल से प्रदेश सरकार में मंत्री जयभान सिंह पवैया, नरोत्तम मिश्रा, यशोधरा राजे सिंधिया, लाल सिंह आर्य, माया सिंह और सांसद अनूप मिश्रा को जगह मिली है, लेकिन इन नेताओं को अपनी सीट बचाने के लाले पड़े हैं, ऐसे में भला वह किस-किस के लिये वोट मांगें.
एससी-एसटी एक्ट बीजेपी के लिये बना सियासी कांटा
इस चुनाव में एससी-एसटी एक्ट बीजेपी के लिये सियासी कांटा साबित हो रहा है. जिसकी समीक्षा के विरोध में दो अप्रैल को भड़के आंदोलन की आग का असर ग्वालियर चंबल अंचल में सबसे अधिक दिखा था, उस वक्त इस संभाग में कई लोगों की मौत हुई थी और जब केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया, तब भी इसी क्षेत्र में भारत बंद के दौरान सबसे अधिक विरोध देखा गया था. जिससे उन्हें इस बार हार का डर सता रहा है.
एससी-एसटी एक्ट में संसोधन कर फंसी बीजेपी
अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को साधने के लिये सत्तारूढ़ बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक अध्यादेश के जरिए पलट दिया, लेकिन उसका ये दांव उल्टा पड़़ गया क्योंकि अनुसूचित वर्ग को साधने के चक्कर में सामान्य और ओबीसी वर्ग की नारजगी मुफ्त में मिल गयी. जिसके बाद सवर्णों ने सपाक्स नाम से पार्टी का गठन कर बीजेपी के खिलाफ मैदान में आ गयी. खास बात ये है कि आंदोलन के समय यहां के दिग्गज नेताओं को भारी विरोध का सामना करना पड़ा था. यही वो वजह रही कि कुछ दिन तक बीजेपी के स्थानीय विधायक-मंत्री अपने क्षेत्र में कदम नहीं रख सके.