मप्र स्थापना दिवस: राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राहुल गांधी ने प्रदेश के स्थापना दिवस पर दी बधाई

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  • भारत का दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश का 1 नवम्बर, 1956 को गठन हुआ था
  • मध्यप्रदेश को अपने राजसी स्मारकों और प्रसिद्द इतिहास के लिए भी जाना जाता हैं
  • प्रदेश के गठन के साथ हुआ था इंदौर को राजधानी बनाने का फैसला, पर नेहरू और डॉ. शर्मा भोपाल का मन बना चुके थे
  • टाइगर स्टेट के नाम से भी जाना जाता है हमारा मध्य प्रदेश, अभी यहां हैं 526 से अधिक बाघ
  • एक आदेश पर स्कूलों में पढ़ाया जाने लगा था ग से गणेश की जगह ग से गधा

TIO भोपाल

मध्यप्रदेश 1 नवंबर 2019 को 64वां स्थापना दिवस मना रहा है। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के स्थापना दिवस के मौके प्रदेशवासियों को बधाई दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश के लोगों को शुभकामनाएं देते हुए कहा, ‘मध्य प्रदेश के स्थापना दिवस पर राज्य के निवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। मैं कामना करता हूं कि प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण और सांस्कृतिक विरासत से समृद्ध यह प्रदेश निरंतर प्रगति और विकास की राह पर आगे बढ़े।’

मध्यप्रदेश के गठन के बाद डॉ. शंकर दयाल शर्मा को शिक्षामंत्री बनाया गया। इसके बाद 1968 में मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र ने अपने मंत्रीमंडल में उद्योग मंत्री बनाया। डॉ. शंकर दयाल शर्मा के शिक्षामंत्री के कार्यकाल में ही प्रदेश के स्कूलों में ग से गणेश की जगह गधा पढ़ाया जाने लगा। इससे पहले नवाबी शासन काल में भोपाल रियासत सहित विंध्य और ग्वालियर रियासत में भी ग से गणेश पढ़ाया जाता था। हिंदी वर्णमाला के अन्य अक्षर भी हिंदु देवी देवताओं के नाम से पढ़ाए जाते थे।

एक राज्य के दृष्टिकोण से 64वां वर्ष पूरे जोश और ऊर्जा का प्रतीक भी कहा जा सकता है। तेजी से बदलते वक्त के साथ विकास की दौड़ में बने रहने के साथ आगे निकलना भी जरूरी है।

यही माद्दा आगे बढ़ने का स्रोत भी है। बेशक, राह में चुनौतियां भी हैं लेकिन हाल में मप्र ने कई क्षेत्रों में जो उपलब्धियां हासिल की हैं, उनसे यह आशा की जा सकती है कि राज्य और उसके निवासियों का कल बेहतर ही होगा। इन क्षेत्रों की सीमाएं कृषि से लेकर आईटी तक और स्वच्छता से लेकर पर्यटन तक विस्तारित हैं। मप्र के स्थापना दिवस पर प्रस्तुत है..कुछ ऐसे ही क्षेत्रों की संभावनाओं की पड़ताल

औद्योगिक विकास की नींव रखी, डेढ़-दो साल में नजर आने लगेगी इमारत

मध्य प्रदेश की दशा और दिशा बदलने के लिए औद्योगिक विकास को मूलमंत्र बनाया गया है। उद्योग जगत का भरोसा जीतने और दोस्ताना माहौल बनाने के लिए नीति और योजना में बदलाव करके जो नींव रखी गई है, उस पर डेढ़-दो साल में इमारत भी नजर आने लगेगी।

उद्योगों को महंगी बिजली से राहत दिलाने की बात हो या फिर जमीन अधिग्रहण के झंझट से मुक्ति दिलाने का मुद्दा, नीतिगत बदलावों ने यह जता दिया है कि अब प्रदेश औद्योगिकीकरण के लिए ऊंची छलांग लगाने के लिए तैयार है।

प्रदेश में अभी तक फोकस सामाजिक और कृषि क्षेत्र पर ज्यादा रहा है। नीति और योजनाएं भी इन्हीं से जुड़े मुद्दों के ईद-गिर्द केंद्रित रही हैं लेकिन इसके बाद यह भी महसूस किया जा रहा है कि सामाजिक और कृषि क्षेत्र में काम करने के लिए जरूरी वित्तीय संसाधन तभी उपलब्ध हो पाएंगे, जब औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दिया जाए।

