राघवेंद्र सिंह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अक्टूबर को बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन आ रहे हैं। कारण है महाकाल कॉरिडोर का लोकार्पण। एक माह के भीतर प्रधानमंत्री की मध्यप्रदेश में यह दूसरी यात्रा है। इसके पहले नामीबिया से लाए गए सात चीतों- तीन नर और चार मादा के कुनबे को पालपुर कूनो अभ्यारण में छोड़ा था। चीतों को लेकर भारी आशंकाएं जताई गई थी लेकिन यहां की आबोहवा लगता है सूट कर गई। सब ठीक ठाक है। लेकिन मप्र के सियासी सीन में जैसा ऊपर से दिखता है वैसा सब अच्छा भला नही है। बात चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की। दोनो दल- गुटबाजी, चापलूसी, चमचागिरी और चुगलखोरी के मामले में किसी से कम नही हैं। यह रोग नेताओं के साथ समर्थकों में खूब फैला हुआ है। कांग्रेस के लिए तो यह सब चोली दामन के साथ जैसा है। भाजपा में अभी यह बीमारी नई सी है। करीब डेढ़ दशक से जोर पकड़ रही है। संघ परिवार की एंट्री ने इसे और भी क्रिटिकल बना दिया है।
शुरूआत हुई थी बाबा महाकाल लोक के गलियारे से और चली गई सियासत तक। चिट्टी को तार, फेक्स, ईमेल, और वाट्सएप आदि मानते हुए पीएम मोदी को नेताओं से एक यात्रा या मुलाकात केवल सत्ता- संगठन और संघ को लेकर करनी चाहिए। उनसे नीचे के क्रम के नेता एमपी जैसे सूबे को सम्हालने में असफल हो चुके हैं। इसी तरह प्रदेश कांग्रेस को सम्हालने के लिए राहुल- प्रियंका के अलावा सोनिया गांधी को भी मोर्चे पर आना पड़ेगा। कमलनाथ की सरकार का गिर जाना इसका उदाहरण है। कमलनाथ सरकार के शपथ समारोह के बाद अब तक राहुल गांधी आए न सोनिया जी आईं।
खैर , लौटते हैं बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन। पहले चरण में सौंदर्य और सफाई में यहां लगभग चार सौ करोड़ रु से ज्यादा के काम हो चुके हैं। इसमे कोई संदेह नही महाकाल लोक के गलियारे की काया पलट हो गई है। देश में भोलेनाथ बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के कायाकल्प के बाद उज्जैन दूसरा स्थान है जहां पीएम मोदी इस कॉरिडोर के लोकार्पण के लिए आ रहे हैं। स्वतन्त्र भारत में बाबा सोमनाथ के बाद काशी होते हुए उज्जैन तीसरा नगर है जहां बहुत बड़े पैमाने पर भगवान शिव के कॉरिडोर का भवन निर्माण हो रहा है हालांकि पीएम मोदी बाबा केदारनाथ के भी दर्शन करते हैं और कुछ वर्ष पहले वहां आई आपदा के बाद बाबा केदारनाथ तक पहुंचने के मार्ग और उनके आसपास के स्थान को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर व्यवस्थित और विकसित किया जा रहा है। इसमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महाकाल लोक और उसके गलियारे के निर्माण के काम को सरकार की प्राथमिकता सर्वोच्चता पर रखा है। इस ऐतिहासिक काम से मध्य प्रदेश काशी अर्थात वाराणसी के साथ पूरी दुनिया में प्रसिद्धि हासिल करेगा। इससे भक्ति के साथ पर्यटन और रोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा।
यद्यपि कुछ वर्षों पूर्व भी उज्जैन में सिंहस्थ संपन्न हुआ है। इसके चलते लगभग साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थे। उम्मीद की जानी चाहिए महाकाल लोक का जो गलियारा लोकार्पित होना है उसके कार्य पहले से भी ज्यादा उच्च गुणवत्तापूर्ण होंगे। ताजा निर्माण कार्य और सौंदर्यीकरण को लेकर कुछ लापरवाही के चलते स्थानीय शासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने उज्जैन निगमायुक्त पर नाराजी जताई थी। इसके चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें 24 घंटे के भीतर स्थानांतरित कर दिया था। इस निर्णय से सरकार लापरवाह अधिकारियों के बीच कड़ा संदेश देने में काफी हद तक सफल हुई लगती है। पूरे मामले में राजनीतिक तौर पर यह बात भी देखी समझी जा रही है कि पीएम मोदी और सीएम शिवराज सिंह चौहान के बीच सम्बन्ध पहले से अधिक प्रगाढ़ हुए हैं।
रातापानी की बैठक में सब ठीक नही था…
भाजपा सत्ता संगठन की पिछले दिनों रातापानी में हुई बैठक की धीरे धीरे जो चर्चा छनकर आ रही है वह सुखद नही है। उसमे नेताओं ने सत्ता की तुलना में संगठन को ज्यादा निशाने पर लिया।इंदौर के एक वरिष्ठ नेता ने कहा उन्होंने भाजपा की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए। केंद्रीय मंत्रियों के साथ प्रदेश के कैबिनेट मंत्रियों ने संगठन से लेकर कुलपतियों के चयन में उन्हें अंधेरे में रखा गया। चर्चा में नगर सरकार के चुनाव और मेयर प्रत्याशी से पार्षदों के उम्मीदवार को लेकर सामाजिक संवाद व समन्वय पर सवाल किए गए।
कांग्रेस में दिग्गी समर्थकों को नई आस…
कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी से कदम खींचने वाले दिग्विजय सिंह को लेकर उनके समर्थकों में अभी उम्मीद खत्म नहीं हुई है। मल्लिकार्जुन खड़गे के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की औपचारिक घोषणा होने के बाद राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली हुआ है उस पर दिग्विजय सिंह की ताजपोशी हो सकती है। हालांकि इस दौड़ में पी चिदंबरम से लेकर प्रमोद तिवारी, रणजीत सिंह सुरजेवाला जैसे नेताओं के नाम भी शामिल है। असल में कांग्रेस को उत्तर भारत से भी मजबूत नेता की जरूरत है। जो हिंदी भाषी राज्यों में पार्टी के आधार को विस्तार देने के साथ और भी मजबूत कर सके ऐसे में दिग्विजय सिंह राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष के दावेदार होने के साथ संगठन की नई व्यवस्था में कार्यकारी अध्यक्ष जैसे पद गठित होने पर भी वे अपना दावा कर सकते हैं। आने वाले दिनों में कांग्रेस की राजनीति में दिग्गी राजा की भूमिका महत्वपूर्ण होने से कोई इनकार नहीं कर सकता। हालांकि इसे लेकर मध्यप्रदेश में कमलनाथ कैंप के नेताओं का रिएक्शन अहम होगा।