मध्यप्रदेश…मुसीबत में कमल, किसान और मिडिल क्लास

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राघवेंद्र सिंह

राजनीति के धागे दिन पर दिन उलझते जा रहे हैं। जितना सुलझाओ गुत्थी का सिरा ढूंढ़ना उतना कठिन हो रहा है। हालात ऐसे हैं कि सियासत के पंडित शीर्षासन करें तब भी न तो हल दिखाई पड़ रहा है और न बाहर निकलने का रास्ता दिखाई पड़ रहा है। दिखने को सब शांत है मगर मुसीबत में सब नजर आते हैं। हैरानी परेशानी की सुई मोदी सरकार के निर्मला बजट से होती हुई कमलनाथ सरकार,किसान और मध्यम वर्ग पर आकर टिक गई है। कर्नाटक की कुमार स्वामी सरकार के 11 विधायकों के इस्तीफे की खबर के साथ प्रदेश की कमल सरकार पर भी संकट की घटाएं सूबे के भाजपाई नेता बरसने की आस लगाए हैं।

इसी तरह निर्मला के रीते बजट के बाद अब किसान और मध्यम वर्ग कार्पोरेट मास्टर कमलनाथ से उम्मीद लगाए हुए हैं। हालांकि यहां भी बजट के मामले में झोली खाली है। या कह सकते हैं यहां कर्ज लो और घी पियो का कल्चर सरकार को फकीर बनाए हुए है।

मोदी सरकार के बजट के मामले में हम पहले भी मध्यम वर्ग की अनदेखी का जिक्र कर चुके हैं। पाठक माई बापों को याद होगा वित्तमंत्री के रूप में अरुण जेटली का पहला बजट भाषण। इसमें जेटली ने कहा था देश का मिडिल क्लास सरकार के भरोसे न रहे। इस बेरुखी को उन्होंने पूरे पांच साल निभाया भी। फिर चुनाव हुए भोले मध्यम वर्ग ने अपने वोटों से एक दफा फिर भाजपा और मोदी की झोली 303 लोकसभा सीटें दिलाकर भर दी। जेटली की जगह निर्मला सीतारमण आईं लोगों को उम्मीद थी महिला हैं थोड़ी नरम दिल होंगी लेकिन मध्यम वर्ग के लिए न तो ममता नजर आई और न उदारता। अब सबका ध्यान कमल सरकार के तरुण मंत्री भनोट पर टिका हुआ है। मिडिल क्लास को सरकारी शिक्षा में उच्च गुणवत्ता की दरकार है और इसी तरह इलाज के लिए शासकीय अस्पतालों में डाक्टरों के साथ अच्छी दवाओं की जरूरत है।

लेखक IND24 के प्रबंध संपादक हैं