उद्योगों की सबसे बड़ी जरूरत जमीन है। अधिग्रहण के प्रावधान जटिल होने की वजह से सरकार ने लैंड पुलिंग योजना बनाई है। इसमें यह प्रावधान किया गया है कि जिस व्यक्ति की जमीन होगी, उससे जमीन लेकर विकसित भूखंड और एक निश्चित राशि दी जाएगी।

उद्योग नीति का दूसरा पहलू यह भी है इसे रोजगार से जोड़ा गया है। उद्योगों के लिए स्थानीय स्तर पर 70 फीसदी लोगों को रोजगार देना अनिवार्य कर दिया है। सीमेंट सहित अन्य उद्योगों में परिवहन के लिए जो ट्रक आदि वाहन लगेंगे, वे मध्यप्रदेश के होंगे। इससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार के अवसर बनेंगे।

इतना ही नहीं सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम नीति 2019 में निवेश प्रोत्साहन को आकर्षक बनाया गया है। अनुसूचित जाति-जनजाति के साथ महिलाओं को उद्यमी बनाने कई सुविधाएं दी गई हैं। निवेश के लिए परंपरागत क्षेत्रों के अलावा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, लॉजिस्टिक, खाद्य प्रसंस्करण, वस्त्र उद्योग पर फोकस किया जा रहा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में इन प्रयासों के दूरगामी परिणाम होंगे।

बेंगलुरू, हैदराबाद, पुणे के बाद इंदौर को आईटी इंडस्ट्री के लिहाज से सबसे ज्यादा संभावनाओं वाला शहर कहा जा रहा है। प्रदेश का पहला और सफल क्रिस्टल आईटी पार्क इंदौर में है। पार्क में 14 कंपनियां काम कर रही हैं जो पूरी तरह अपने उत्पाद और सेवाओं को विदेशों में निर्यात कर रही हैं।

सेज के दर्जे वाले क्रिस्टल आईटी पार्क के बाद दूसरा आईटी पार्क ‘अतुल्य” भी शुरू हो चुका है। सालभर पहले बने इस दूसरे आईटी पार्क में 27 आईटी या आईटी आधारित कंपनियां काम कर रही हैं। इसी बीच एमपीआईडीसी के बनाए तीसरे आईटी पार्क का उद्घाटन भी बीते महीने मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किया। दोनों मौजूदा आईटी पार्क के पास जल्द ही एक और आईटी पार्क भी खड़ा होगा।

छह एकड़ जमीन पर बनने वाले तीसरे आईटी पार्क के साथ ही पहली बार प्रदेश के किसी शहर में ‘आईटी पार्कों का संकुल” बन जाएगा। आईटी पार्क के बनने से पहले ही शहर ने आईटी सेक्टर में सफलता की और कदम बढ़ा दिए थे। इंदौर में पैदा हुई कम से कम पांच आईटी कंपनियां ऐसी हैं जो अब ग्लोबल ब्रांड बन चुकी है। इम्पेट्स से लेकर डीएक्ससी, यश टेक्नोलॉजी, इंफोबींस या डायस्पार्क। टीसीएस और इंफोसिस के आने से पहले ही इंदौर से शुरूआत कर ये कंपनियां ग्लोबल ब्रांड बन चुकी थीं।

पूरे मप्र की 70 फीसदी आईटी कंपनियां इंदौर में काम कर रही हैं। शहर की कंपनी इंफोबींस ने बीते दिनों अमेरिका की 10 मिलियन डॉलर वाली आईटी कंपनी का अधिग्रहण कर उपलब्धि हासिल की है। इंदौर शहर की आईटी कंपनियों का कारोबार 3000 हजार करोड़ रुपए सालाना के पार पहुंच चुका है। उम्मीद जताई जा रही है अगले दो वर्षों में ये आंकड़ा और बढ़ेगा।

