विभागों के बंटवारों को लेकर माथापच्ची जारी

0
225

TIO भोपाल

अब मप्र में मंत्रियों के विभागों के बंटवारों को लेकर माथापच्ची जारी है। किसी तरह शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार तो हो गया लेकिन अब मंत्रियों के विभागों का बंटवारा करना पहले जैसे नहीं रह गया कि हाईकमान के आदेश के हिसाब से सभी मंत्रियों को विभाग बंट जाते थे अब सिंधिया खेमा अपनी पसंद के विभाग मांग रहा है।

पूरे सौ दिन बाद मंत्रिमंडल विस्तार से एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विष अपने हिस्से होने की पीड़ा जताई थी। लोग जितने हैरान थे, उतने ही इसके निहितार्थ भी थे, लेकिन अमृत पर कयास ज्यादा चौंकाते हैं। आकलन से दूर ये खुद भाजपा संगठन के खाते में गया। सिंधिया खेमा तो सिर्फ सरकार में भागीदार बना है।

अब मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय, जातिगत और क्षत्रपों के समर्थकों के असंतुलन से उपजा विष मुखिया होने के नाते शिवराज के गले ही उतरता रहेगा। इस विस्तार ने मंत्रिमंडल के आकार के साथ प्रकार में बड़ा बदलाव किया है। ये तीन प्रकार का हो गया। शिवराज के करीबी, सिंधिया खेमा और तीसरा है भाजपा और कांग्रेस से आए वे पूर्व विधायक, जो सिंधिया के साथी नहीं माने जाते हैं।

इसमें सबसे कम संख्या शिवराज के करीबियों की है। जिनमें भूपेंद्र सिंह, विजय शाह, अरविंद भदौरिया और विश्वास सारंग ही हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया तो कमल नाथ सरकार में भी अपने मंत्रियों की अलग से बैठक करते थे, जो इस सरकार में भी जारी रह सकती है। ऐसे में सरकार की संतुलित गति चमत्कार से कम न होगी।

दरअसल, ज्योतिरादित्य सिंधिया का साथ लेकर भाजपा संगठन ने मप्र में वापसी तो कर ली, लेकिन संतुलन बिठाने की कोशिश में सत्ता का दूसरा सिरा यानी सरकार का मुखिया भारी असंतुलन की चुनौती से घिरता जा रहा है।

मंत्रिमंडल पर नजर डालें तो 34 में से 20 भाजपा के पुराने साथी हैं, जबकि 14 नए साथी हैं, जो सिंधिया के साथ आए हैं। ये मंत्रिमंडल गठबंधन के आगे की राजनीति की राह दिखाता है। यदि इसमें सफलता मिली तो दो दलों के गठबंधन के बजाय एक ही पार्टी में दो या इससे अधिक खेमों में संतुलन साधकर सरकारें चलाने का नया राजनीतिक दौर शुरू हो सकता है, लेकिन इस सरकार की मुश्किलें जातिगत समीकरणों को साधने में हुई चूक से भी बढ़ सकती हैं।

भाजपा के अनुसूचित जाति-जनजाति (एससीएसटी) नेताओं की बजाय इसी वर्ग के सिंधिया के साथ आए नेताओं को तवज्जाो मिली है। उधर विंध्य की नाराजगी भी ब्राह्मण वोट प्रभावित कर सकती है। 2018 में यहां की 30 में से 24 सीटें भाजपा जीतकर आई थी, लेकिन कैबिनेट में प्रतिनिधित्व दो को ही मिला। भाजपा को ध्यान रखना होगा कि ग्वालियर-चंबल संभाग ने कांग्रेस को सत्ता दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई, लेकिन उपेक्षा की कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ी।

कहीं भाजपा के लिए विंध्य से ऐसी प्रतिक्रिया का सामना न करना पड़े। भाजपा इस खतरे से वाकिफ भी है, तभी दिल्ली जाने से पहले केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और मुख्यमंत्री के बीच एकांत में एक घंटे की बातचीत हुई। तोमर और शिवराज ने सिंधिया की वजह से होने वाले असंतुलन पर भी बारीक चर्चा की।

जाहिर है आगे की परिस्थिति को भांपते हुए दोनों मंजे हुए नेताओं ने कोई न कोई फॉर्मूला अवश्य निकाला होगा। हालांकि 24 सीटों पर उपचुनाव के बाद निश्चित तौर पर मंत्रिमंडल में फिर बदलाव होगा, तब उसके पास पूरे प्रदेश को साधने का मौका मिलेगा।