खास मिलिट्री स्टेशन में तब्दील होंगी सेना की छावनियां, सैन्य बजट होगा कम

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नई दिल्ली। भारत का सबसे बड़ा जमींदार अपनी जमीनें दान करेगा? अब सवाल यह है कि यह सबसे बड़ा जमींदार है कौन? यह है भारतीय सेना जिसके पास देशभर की छावनियों (कैन्टोंमेंट) को मिलाकर करीब 2 लाख एकड़ जमीन है। करीब 250 साल पहले ब्रिटिश सेना ने बरकपुर में अपनी पहली छावनी स्थापित की थी। समय के साथ-साथ और सेना की जरूरत के लिहाज से देश भर इन छावनियों की संख्या बढ़कर 62 हो गई। अब सेना चाहती है कि सभी छावनियों को खत्म कर दिया जाए, जिससे इनके रख-रखाव पर आने वाले खर्च को बचाकर सैन्य बजट को कम किया जा सके। फिलहाल सेना के पास 19 राज्यों में कुल 62 छावनियां हैं, जिनका क्षेत्रफल करीब 2 लाख एकड़ है।
Military millets will be transformed into special military station, military budget will be reduced
क्या है प्रस्ताव, सेना क्या देगी, क्या रखेगी?
सेना ने इस संबंध में रक्षा मंत्रालय के पास एक प्रस्ताव भेजा है। उसने मंत्रालय से कहा है कि अब छावनियों को ‘खास मिलिट्री स्टेशन’ में तब्दील कर दिया जाना चाहिए। इससे इन छावनियों पर सेना का ‘पूर्ण नियंत्रण’ रहेगा, जबकि इन छावनियों के रिहायशी एरिया को रखरखाव के लिहाज से स्थानीय नगर निगम को सौंप दिया जाएगा।

क्यों अहम है यह प्रस्ताव
कैन्टोंमेंट इलाके में रहने वाले सिविलियन अक्सर केंद्र व राज्य सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं से वंचित हो जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह इलाका म्युनिसिपिल बॉडी के अधीन नहीं आता। सेना के उच्च पदस्थ अधिकारियों का मानना है कि इस कदम से देश के रक्षा बजट को कम करने में मदद मिलेगी। अभी छावनियों के रख-रखाव में सेना को काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। इन छावनियों के रख-रखाव और इनकी सुरक्षा पर इस साल का बजट 476 करोड़ रुपये है।

आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत तो इस संबंध में गहन अध्ययन के आदेश भी दे चुके हैं, जिसकी रिपोर्ट सितंबर के शुरूआत तक आने की उम्मीद है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि छावनियों को खत्म करने का यह प्रस्ताव नया नहीं है। इससे पहले ‘भारत में छावनियों की प्रासंगिकता’ पर रक्षा सचिव की अध्यक्षता में 2015 में एक स्टडी टीम पहले भी गठित हो चुकी है। तब इस टीम ने महू, लखनऊ, अल्मोड़ा, अहमदनगर, फिरोजपुर और योल छावनियों को सिविल एरिया में शामिल करने के लिए छांटा था। लेकिन तब भी कुछ विवादों के कारण इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिल पाई थी।