देश के दिल की धड़कन बना ‘टाइगर”
भोपाल (स्टेट ब्यूरो)। ‘टाइगर” यानी बाघ एक बार फिर देश के दिल (मध्यप्रदेश) की धड़कन बन गया। प्रदेश ने महज आठ सालों में टाइगर स्टेट का खोया रुतबा हासिल कर लिया और यह संभव हुआ है बाघों की सुरक्षा को लेकर उठाए गए कड़े कदमों से। अब यही तमगा सरकार के खाली खजाने को भरने में सहयोग करेगा। दरअसल, इसी उपलब्धि को लेकर राज्य सरकार प्रदेश में पर्यटन बढ़ाने पर फोकस कर रही है। 10 नए अभयारण्य प्रस्तावित हैं और देश के अलावा विदेशी पर्यटकों को लुभाने की कोशिश की जा रही है। यही कारण है कि वन विभाग ने पार्कों में देशी और विदेशी पर्यटकों के बीच फीस के अंतर को खत्म कर दिया है।

महज चार साल में 218 बाघ बढ़ना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। वर्ष 2014 की गणना के मुताबिक प्रदेश में 308 बाघ थे, जो 2018 की गणना में बढ़कर 526 हो गए हैं। आर्थिक तंगी से जूझ रही राज्य सरकार की नैया को बाघ भी सहारा दे सकते हैं। सरकार पर्यटन पर विशेष ध्यान दे रही है। खासकर वन्यजीव पर्यटन को बढ़ाने के लिए सरकार संरक्षित क्षेत्रों के आसपास रेस्त्रां, होटल खोलने में उद्योगपतियों को छूट दे रही है। इसे लेकर नई नीतियां लाई जा रही हैं। पर्यटन बढ़ने से प्रदेश के आर्थिक हालात सुधरने के साथ ही युवाओं के लिए रोजगार के साधन तैयार किए जा सकते हैं। संरक्षित क्षेत्रों में सहूलियतें मिलेंगी, तो पर्यटक आएंगे, होटलें खुलेंगी, पर्यटकों को घुमाने और होटलों में युवाओं को रोजगार मिलेगा।

स्वास्थ्य सुविधाओं में अपने पैरों पर खड़ा हो रहा मप्र
भोपाल। मध्यप्रदेश ने स्थापना के बाद से स्वास्थ्य व चिकित्सा के क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल की हैं। डॉक्टरों की नई पौध तैयार करने की बात हो या फिर अस्पतालों में बिस्तर व अन्य सुविधाएं बढ़ाने की। इलाज व जांच की नई तकनीकों से लेकर स्वास्थ्य के क्षेत्र नवाचारों में मध्यप्रदेश अग्रणी राज्यों की श्रेणी में आ रहा है। सुपर स्पेशलिटी अस्पताल शुरू होने के बाद प्रदेश के लोगों को इलाज के लिए दिल्ली-मुंबई नहीं जाना होगा। शुरू में यहां पर चार सरकारी मेडिकल कॉलेज- इंदौर, भोपाल, ग्वालियर व जबलपुर में थे। इसके बाद रीवा में मेडिकल कॉलेज बना। शुरू के चार सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की 140 सीटें ही थीं। 2007 में सागर में सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरू हुआ। दो साल पहले मप्र के छह सरकारी कॉलेजों में एमबीबीएस की 800 व बीडीएस की 50 सीटें सीटें थीं। 2018-19 में 1350 सीटें और 2019-20 में 1920 सीटें हो गईं। 2020-21 में 2276 और 2021-22 में 2951 सीटें करने का लक्ष्य है। ये सीटें मौजूदा 13 सरकारी मेडिकल कॉलेज व एक डेंटल कॉलेज के साथ प्रस्तावित तीन नए मेडिकल व एक डेंटल कॉलेज में बढ़ेंगी। इसके अलावा भारत सरकार के सहयोग से 11 नए मेडिकल कॉलेज खुलने जा रहे हैं। इनके खुलने से एमबीबीएस की सीटें 1100 से 1900 तक और बढ़ जाएंगी।

ये सुपर स्पेशियलिटी सेवाएं शुरू होंगी

सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल- ग्वालियर, जबलपुर, रीवा, इंदौर व छिंदवाड़ा मेडिकल कॉलेज
– सुपर स्पेशियलिटी कार्डियक सेंटर छिंदवाड़ा
स्कूल ऑफ एक्सीलेंस, पल्मोनरी (श्वसन रोग) व न्यूरोलॉजी, जबलपुर
-स्कूल ऑफ एक्सीलेंस ऑप्थैलमोलॉजी (नेत्र रोग), इंदौर
-स्कूल ऑफ एक्सीलेंस रेस्पेरेटरी मेडिसिन, भोपाल, इंदौर,ग्वालियर, छिंदवाड़ा व सागर।

मध्य भारत के विघटन और मध्यप्रदेश के गठन के बाद राजधानी की दौड़ में इंदौर भी शामिल था, लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि इंदौर और ग्वालियर के बजाय भोपाल राजधानी बना। मप्र के स्थापना दिवस के मौके पर इन घटनाओं के साक्षी रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने भास्कर से साझा किया तब का पूरा घटनाक्रम।
कारण 1. इंदौर स्टेट का केंद्र सरकार में छह महीने बाद विलय हुआ, इसलिए यह राजधानी बनते-बनते रह गया
देश को आजादी मिली तो स्वतंत्रता एक्ट के तहत केंद्र सरकार ने 562 रियासतों के विलय की कार्रवाई शुरू की। सरदार वल्लभभाई पटेल ने सबको इसका संदेश भेजा। मध्य भारत बना तो ग्वालियर ने इंस्टूमेंट ऑफ एक्सेशन (स्टेट का केंद्र में विलय) पर हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन इंदौर ने नहीं किए। इंदौर ने यह काम 6 महीने बाद किया। यही कारण रहा कि यूनियन ऑफ इंडिया में थोड़ी देरी से मिलने से इंदौर का महत्व कम रहा, जबकि रियासतों के प्रतिनिधि इसे राजधानी बनाने का प्रस्ताव दे चुके थे। केंद्र में विलय के प्रस्ताव पर पहले हस्ताक्षर करने के कारण ही मध्य भारत स्टेट में ग्वालियर से राजप्रमुख बन गए और इंदौर को उप राजप्रमुख बनाकर संतोष करना पड़ा। इंदौर को राजधानी बनाने के लिए प्रजामंडल कांग्रेस से सभी प्रतिनिधि गए थे। मैं उस समय जावरा के पास पिपलोदा स्टेट कांग्रेस का अध्यक्ष था। वहां हम सभी प्रतिनिधियों ने कहा भी तो यही तर्क दिया कि इंदौर यूनियन में देरी से शामिल हुआ है। – टीएन नांदेचा (98 वर्ष), स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

कारण 2.  इंदौर पर एक मत से फैसला हुआ था, लेकिन प्रस्ताव को ही दरकिनार कर दिया गया
1956 तक इंदौर मध्य भारत की राजधानी था। यशवंत राव होलकर द्वितीय और जीवाजी राव सिंधिया के बीच सहमति से 1950 से 56 तक हर छह महीने में इंदौर और ग्वालियर राजधानी बनते थे। इसी बीच कांग्रेस का प्रादेशिक अधिवेशन इंदौर में हुआ। गांधी भवन में हुए इस अधिवेशन में तखतमल जैन, रामसहाय जी, ग्वालियर के गौतम शर्मा, गुना के सागर सिंह, कन्हैयालाल खादीवाला, बाबूलाल पाटोदी भी शामिल हुए। अधिवेशन में एक मत से यह फैसला किया कि इंदौर को राजधानी बनाया जाए। प्रस्ताव पारित कर यह सूचना जब दिल्ली में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी को दी गई तो जवाहरलाल नेहरू और डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने इसे दरकिनार कर दिया। वे भोपाल के लिए
सहमत थे।  – माणकचंद मारू (96 वर्ष), स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

इंदौर के दावे से ग्वालियर को भी नहीं बनाया गया
1956 तक इंदौर- ग्वालियर 6-6 माह के लिए राजधानी बनते थे। प्रदेश का गठन हुआ तो इंदौर ने पक्ष रखा भी, पर भौगोलिक स्थिति के हिसाब से भोपाल ज्यादा बीच में था। इंदौर के दावे के कारण ग्वालियर को भी राजधानी नहीं बनाया गया। – सत्यनारायण सत्तन (79 वर्ष), राष्ट्र कवि, भाजपा नेता